देहरादून। पिछले दिनों उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पांच राज्यों की मध्य परिषद की बैठक में गृह मंत्री अमित शाह के समक्ष वन कर्मियों को सशस्त्र बल के रूप में ट्रेनिंग दिए जाने का आग्रह किया था। मुख्यमंत्री धामी ने यही बात एक बार फिर कार्बेट पेट्रोलिंग दौरे के वक्त कही। दरअसल, उत्तराखंड में सत्तर फीसदी भूभाग में जंगल हैं या वन भूमि है, जहां 2004 में माओवाद पनपा, यहां माओवादी ट्रेनिंग कैंप और हथियार पुलिस ने जब्त किए थे। आरोपियों ने लंबा वक्त जेल में काटा था, इनमें से कुछ जमानत पर रिहा हो गए और आज भी इन पर मुकदमे चल रहे हैं। अब बताया जा रहा है कि जंगल में मुस्लिम गुज्जर एक षड्यंत्र के तहत सरकारी भूमि को कब्जाने में लगे हुए हैं।
हरीश रावत की सरकार में मुस्लिम गुज्जरों को टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट से बाहर निकाल कर बसाया गया और हर परिवार को एक हेक्टेयर भूमि दी गई। कच्चे मकान बनाने और उनके बच्चो की शिक्षा दीक्षा के लिए व्यवस्था की गई। इसी पुनर्वास योजना का फायदा उठाने के लिए मुस्लिम गुज्जरों ने अपनी बेटी को निकाह के बाद अपने दामाद के साथ यहीं एक नए परिवार के रूप में बसा लिया। यहां एक की बीवी का तलाक फिर दूसरे का निकाह जैसे षड्यंत्र रचे गए और सरकार की पुनर्वास योजना में अपने दावे किए जाने लगे। यानि जो 500 परिवार मुस्लिम गुज्जरों के थे वे अब ढाई हजार तक पहुंच गए।
मुस्लिम गुज्जरों ने जंगल कर्मियों के साथ लोभ-लालच के संबंध बनाए और सरकार की जमीनों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यहां मदरसे खुलने लगे, मस्जिदें बनने लगीं और जमीयत के मौलाना यहां दखल देने लगे। कभी जंगल का रखवाला कहे जाने वाले मुस्लिम गुज्जरों की नई पीढ़ी अब अपने पुश्तैनी काम छोड़ कर जंगल की बहुमूल्य संपदा का दोहन करने लगी। जंगलों में बाघ, हाथियों की हत्या, जड़ी बूटियों का दोहन, अवैध खनन के कार्य, लकड़ी तस्करी में मुस्लिम गुज्जरों की भूमिका संदिग्ध होने लगी।
उत्तराखंड पुलिस और खुफिया विभाग ने इस बारे में जानकारी मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंचाई और वहां से आदेश भी मिले कि जंगलों से मुस्लिम गुज्जरों के अवैध कब्जे हटाए जाएं। यह अभियान कुछ दिन चलता है फिर ठंडे बस्ते में चला जाता है। बताया जाता है कि मुस्लिम गुज्जरों के पीछे वामपंथी लॉबी काम करती है जोकि इनकी जनहित याचिकाएं हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में डालती रहती है। इस वजह से वन विभाग के अधिकारी कानूनी पचड़ों से बचने की कोशिश करते हैं। इसी कमजोरी का फायदा उठाकर मुस्लिम गुज्जर जंगल की हजारों हेक्टेयर पर अवैध कब्जा कर बैठे हुए हैं।
जंगलों में पहले फॉरेस्ट और पुलिस की संयुक्त गश्त भी हुआ करती थी जोकि 2019 के बाद से बंद पड़ी है। गश्त बंद हो जाने और वन कर्मियों के भ्रष्टाचार के कारण, जंगलों में खैर, सागवान, शीशम, हल्दू साल के पेड़ों की अवैध कटाई और चोरी हो रही है। डीएफओ फील्ड में जाते नहीं, इसलिए जंगल में क्या हो रहा है, उसकी सही तस्वीर सामने नही आ रही है। खुफिया विभाग की टीम ने अपनी रिपोर्ट गृह मंत्रालय और वन विभाग के उच्च अधिकारियों तक पहुंचाई है। बावजूद इसके वन विभाग के अधिकारी सोए रहे। अंततः मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को इस विषय पर सख्ती बरतनी पड़ी।
ऐसा भी बताया गया है कि वन विभाग में उच्च अधिकारियों में ऐसी गुटबंदी है कि वे एक-दूसरे को नीचा दिखाने में ही अपना वक्त बिता देते हैं और सीएम ने क्या आदेश दिए उसकी भी परवाह नहीं करते। इस वजह से जंगल अपराधियों का शरणस्थली बनता जा रहा है। कई अधिकारी ऐसे भी सामने आए हैं, जो जंगलों में अवैध कटान में लिप्त पाए गए हैं और उनकी जांच-पड़ताल भी शुरू हो चुकी है।
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