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अब भारत को छेड़ोगे, तो ‘वह’ छोड़ेगा नहीं

ऐसा लगता है कि भारत से प्रेम करने वाला क्रांतिकारियों का कोई समूह है। जो सिर पर कफन बांध कर निकला है। भारत के दुश्मन जहां भी छुपे होंगे, वहां घुसकर मारेंगे

by आशीष कुमार अंशु
Oct 14, 2023, 09:57 pm IST
in मत अभिमत
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आशीष कुमार ‘अंशु’

भारत का मोस्ट वॉन्टेड शाहिद लतीफ पाकिस्तान में मारा गया। उसे अज्ञात बंदूकधारियों ने सियालकोट में गोली मारी। इस तरह अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा विदेश की धरती पर इंडिया के अठाहरवें मोस्ट वांटेड अपराधी के खात्मे की कहानी लिखी गई। मृतक आतंकी पठानकोट हमले का मास्टरमाइंड था। भारत में एनआईए ने यूएपीए के तहत उसके खिलाफ मामला दर्ज किया हुआ था। उसके खात्मे के बाद भारत सरकार के लिस्टेड आतंकियों की सूची से एक आतंकी कम हुआ।

आतंकवादी शाहिद पाकिस्तान के गुजरांवाला का रहने वाला था। वह 1994 से 2010 तक भारत की जेलों में रहा। मनमोहन सिंह की सरकार में 2010 में उसे वापस पाकिस्तान भेजा गया। अब पाकिस्तान में वह आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सियालकोट सेक्टर का कमांडर था। उसके पास भारत में आतंकवादियों को भेजने, उन्हें प्रशिक्षण देने से लेकर निगरानी तक का काम था। वह प्रशिक्षित आतंकवादियों को हमलों के निर्देश देता था। अब अज्ञात बंदूकधारियों की निशाना बन गया। दुनियाभर में भारत के मोस्ट वांटेड आतंकियों के बीच इस वक्त डर का माहौल बन गया है। एक के बाद एक आतंकी मारे जा रहे हैं और हत्यारों का पता नहीं चल पा रहा। हत्या के बाद इन हाई प्रोफाइल आतंकियों के मामले की गहन जांच भी होती है, लेकिन जांच एजेन्सियों के हाथ में कुछ खास नहीं लगता। अब इन हत्याओं की वजह से भारत के मोस्ट वांटेड अपराधी जो कि जांच एजेन्सियों से भाग कर दूसरे देशों में छुपे हुए हैं, उनकी नींद उड़ी हुई है। दूसरी तरफ भगोड़े आतंकवादियों पर अज्ञात बंदूकधारियों की कार्रवाई जारी है।

खालिस्तानी नेता भारत के 40 मोस्ट वांटेड आतंकियों में से एक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से कनाडा की सरकार का दुख पूरी दुनिया ने देखा। निज्जर खालिस्तान टाइगर फोर्स का सरगना था। 19 जून 2023 को ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में एक गुरुद्वारे के बाहर अज्ञात बंदूकधारियों ने उसे गोलियों से भून दिया। जो खुद को खालिस्तानियों के बीच शेर बताता घूमता था, वह बहुत बुरी मौत मारा गया। अज्ञात बंदूकधारियों को कनाडा सरकार तीन महीने तक ढूंढती रही। अंत में कुछ नहीं मिला तो भारत पर आरोप लगा दिया। कनाडा को जल्दी ही अपनी गलती का एहसास हो गया, जब वह इस मामले में पूरी तरह अलग थलग पड़ गया। कनाडा की सरकार के पास तो इस सवाल का जवाब भी नहीं था कि भारत के वांछित आतंकियों को वह संरक्षण क्यों दे रहा है? वहां के मंदिरों में खालिस्तान समर्थक जिस तरह तोड़ फोड़ में शामिल पाए गए और हिन्दुओं को वे सरेआम धमकी दे रहे हैं। भारतीय तिरंगा का अपमान करने का प्रयास वहां किया गया। उसके बावजूद इन अलगाववादी ताकतों पर कनाडा सरकार की तरफ से कोई सख्ती नहीं बरती गई। यदि आतंकी निज्जर की गतिविधियों को कनाडा की सरकार ने समय रहते ‘न्यूट्रलाइज’ कर दिया होता तो फिर संभव था कि वह अज्ञात बंदूकधारियों का शिकार ना होता।

लश्कर-ए-तैयबा और जमात उद दावा का सरगना और आतंकी हाफिज सईद का बेटा कमालुद्दीन सईद भी पिछले महीने मारा गया। पहले कार सवार हमलावरों द्वारा उसके अपहरण की खबर आई। बाद में खबर आई कि उसकी लाश बरामद हो गई है। हाफिज सईद से दहशत का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उसके बेटे के अपहरण और हत्या से संबंधित कोई समाचार पाकिस्तान के किसी अखबार में नहीं छपा। यदि यह खबर झूठी है तो खंडन ही छाप देते। वह भी नहीं छपा।

