दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए तीनों आतंकी आईएसआईएस से प्रभावित थे। इनकी योजनाएं, तैयारियां और लक्ष्यों का चयन चीन द्वारा वित्त पोषित मीडिया पोर्टल न्यूज क्लिक को एक साक्षात्कार में सतपाल मलिक द्वारा दिए गए बयान से हू-ब-हू मेल खाता है मोस्ट वांटेड और तीन लाख के इनामी आतंकी शाहनवाज (प्रकोष्ठ में) की निशानदेही पर गिरफ्तार तीनों आतंकी
इस वर्ष गांधी जयंती के दिन दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने तीन मुस्लिम आतंकियों आलम, वारसी और अशरफ को गिरफ्तार किया। इनके पूरे नाम हैं- मोहम्मद शाहनवाज आलम, अरशद वारसी और मोहम्मद रिजवान अशरफ। ये नाम फिर से देखिए। क्या यही कारण है कि चीन ने उइगर मुसलमानों पर अपने बेटों का नाम ‘मोहम्मद’ रखने पर प्रतिबंध लगा दिया है?
तकनीकी जिहाद
इन तीनों में एक और समानता शैक्षणिक संबंधों की है। तीनों इंजीनियरिंग स्नातक हैं। मोहम्मद आलम ने विश्वेश्वरैया नागपुर एनआईटी से माइनिंग इंजीनियरिंग में बीटेक किया है, वारसी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया है वहीं मोहम्मद अशरफ ने गाजियाबाद से सूचना प्रौद्योगिकी में बीटेक है। खनन, यांत्रिकी और सूचना प्रौद्योगिकी, यह तीन जानकारियां जब इस्लामी कट्टरपंथ के साथ मिल जाती हैं, तो एक घातक जिहादी कॉकटेल बन जाता है। वारसी और मोहम्मद अशरफ की तो तकनीकी शिक्षा भी इस्लामी कट्टरपंथ से भरपूर थी। जहां वारसी प्रबंधन में इस्लामी सिद्धांतों के अनुप्रयोग पर पीएचडी कर रहा था, वहीं मोहम्मद अशरफ ने 2009 में किशोरावस्था में ही आलमियत में डिग्री हासिल कर ली थी। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि मोहम्मद अशरफ का जन्म जेद्दा में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था।
पश्चिम में किए गए पीईडब्ल्यू रिसर्च संगठन के अधिकांश सर्वेक्षणों से पता चलता है कि अधिकांश जिहादी तकनीकी स्नातक हैं। सर्वेक्षण में पाया गया कि पाकिस्तान में भी तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों का रुझान आतंकवाद के प्रति अधिक है।
बहरहाल, ये तीनों भारत में जिहाद के केंद्र जामिया और शाहीनबाग इलाके में एकत्र हुए थे। मोहम्मद आलम और वारसी, दोनों ने जामिया नगर में अलग-अलग निवास लिया हुआ था, लेकिन जिहादी खिंचाव उन्हें खुद-ब-खुद एक-दूसरे के निकट ले आया। मोहम्मद आलम शाहीन बाग में जिहादी तालीम में शामिल होता रहता था। इन तालीमी खुत्बों के दौरान ही उसका मोहम्मद अशरफ के साथ वैसा वैचारिक जुड़ाव हो गया, जैसा आईएसआईएस द्वारा प्रचारित किया जाता है। इस प्रकार, जिहाद के केंद्र शाहीन बाग ने इन तीनों को एक साथ ला दिया। यह जिहाद के उस गंदे नाले का एक सूक्ष्म-संक्षिप्त चित्र है, जिसे राजनीतिक संरक्षण ने शाहीन बाग में पनपने दिया है।
शाहीन बाग प्रदर्शन, जो दिसंबर 2019 में शुरू हुआ और फरवरी 2020 में दिल्ली दंगों में बदल गया, को मिले राजनीतिक संरक्षण की विस्तृत श्रेणी काफी भयावह थी। शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों के समक्ष माथा टेकने पहुंचने वालों में रंग-रंगीले लेखक और राजनेता शशि थरूर, नेहरू-गांधी खानदान के मनोविकार स्तर के वफादार मणि शंकर अय्यर, आम आदमी पार्टी के विभिन्न नेता, जिन्होंने बाटला हाउस एनकाउंटर और भारतीय सेना द्वारा पाक अधिक्रांत कश्मीर (पीओके) में सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाए थे, सब शामिल थे।
