आई.एन.डी.आई. अलायंस की एकता का सूत्र हिंदू विरोध ही है! मात्र यही वह विचार है, जिसके प्रति इन दलों की राज्य सरकारें पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। पंजाब, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, केरल और तेलंगाना जैसे राज्यों के लिए यह कहना पर्याप्त नहीं रह गया है कि वहां जंगल राज है। जंगल राज में भी हिंस्र पशु कौन सा होगा और किसका शिकार किया जाएगा, यह वोट बैंक के आधार पर तय होता है। जब वोटों की खेती हिंदुओं के प्राणों से की जा रही हो, तो यह समझा जा सकता है कि दुश्मनी किस स्तर पर निभाई जा रही है। सिर्फ वोट बैंक के लालच में और हिंदुओं के प्रति अपनी घृणा को व्यक्त करने के लिए यह राज्य हिंदू नागरिकों के लिए यातनागृह बन गए हैं ये राज्य हिंदुओं के लिए यातनागृह
ओडिशा
15 वर्ष पहले ओडिशा के कंधमाल में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती और उनके चार शिष्यों की हत्या के पीछे नक्सली-मिशनरी गठजोड़ था। ज्ञपरमह लक्ष्मणानंद गोरक्षा और कन्वर्टेड वनवासियों की घर वापसी के लिए अभियान चला रहे थे। साथ ही, उन्होंने वनवासी समाज के बच्चों को शिक्षित करने के लिए विद्यालय, कन्या आश्रम और छात्रावास भी खोले थे। वनवासी क्षेत्र में उनके द्वारा चलाए जा रहे जागरुकता अभियान से ईसाई मिशनरियां बौखलाई हुई थीं। इसलिए चर्च-मिशनरियों ने उन्हें बदनाम करने के लिए उन पर मनगढ़त आरोप भी लगाए थे। उन पर 1970 से दिसंबर 2007 के बीच 8 बार जानलेवा हमले हुए। आखिरी बार 23 अगस्त, 2008 को नक्सलियों ने उन पर तब हमला किया, जब वह आराधना में लीन थे। यह हमला सुनियोजित था। स्वामी लक्ष्मणानंद को गोलियों से छलनी करने के बाद हत्यारों ने उनके मृत शरीर कुल्हाड़ी से काट दिया था। हत्या का मास्टरमाइंड और मुख्य आरोपी नक्सली सब्यसाची पांडा था। राज्य सरकार इस मामले को दबाना चाहती थी, इसलिए चार वर्ष तक अपराधियों को पकड़ा नहीं गया। यही नहीं, हत्याकांड की जांच के लिए गठित दो न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं की गई थी।
महाराष्ट्र
16 अप्रैल, 2020 को महाराष्ट्र के पालघर जिले के गढ़चिंचली गांव में दो संतों और उनके चालक की हत्या के पीछे भी ईसाई-वामपंथी गठजोड़ ही था। जूना अखाड़े के 70 वर्षीय महाराज कल्पवृक्षगिरि, 35 वर्षीय सुशीलगिरि महाराज और उनके चालक की कासा पुलिस चौकी में पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। भीड़ द्वारा साधुओं को कब्जे में लेने के बावजूद कई घंटे तक चौकी पर पुलिस बल को नहीं बुलाया गया। रिपोर्ट दर्ज करने में भी देरी की गई। सरकार और प्रशासन इसे दबाने की कोशिश में लगा रहा। तत्कालीन उद्धव सरकार ने तो मामले की जांच सीबीआई कराने से भी इनकार कर दिया था। पहले संतों को बच्चा चोर, फिर किडनी चुराने वाले गिरोह का सदस्य बताया गया। वास्तव में यह इलाका नक्सलियों और ईसाई कन्वर्जन का गढ़ है। इसलिए क्षेत्र में सरकारी कर्मचारियों को भी आवाजाही नहीं करने दिया जाता है। यह प्रचारित किया गया है कि सरकारी कर्मचारी वनवासियों के दुश्मन हैं। हिंदुओं के प्रति भी समाज के लोगों के मन में यह कहकर जहर भरा गया है कि हिंदू उन्हें असुरों का वंशज मानते हैं। नक्सलियों और ईसाइयों के निशाने पर विशेषकर हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता होते हैं, क्योंकि वे कन्वर्जन का विरोध करते हैं। संतों की हत्या के बाद फैक्ट फाइंडिंग टीम की 150 पृष्ठों की रिपोर्ट में ये बातें कही गई हैं।
तेलंगाना