ऐसा लगता है कि भारत से प्रेम करने वाला क्रांतिकारियों का कोई समूह है। जो सिर पर कफन बांध कर निकला है। भारत के दुश्मन जहां भी छुपे होंगे, वहां घुसकर मारेंगे। भारत में जहां एक प्रदेश के दो थानों में सीमा विवाद हो जाता है। यहां अज्ञात बंदूकधारी सरहदों की सीमा भी नहीं मान रहे। बात निज्जर तक रुकनी नहीं थी। सो नहीं रुकी। उसके एक साथी अर्श डल्ला का सहयोगी और भारत के ए श्रेणी का गैंगस्टर सुखदूल सिंह उर्फ सुक्खा दून्ने भी अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा मार गिराया गया। वह पंजाब से 2017 में जाली पासपोर्ट के सहारे कनाडा फरार हुआ था। विदेशी धरती पिछले पांच छह महीनों में अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा की गई हत्याओं की सूची लंबी है। रियाज अहमद उर्फ अबु कासिम पिछले महीने पीओके में मारा गया, बशीर अहमद पीर इसी साल रावलपींडी में, सैयद खालिद राजा और मिस्त्री जहूर इब्राहिम दोनों इसी साल करांची में मारे गए। खालिस्तानी आतंकी परमजीत सिंह पंजवार को लाहौर में गिराया गया।

कई बार यह भी लगता है कि यह कोई एक समूह नहीं है। दुनियाभर में भारत से मोहब्बत करने वाले लाखों लोग हैं। अब ईश्वर जाने कि कौन से देश से कौन निकल कर भारत के दुश्मनों को निपटा रहा है। अज्ञात बंदूकधारियों की मॉडस आपरेंडी अधिकांश मामलों में एक जैसी है कि वे मोटरसाइकिल पर आते हैं और अपने ऑपरेशन को अंजाम देकर गुमनाम हो जाते हैं। कौन हैं वे अज्ञात बंदूकधारी? यह अब तक एक बड़ा रहस्य बना हुआ है। यह बॉलीवुड की किसी फिल्म की तरह है। जिसका नायक दुनियाभर में देश के दुश्मनों की पहचान करके उसे खत्म कर रहा है। यह बात हुई फिल्म की, वास्तविक दुनिया में देश के दुश्मनों को दूसरे देश की जमीन पर जाकर खत्म करने के लिए मोसाद (इज़राइल) और केजीबी (रूस) जैसी खुफिया एजेन्सियां प्रसिद्ध हैं। दूसरे देश की जमीन पर जाकर अपने देश के दुश्मनों की हत्या का भारत का कोई इतिहास नहीं है। इसलिए अज्ञात बंदूकधारियों को भारत का हितचिंतक माना जा रहा है। जो एक-एक कर भारत के दुश्मनों को निपटा रहे है।। उल्लेखनीय है कि दो साल पहले दिल्ली में दुनिया के दिग्गज खुफिया एजेन्सियों के प्रमुख इकट्ठे हुए थे। सूत्रों के अनुसार सीआईए प्रमुख भी उस बैठक में थे। मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार यात्रा गोपनीय थी। जब दुनियाभर के प्रमुख खुफिया एजेन्सियों के लोग एक साथ इकट्ठे हुए हों और भारत ने अपनी सबसे बड़ी चुनौती आतंकवाद पर बात ना की हो। यह संभव नहीं है। भारत की जांच एजेन्सियां जिस पेशेवर तरीके से काम कर रहीं हैं, उसे देखकर यही लगता है कि भारत अब आतंक और भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार हो रहा है।

भारत लंबे समय से अपनी पीड़ा दुनियाभर के मंचों पर जाकर सुनाता रहा है। बार-बार भारत आतंकवाद से जख्मी हुआ है। हर बार चोट खाकर वह गिरा और फिर खड़े होकर लड़ने के लिए तैयार हुआ। इसीलिए एनआईए को अधिक ताकतवर बनाने का निर्णय मनमोहन सिंह सरकार 2012 में लिया था। आतंवाद से लड़ने के लिए हमारी एजेन्सियों का ताकतवर होना जरूरी है। उस दौर में आतंकी हमले होते थे और फिर सरकार की तरफ से निंदा, कठोर निंदा का बयान जारी होता था। एक तरफ हमारे माननीय नेता निंदा करते थे और अचानक दूसरी आतंकी घटना हो जाती थी। फिर वही नेता मीडिया के सामने आकर कठोर निंदा करते थे। उन दिनों हर तरफ बेबसी का माहौल था। अब आतंकवादी गतिविधियों में जबर्दस्त कमी आई है। अब भारत निंदा की जगह एक्शन से काम ले रहा है। उसने उरी-पुलवामा का प्रतिकार किया। यह छेड़ोगे तो छोड़़ेगे नहीं, वाला भारत है।

नैतिक अनैतिक के चश्मे से हर एक घटना को देखने वाले हो सकता है कि इन हत्याओं को गलत ठहराएं। जो बात ठीक भी है। किसी आतंकवादी की हत्या करके उसे न्याय ठहराना वास्तव में अपराध से अपराध को खत्म करने जैसा है। जिसमें अपराध खत्म नहीं हुआ, बल्कि एक अपराधी को मारने से दूसरा अपराधी पैदा हुआ।

इस विमर्श का एक दूसरा पक्ष भी है। भारत के आम नागरिक का। जो इन बौद्धीक विमर्शों से दूर अपनी दाल रोटी की चिंता में लगा हुआ है। इन अज्ञात बंदूकधारियों की कहानी पढ़कर उस आम भारतीय का मनोबल बढ़ा है। एक भारतीय के नाते वह अब खुद को निरीह नहीं, बल्कि सशक्त मान रहा है। चाय की गुमटी, पान की दुकानों और चौक चौराहों पर लोग इन दिनों यह बात कर रहे हैं, अब भारत गिड़गिड़ाने वाला भारत नहीं रहा। घुस कर मारने वाला भारत है।

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