उस समय शरजील इमाम ने भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर को काट देने की धमकी दी थी। उस समय निस्संदेह टुकड़े-टुकड़े गैंग बहुत ताकतवर था। इस तथ्य के बावजूद कि दिल्ली दंगों में 53 लोग मारे गए थे, कई करोड़ की संपत्ति नष्ट और क्षतिग्रस्त हुई थी। इन दंगों को मिले जिहादी प्रोत्साहन, शाहीन बाग और जामिया क्षेत्र में खिलाफत की कहानियों से भौतिक तौर पर उस तरह नहीं निपटा गया है, जिस तरह से निपटे जाने के वह योग्य थे। वास्तव में इस आख्यान (नैरेटिव) और इसके इको सिस्टम को तभी शांत किया जा सकता है, जब जामिया विवि को बंद कर दिया जाए। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) की तरह, यह विवि जिहादी इको सिस्टम को बनाने और बनाए रखने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है, जिसमें पाकिस्तान की आईएसआई की भूमिका कम नहीं है।
आईएसआईएस के भेष में आईएसआई
इन रिपोर्टों के बावजूद कि ये तीनों आईएसआईएस से प्रभावित थे और आईएसआईएस द्वारा भर्ती किए गए थे, दिल्ली पुलिस का मानना है कि उनके वास्तविक आकाओं की निष्ठा आईएसआई के प्रति है। आईएसआई अंतरराष्ट्रीय जांच से बचने के लिए और स्वीकार्यता बनाए रखने के लिए आईएसआईएस की आड़ में काम कर रही है। दिल्ली पुलिस द्वारा की गई जांच उसे आईएसआई एजेंट फरहतिला गौरी और उसके दामाद शाहिद फैसल द्वारा चलाए जा रहे आपरेशनों तक ले गई है, जो 2002 में गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हमले को अंजाम देने के बाद भारत से पाकिस्तान भाग गए थे।
ये दोनों विदेशी आकाओं के रूप में पेश आते थे और आईएसआई के मौन समर्थन से आईएसआईएस के बैनर तले भारतीय मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बना रहे थे। पुलिस के अनुसार, दोनों लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य हैं। उनके जैश-ए-मोहम्मद से भी संबंध हैं। गौरी के खिलाफ गुजरात में कई मामले दर्ज हैं। उसके खिलाफ इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस भी लंबित है। हाल ही में इन आतंकियों ने भारतीय मुस्लिम युवाओं को प्रेरित करने के लिए बाटला हाउस एनकाउंटर से जुड़े जिहादियों की तस्वीरें पोस्ट की थीं।
अखिल भारतीय नेटवर्क
मोहम्मद आलम, मोहम्मद अशरफ और वारसी ने अपने आकाओं के निर्देश पर जंगली और सुनसान इलाकों में व्यापक छानबीन करके एक ऐसा अड्डा तलाशा, जहां से वे अपनी हरकतों को संचालित, प्रशिक्षण और बम परीक्षण कर सकें। इस तलाश में वे पश्चिम में लवासा, महाबलेश्वर और गोवा तक गए। पश्चिमी घाट में हुबली, उडुपी, केरल और वलसाड तक पहुंचे और पूर्वी घाट में नल्लामाला की पहाड़ियों तक। पूछताछ के दौरान मोहम्मद आलम और वारसी ने खुलासा किया कि उन्होंने उत्तराखंड और राजस्थान के दूरदराज के स्थानों में बमों (आईईडी) का परीक्षण किया था। इस संबंध में पुलिस ने जो अखिल भारतीय मानचित्र चिह्न बरामद किया था, वह सही निकला।
इस मॉड्यूल के सदस्यों ने कबूल किया कि उनके निशाने पर दिल्ली में अक्षरधाम, अयोध्या में राम मंदिर और प्रमुख राजनीतिक हस्तियां थीं।
निशाने पर रखे गए दोनों मंदिरों के मजबूत निर्माण को ध्यान में रखते हुए संचालकों द्वारा इसमें एक खनन इंजीनियर मोहम्मद आलम को शामिल किया गया था। वह रॉक ब्लास्टिंग तकनीक में पारंगत था। उसने हाइड्रोजन पैरॉक्साइड, एसीटोन और हाइड्रोक्लोरिक एसिड जैसे आसानी से उपलब्ध रसायनों से भी बम बनाने में विशेषज्ञता हासिल कर ली थी। पुलिस की छापेमारी में केमिकल युक्त प्लास्टिक केन, एसिड की बोतलें, छोटी स्टील की गेंदें, लोहे के पाइप, बैटरी, टाइमर घड़ी, रिमोट चाबियां आदि मिलीं।
आईएसआई और चीन के साथ राजनीतिक मिलीभगत आप देखें कि इन लोगों की योजनाएं, तैयारियां और लक्ष्यों का चयन चीन द्वारा वित्त पोषित मीडिया पोर्टल न्यूज क्लिक को दिए एक साक्षात्कार में जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक द्वारा दिए गए बयान से हू-ब-हू मेल खाता है।
