उत्तराखंड के रूद्र प्रयाग स्थित दुनिया के सबसे ऊंचे शिवालय माने जाने वाले बाबा तुंगनाथ महादेव में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। बर्फबारी के बीच बाबा तुंगनाथ मंदिर के शिखर पर लगी छतरी और कलश को वैदिक मंत्रोच्चार के साथ बदल दिया गया। यहीं नहीं बद्री केदार मंदिर समिति के विशेषज्ञों की देखरेख और पुरोहितों की मौजूदगी में बाबा तुंगनाथ भवन के जीर्णोद्धार का काम किया जा रहा है।
रुद्रप्रयाग में स्थित तुंगनाथ मंदिर भारत का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिवालय है। तृतीय केदार के रूप में प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां भगवान शिव की ‘भुजा’ के रूप में आराधना होती है।
हिमालय की चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह तीर्थ शिवालय बहुत रमणीक और आलौकिक है।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। दावा किया जाता है कि तुंगनाथ मंदिर 1000 साल से भी अधिक प्राचीन है। मक्कूमठ के मैठाणी ब्राह्मण यहां के पुजारी होते हैं। केदारनाथ की ही तरह यहां भी शीतकाल में छह माह के लिए कपाट बंद हो जाते हैं। मिली जानकारी के मुताबिक, मंदिर की चोटी पर बनी लकड़ी की छतरी और पीतल के कलश पुराने हो गए थे, जिन्हें बदला जाना जरूरी था।
दिल्ली के दानदाता संजीव सिंघल परिवार द्वारा इसकी छतरी और कलश के लिए 13 लाख 65 हजार दानराशि की व्यवस्था की गई थी। मंदिर समिति द्वारा अपनी मौजूदगी में मंदिर परिसर में ही देवदार की लकड़ी से इस छतरी का निर्माण कराया गया है। खास बात ये है कि ठंड शुरू हो चुकी है और पहाड़ों में पहली बर्फ भी गिरी है और बर्फबारी के बीच ही कारीगरों और मंदिर तीर्थ पुरोहित समाज ने छतरी और कलश को बदला। इस दौरान भक्तों ने मंदिर परिसर में बाबा तुंगनाथ के नाम का जय घोष किया।
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