4 मई, 2022 को तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में बीच सड़क पर लोहे की रॉड और चाकू गोद कर बी. नागराजू की हत्या इसलिए कर दी गई, क्योंकि उसने एक मुस्लिम लड़की सुल्ताना से विवाह किया था। दोनों साथ में पढ़े थे और लगभग 11 वर्ष से एक-दूसरे को जानते थे। गैर-मुस्लिम लड़के से विवाह करने के कारण सुल्ताना का परिवार नाराज था। इसलिए सुल्ताना के दो भाइयों सैयद मोबिन अहमद और मोहम्मद मसूद अहमद ने दोस्तों के साथ मिलकर रात में नागराजू की हत्या कर दी। सुल्ताना ने भाइयों को रोकने की कोशिश की थी, लेकिन वे नहीं माने। पति की हत्या के बाद सुल्ताना का कहना था कि विवाह के बाद नागराजू इस्लाम भी कबूलने को तैयार था, लेकिन उसका भाई मोबिन अहमद नहीं माना। वंचित हिंदू परिवार का नागराजू सिकंदराबाद के मररेडपल्ली का रहने वाला था। तेलंगाना सरकार से मुसलमानों को संरक्षण मिल रहा है। चाहे कपड़े धोने वाले मुस्लिमों की बिजली माफी का मामला हो या आरक्षण का। आलम यह है कि 2020 में भैंसा में उन्मादी मुस्लिमों ने हिंदू घरों पर हमले किए। लेकिन एक पत्रकार ने इसकी रिपोर्टिंग की, तो राज्य सरकार ने उस पर मुकदमा दर्ज करा दिया था।
तमिलनाडु
इस वर्ष 28 फरवरी को कुछ लोगों ने मदुरै (तमिलनाडु) के एक हिंदू अधिकार समूह के कार्यकर्ता मणिकंदन की सरेआम चाकु से गोदकर हत्या कर दी थी। मणिकंदन हिंदू मक्कल काची के दक्षिण जिला उप प्रमुख थे। हमलावरों की भीड़ ने पहले मणिकंदन पर चाकू से वार किया, फिर पत्थर से कुचल दिया। इससे पहले, 22 नवंबर, 2020 में तमिलनाडु हिंदू महासभा के राज्य सचिव नागराज की होसुर स्थित आनंद नगर में उनके आवास के पास बेरहमी से हत्या की गई थी। नागराज ने पुलिस से सुरक्षा भी मांगी थी, लेकिन उन्हें पुलिस सुरक्षा नहीं दी गई। इसी तरह, पिछले वर्ष सितंबर में दलित भाजपा नेता रंगनाथन को घर के बाहर बेरहमी से काट दिया गया था, जब वह बेटे का जन्मदिन मना रहे थे। रंगनाथन एआईडीएमके छोड़ कर भाजपा में आए थे।
पश्चिम बंगाल
यहां चुनावी रंजिश में अब तक सैकड़ों भाजपा कार्यकर्ताओं की मौत हो चुकी है। इस वर्ष पंचायत चुनाव की तारीख की घोषणा होने के बाद हिंसा और हत्या का जो दौर शुरू हुआ, वह चुनाव परिणाम आने के कई दिन बाद तक चलता रहा। चुनाव की तारीख की घोषणा से लेकर चुनाव के दिन तक 30 दिन में ही 36 राजनीतिक हत्याएं हुईं। वह भी तब, जबकि राज्य में 59 हजार केंद्रीय बलों और राज्य पुलिस की तैनाती के बावजूद हुआ। यही नहीं, चुनाव परिणामें के बाद भड़की हिंसा में भी दर्जनों लोग मारे गए। इसके अलावा, हिंदुओं पर कट्टरपंथी मुसलमानों के हमले भी बढ़े हैं। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार पश्चिम बंगाल में जनवरी 2021 से जून 2022 के बीच साम्प्रदायिक हिंसा के 65 मामले दर्ज किए गए थे। यह आंकड़ा राज्य के 12 कमिशनरेट और जिला पुलिस द्वारा दिया गया था। सर्वाधिक 28 मामले हावड़ा देहात पुलिस ने, जबकि नादिया जिले में कृष्णानगर पुलिस ने 13 और आसनसोल दुगार्पुर पुलिस कमिशनरेट ने हिंसा के 10 मामले दर्ज किए थे। हालांकि प्रतिक्रियाओं से पता चला कि 18 महीने के दौरान दंगों के 200 मामले सामने आए। इनमें 2021 में 129 और 2022 की पहली छमाही में 71 मामले देखे गए। तृणमूल के गुंडों के निशाने पर संघ और भाजपा के कार्यकर्ता हैं।
कर्नाटक
जुलाई 2022 में कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले में भाजपा युवा मोर्चा के जिला सचिव प्रवीण नेट्टारू की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। हमलावरों ने धारदार हथियारों से उन पर हमला किया था। इस मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने सितंबर में दक्षिण कन्नड जिले में प्रतिबंधित आतंकी संगठन पीएफआई की राजनीतिक विंग एसडीपीआई के राष्ट्रीय सचिव रियाज फरंगीपेट के घर पर छापा भी मारा था। कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने प्रवीण की हत्या सुनियोजित और संगठित अपराध बताया था। लेकिन सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने खुलकर मुस्लिम तुष्टिकरण शुरू कर दिया है। सबसे पहले कांग्रेस सरकार ने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कन्वर्जन विरोधी कानून रद्द करने, पाठ्यपुस्तकों से वीर सावरकर और डॉ. हेडगेवार को हटाने और मुसलमानों के लिए आरक्षण की घोषणा की। यहां तक कि मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम भी रोक दिया। हालांकि हिंदुओं के कड़े विरोध के बाद सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा।