सतपाल मलिक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कहा था कि मिस्टर मोदी राजनीतिक फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। वे अयोध्या में राम मंदिर पर हमला करवा सकते हैं या फिर भाजपा नेता की हत्या भी करवा सकते हैं। सतपाल मलिक ने आरोप लगाया था कि मोदी ने चुनाव जीतने के लिए 2019 में जान-बूझकर पुलवामा में जवानों की हत्या कराई थीं।
वास्तव में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से करीबी तौर पर जुड़ा श्रीलंकाई मूल का अमेरिकी नेविल रॉय सिंघम भारत समेत विदेशों में चीनी प्रचार-प्रसार का सरगना है। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, चीनी इसे ‘धुआं रहित युद्ध’ कहते हैं। नेविल रॉय सिंघम शंघाई से तंत्र का संचालन करता है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ घनिष्ठ संबंधों के नाते उसका सोनिया गांधी, राहुल गांधी, माकपा, जिहादियों और शहरी नक्सलियों के साथ भाईचारे वाला संबंध खुद-ब-खुद हो जाता है।
ऐसा कैसे संभव है कि इस साल तीन महीने पहले जुलाई में सतपाल मलिक आईएसआई की योजनाओं के बारे में भविष्यवाणी करने में समर्थ थे? यह काफी संदेहास्पद है कि मलिक ने न्यूज क्लिक को साक्षात्कार देने के लिए चुना, जो एक चीनी वित्त पोषित प्रचार मुखपत्र है, जिसे कथित तौर पर नेविल रॉय सिंघम के माध्यम से 87 करोड़ रुपये की फंडिंग प्राप्त हुई थी। एक पूर्व राज्यपाल और पूर्व मंत्री अपनी साख को सुनिश्चित किए बिना बातचीत के लिए मीडिया मंच का चयन नहीं करते। संभवत: न्यूज क्लिक की राष्ट्र-विरोधी साख उनके अपने व्यक्तित्व और उनकी अपनी अनिवार्यताओं के अनुरूप थी।
प्रशांत भूषण ने भी बिल्कुल वही कहा था, जो भविष्यवाणी मलिक ने की थी। प्रशांत भूषण ने कहा था कि पुलवामा की तर्ज पर अयोध्या में हमला होगा और भारत द्वारा पीओके पर नपा-तुला हमला किया जाएगा और यह सब 2024 में चुनावी लाभ के लिए होगा। प्रशांत भूषण ने बालाकोट हमले की सत्यता पर भी सवाल उठाया था। उनकी माओवादी समर्थक, पाकिस्तान समर्थक और जिहादी समर्थक प्रवृत्ति को रेखांकित करने की जरूरत है।
ऐसी ही भविष्यवाणी शिवसेना नेता संजय राउत ने भी की थी, जो पुन: उनके गुरु यानी उद्धव ठाकरे की ही आवाज जैसी सुनाई देती थी। राउत ने कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन से पहले हमला किया जाएगा और यह कि पुलवामा में 2019 का हमला और 2002 में गोधरा ट्रेन ट्रैक पर हमला पूर्व नियोजित था। आईएसआई और शिवसेना की इस विशेष शाखा के बीच मित्रता उद्धव ठाकरे सरकार के गठन के दौरान स्पष्ट हो गई थी।
एक विशेष राजनीतिक वर्ग ने 2009 के चुनावों से पहले हिंदू आतंक का हौवा खड़ा करने के लिए 26/11 को अंजाम देने में आईएसआई की मदद ली थी। संशोधित पटकथा के साथ फिर वही प्रयास किया जा रहा है।
दरअसल भारतीय राजनीति में पाकिस्तान और चीन का प्रभाव दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। कुछ-कुछ मालदीव की तरह। यह लोकतंत्र और जिहादी-कम्युनिस्ट गठबंधन के बीच युद्ध है। माने चीन और पाकिस्तान द्वारा किया जा रहा छद्म युद्ध, जिसने स्वयं को भारत के राजनीतिक क्षेत्र में समाहित कर लिया है। भारतीय संविधान के निमार्ताओं ने हमारे राजनीतिक दलों पर शत्रुतापूर्ण बाहरी प्रभाव की संभावना पर विचार नहीं किया था।
राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया में तत्काल सुधार के लिए इस रोग को दूर करने की आवश्यकता है। भले ही उसके राजनीतिक या शारीरिक वजन कुछ भी हो, उसकी त्वचा का रंग कुछ भी हो और हिंदू वंश से संबंध का उनका दावा कुछ भी हो, भले ही न्यायपालिका में उनका प्रभाव कुछ भी हो। जिन साजिशकर्ताओं ने राजनीतिक सत्ता के लिए छद्म युद्ध और आतंकवाद का रास्ता चुना है, उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। ऐसे क्रूर भारतीय राजनीतिक माफिया से भारत को बचाने की जरूरत है।
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