हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में आ चुके हैं जो कंप्यूटरों, सर्वरों, प्रॉसेसरों, डेटासेट्स आदि के जरिए काम करती है। हम इस इंटेलिजेंस के नमूने देख भी रहे हैं। लेकिन बुनियादी सवाल वहीं खड़ा है कि क्या निर्जीव चीजों में सचमुच इंटेलिजेंस यानी बुद्धिमत्ता या प्रतिभा हो सकती है?
इंटेलिजेंस या बुद्धिमत्ता क्या है? मैं कहूंगा-सूचनाओं को समझने, विचारने, उनका विश्लेषण करने, तर्क-वितर्क करने, निष्कर्ष निकालने और निर्णय लेने की क्षमता। इंसान का दिमाग ये काम आसानी से कर लेता है। वहीं दूसरे जंतुओं का दिमाग इनमें से कुछ काम कर पाता है, कुछ नहीं। लेकिन ये सभी सजीव हैं। इधर हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में आ चुके हैं जो कंप्यूटरों, सर्वरों, प्रॉसेसरों, डेटासेट्स आदि के जरिए काम करती है। हम इस इंटेलिजेंस के नमूने देख भी रहे हैं। लेकिन बुनियादी सवाल वहीं खड़ा है कि क्या निर्जीव चीजों में सचमुच इंटेलिजेंस यानी बुद्धिमत्ता या प्रतिभा हो सकती है?
हम इंसान सूचनाओं को कैसे प्रॉसेस करते हैं? अपनी इंद्रियों और मस्तिष्क के जरिए। आंखों, कान, जीभ, नाक और स्पर्श के जरिए हम देख, सुन, सूंघ और छू पाते हैं तथा स्वाद ले पाते हैं। ये इंद्रियां अकेले भी काम करती हैं और एक-दूसरे के सहयोग से भी। इनसे मिली सूचनाओं को दिमाग में प्रॉसेस करने के परिणामस्वरूप हमारे भीतर समझ पैदा होती है। इसे आप चेतना भी कह सकते हैं। नतीजतन हम अपने बारे में और अपनी दुनिया के बारे में सचेत हो जाते हैं। क्या समान है, क्या अलग है, क्या विशिष्ट है, किनके बीच में संबंध है, क्या अच्छा या बुरा है— यह समझने लगते हैं।
अगला सवाल है कि ‘समझ’ क्या चीज है? हमारा दिमाग और हमारी प्राकृतिक बुद्धिमत्ता इंद्रियों के जरिए एकत्र सूचनाओं का मंथन (प्रॉसेस) करती है। इस प्रॉसेसिंग से निकलता है इन सूचनाओं का अर्थ, मतलब या निष्कर्ष। उनकी पृष्ठभूमि और परिणामों का पता चलता है। इस अर्थ को अभिव्यक्त करने के लिए हम शब्दों का सहारा लेते हैं। इन शब्दों को इसी मतलब या अर्थ का ‘स्टोरेज’ माना जा सकता है। वैसे ही जैसे हार्ड डिस्क में डेटा स्टोर होता है, प्राकृतिक बुद्धिमत्ता की दुनिया में हमारे शब्द इन अर्थों को स्टोर करते हैं और अभिव्यक्त भी करते हैं।
तीसरा सवाल है, अर्थ क्या है? इंद्रियों से मिली सूचनाओं से हमारी समझ, चेतना पर जो प्रभाव पड़ता है, वह अर्थ पैदा करता है। अलग-अलग प्राणियों के लिए एक ही सूचना के अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं। यहां तक कि अलग-अलग इंसान भी इसके अलग अर्थ लगाएं तो कोई बड़ी बात नहीं है। दूसरे शब्दों में कहें तो अर्थ कोई स्थायी चीज नहीं है। अलग-अलग सजीवों की समझ में विविधता हो सकती है।
ये इंद्रियां अकेले भी काम करती हैं और एक-दूसरे के सहयोग से भी। इनसे मिली सूचनाओं को दिमाग में प्रॉसेस करने के परिणामस्वरूप हमारे भीतर समझ पैदा होती है। इसे आप चेतना भी कह सकते हैं। नतीजतन हम अपने बारे में और अपनी दुनिया के बारे में सचेत हो जाते हैं। क्या समान है, क्या अलग है, क्या विशिष्ट है, किनके बीच में संबंध है, क्या अच्छा या बुरा है— यह समझने लगते हैं।
इसके मायने येहुए कि प्राकृतिक इंटेलिजेंस के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता कि वह किस चीज, किस घटना को किस तरह से समझेगी और किस रचनात्मक तरीके से अभिव्यक्त करेगी। अगर किसी खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यावली का चित्र बनाना हो तो अलग-अलग इंसान अलग-अलग तरह के और अलग-अलग गुणवत्ता के चित्र बनाएंगे। इस प्रक्रिया में सोचने और कल्पना करने की भी जरूरत पड़ेगी, जो पशु नहीं कर सकते।
तो फिर यह काम मशीन कैसे कर सकती है? अगर तुरंत जवाब देना हो तो हम झट से यही कहेंगे कि मशीन ऐसा नहीं कर सकती। लेकिन अब हम जानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी कोई चीज है इसलिए शायद हमारा जवाब हो कि मशीन ऐसा करने तो लगी है।
सही जवाब यह होगा कि मशीन ऐसा परिणाम तो जरूर देने लगी है लेकिन उसमें ‘समझ’ नहीं हो सकती। स्वतंत्र रूप से इंटेलिजेंस भी नहीं हो सकती। फिर भी वह चित्र बनाने लगी है, आंकड़ों का विश्लेषण करने लगी है, चित्रों को पहचानने लगी है, रिपोर्टों का सारांश तैयार करने लगी है, लेख और कविताएं लिखने लगी है तथा आडियो-वीडियो भी बनाने लगी है।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट एशिया में डेवलपर मार्केटिंग के प्रमुख हैं)
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