राजस्थान
28 जून, 2022 को कन्हैयालाल की गला काट कर हत्या कर दी गई। जिहादियों ने कन्हैयालाल की हत्या के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया था। इनमें अधिकतर पाकिस्तानी जुड़े हुए थे, जो भड़काऊ संदेश डालते थे। तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के सरगना के कहने पर दो मुसलमानों ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। राज्य में मुसलमानों के आतंक का आलम यह है कि त्योहार चाहे हिंदुओं का हो या मुसलमानों का, हिंदुओं पर पत्थरबाजी एक रिवाज सा हो गया है।
पंजाब
पंजाब में भी हिंदू, खासकर हिंदू संगठनों के नेता और कार्यकर्ता तस्करों और खालिस्तानियों के निशाने पर हैं। 5 वर्ष पहले लक्षित हमलों में कई हिंदू नेताओं को जान से हाथ धोना पड़ा था। इनमें रा.स्व.संघ के प्रांत सहसंघचालक बिग्रेडियर (सेवानिवृत्त) जगदीश गगनेजा भी शामिल थे। राज्य में सक्रिय ईसाई मिशनरीज भी बडे़ पैमाने पर सिखों और हिंदुओं को गुमराह कर उनका कन्वर्जन कर रही हैं। इसके अलावा, पाकिस्तान से ड्रोन के जरिये हथियारों और मादक पदार्थ भेजे जा रहे हैं। यह सब सरकार की नाक के नीचे हो रहा है। पिछले वर्ष अप्रैल में पटियाला में ‘खालिस्तान मुदार्बाद मार्च’ के दौरान हिंसा भड़की। इसके बाद खालिस्तान समर्थकों ने काली माता मंदिर में तोड़फोड़ की थी। बीते कुछ वर्षों से पंजाब में लक्षित हमले, जबरन वसूली के मामले भी बढ़े हैं।
केरल
केरल में रा.स्व.संघ और भाजपा कार्यकर्ता जिहादियों और वामपंथियों के निशाने पर हैं। राज्य में खुलेआम हिंदुओं की बेरहमी से हत्या की जा रही है। संघ और भाजपा से जुड़े कार्यकर्ताओं को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है। इस साल मई में कार से खींच कर एक महिला को मुसलमानों ने गोली मार दी। इसके बाद हिंदुओं को धमकाया कि संघ और भाजपा का समर्थन करने वालों का यही हाल किया जाएगा। इसी तरह, पिछले वर्ष पलक्कड़ में संघ के स्वयंसेवक श्रीनिवासन और उससे पहले भाजपा नेता रंजीत विश्वास की हत्या कर दी गई थी। केरल में अब तक संघ और भाजपा के दर्जनों कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है। राज्य में में ईसाई, वामपंथी और मुस्लिम, तीनों ही संघ और भाजपा का विरोध करते हैं। केरल में राजनीतिक हत्या की शुरुआत भारतीय जनसंघ कार्यकर्ता रामकृष्णन की हत्या से हुई थी।
दिल्ली
दिल्ली में श्रद्धा हत्याकांड को कैसे भूला जा सकता है? श्रद्धा महरौली में आफताब अमीन के साथ लिवइन में रहती थी। 18 मई, 2022 को उसने गला घोंट कर श्रद्धा की हत्या कर दी और उसके शव को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर ठिकाने लगा दिया। इसी साल मई में दिल्ली के शाहाबाद डेयरी इलाके में मुस्लिम युवक ने 16 वर्षीया साक्षी की चाकू से गोद कर हत्या कर दी। हत्यारे का नाम साहिल है। उसने साक्षी पर 20 बार चाकू से वार किया। इसके बाद पत्थर से उसका सिर कुचल दिया। यह सब उसी दिल्ली में हुआ, जहां सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के नेता सुनियोजित हिंदू विरोधी दंगे की साजिश में शामिल थे।
बिहार
पिछले साल दिसंबर में भागलपुर के एक बाजार में शकील नाम के एक मुस्लिम ने महिला की बेरहमी से हत्या कर दी थी। महिला का नाम नीलम यादव था। हत्यारे ने नीलम के कान, हाथ, पैर और स्तन भी काट दिए थे। उसने यह सब इसलिए किया, क्योंकि नीलम उससे मिलना नहीं चाहती थी। बीते कुछ वर्षों में राज्य के नेपाल से लगते सीमावर्ती जिलों में मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ी है। हिंदू त्याहारों और शोभायात्राओं पर जिहादी हमले भी बढ़े हैं। लेकिन राज्य सरकार इससे बेखबर है और तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है। हाल ही में राज्य सरकार ने मुसलमानों के लिए एक योजना शुरू की है, जिसमें उन्हें उद्यम स्थापित करने के लिए सस्ते ब्याज पर 5 लाख से 10 लाख रुपये कर्ज देगी।
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