हमास के कुकृत्य को देखकर पूरी दुनिया स्तब्ध है। परन्तु बहुत ही दुखदायी तथ्य यह भी है कि जिस क्षेत्र पर युवा पीढी के भविष्य निर्माण का उत्तरदायित्व है वहीं पर हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है। और वह भी उस संस्थान में, जहां से कहा जाता है कि वैश्विक विमर्श का निर्माण होता है। वैसे तो अकादमिक क्षेत्र में अभिव्यक्ति के समर्थन के नाम पर एवं विमर्श के नाम पर हिंदुओं के विरुद्ध विमर्श बनाना नई बात नहीं है एवं यह हाल ही में “डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व” के आयोजन के रूप में दिखाई दी थी। परन्तु इजरायल पर हमास के हमले को लेकर हार्वर्ड के विद्यार्थी संगठनों ने जो कदम उठाया है, उसे देखकर लोग हतप्रभ हो गए हैं। जब हमास के आतंकियों ने इजरायल पर हमला किया था तो वहां के विद्यार्थी समूहों ने फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया था, जिसमें इजरायल का विरोध किया गया था।
उस पत्र में लिखा था कि आज की घटनाएँ अचानक से नहीं हुई हैं। लगभग दो दशकों से, गाजा में लाखों फिलिस्तीनी एक खुली जेल में रह रहे हैं और गाजा में हत्याकांड लगातार हो रहे हैं। गाजा में फिलिस्तीनियों के पास छिपने या शरण लेने की कोई जगह नहीं है। आने वाले दिनों में, फिलिस्तीनी इजरायल की हिंसा का सामना करेंगे। इस पत्र में आगे लिखा था कि इजरायल में जो भी हुआ है उसके लिए केवल आज का इजरायल का ही नेतृत्व जिम्मेदार है। परन्तु इसमें जो सबसे अधिक हैरान करने वाला नाम था वह था “हार्वर्ड अंडरग्रेजुएट नेपाली स्टूडेंट एसोसिएशन”। यह इसलिए हैरान करने वाला था क्योंकि हमास के आतंकियों ने कई नेपाली नागरिकों की भी हत्याएं की थीं।
लोगों ने विरोध करना आरम्भ किया। और जल्दी ही नेपाली संगठन ने अपने हस्ताक्षर इससे वापस ले लिए और अपना समर्थन इस पत्र से वापस लेने की घोषणा कर दी। हार्वर्ड अंडरग्रेजुएट नेपाली स्टूडेंट एसोसिएशन ने अपनी घोषणा में लिखा कि उन्हें फिलिस्तीन के विरुद्ध एक ऐतिहासिक अन्याय के प्रति ध्यान आकर्षित करने वाले पीएससी वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने का खेद है क्योंकि उसे इजरायल में हाल ही में हुए हमलों के समर्थन में समझा गया। इसमें उन्होंने नेपाली नागरिकों के हमास के हमलों में मारे जाने की निंदा करते हुए लिखा कि वह शान्ति के पक्षधर हैं और वह इस वक्तव्य से अपना समर्थन वापस लेते हैं।
जैसे ही हमास के हमलों के समर्थन का इन विद्यार्थी संगठनों ने जारी किया था, उससे उद्योग जगत में भी खलबली मच गयी और कई कम्पनी के अधिकारियों ने पूछा कि क्या इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों के नाम मिल सकते हैं, जिससे वह अनजाने में ही इनमें से किसी सदस्य को नौकरी न दें! बिलेनियर हेज फंड के सीईओ बिल एकमेन ने यह मांग की कि इन सभी विद्यार्थियों के नाम सामने आने चाहिए।
उनकी इस मांग का समर्थन कई सीईओ ने किया कि इन सभी विद्यार्थियों का नाम सामने आए, जिससे उनमें से कोई उन्हें नौकरी न दे। जैसे ही बात नौकरी तक पहुँची और एक दो ऐसे लोगों के नौकरी के प्रस्ताव वापस लिए गए, वैसे ही नौकरी न मिलने के डर से विद्यार्थियों ने अपना समर्थन उस पत्र से वापस लेना आरम्भ कर दिया और कहा कि उन्हें यह पता नहीं था कि दरअसल उस पत्र में लिखा क्या था? मीडिया के अनुसार 34 में से 4 संगठनों ने अपना समर्थन वापस ले लिया है। इसके साथ कई और समूहों के बोर्ड सदस्य भी खुद को इस पत्र से असम्बद्ध कर रहे हैं। इसके साथ ही इन 34 संगठनों के अतिरिक्त 17 अन्य संगठन एवं 500 स्टाफ एवं फैकल्टी एवं 3000 अन्य लोगों ने उस पत्र के विरोध में एक और पत्र जारी किया, जिसमें उन्होंने लिखा कि पहले लिखा गया पत्र एकदम गलत और भड़काऊ था।
न्यूयॉर्क पोस्ट के अनुसार पहले लिखे गए पत्र का समर्थन करने वाले कई व्यक्ति भी समूह को छोड़ चुके है और खुद को उस सन्देश से असम्बद्ध दिखा चुके हैं। कई लोगों ने कहा कि उन्होंने हस्ताक्षर करने से पहले देखा नहीं था। परन्तु इसी के बीच जो सबसे बड़ा समाचार है वह यह कि इजरायल के अरबपति इडन ओफेर और उनकी पत्नी जो हार्वर्ड केनेडी स्कूल के एग्ज़ेक्युटिव बोर्ड में थे, उन्होंने अपने पदों से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने यह त्यागपत्र यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट क्लौडीन गे की इजरायल को दोषी ठहराने वाले विद्यार्थियों के पत्र के प्रति देरी से बहुत टालमटोल वाले उत्तर को लेकर दिया है।
दरअसल स्कूल की अध्यक्ष क्लौडीन गे का कहना था कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करती हैं। परन्तु यह एकदम झूठ है क्योंकि अभी हाल ही में जब फ्री स्पीच रैंकिंग जारी हुई थी तो उसमें हार्वर्ड को 100 में से 0 अंक प्राप्त हुए थे। हिब्रू समाचार साइट themarker के अनुसार शिपिंग और रसायन उद्योग के दिग्गज ओफ़र, जिनकी कुल संपत्ति गुरुवार तक फोर्ब्स द्वारा 14 बिलियन डॉलर आंकी गई थी, ने कहा कि वह और उनकी पत्नी बोर्ड छोड़ रहे हैं।
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