ईरान के चाबहार बंदरगाह को लेकर भारत और उस देश के बीच कुछ चुभने वाले मुद्दे ताजा जानकारी के अनुसार, सुलझा लिए हैं। इसके मायने ये है कि अब दोनों देशों के बीच जल्दी ही एक लंबी अवधि के करार पर हस्ताक्षर होने जा रहे हैं, जो इन्हीं कुछ मुद्दों की वजह से अटका पड़ा था। यानी चाबहार को लेकर अब भारत और ईरान के बीच कोई विवाद नहीं बचा है।
इस विषय से जुड़े नजदीकी सूत्रों के अनुसार, इस समझौते पर बाकायदा हस्ताक्षर होने में अब कोई बाधा नहीं बचा है। चाबहार पर इस नई प्रगति को पाकिस्तान तथा चीन के लिए एक तगड़ा आघात बताया जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि ईरान को अंतरराष्ट्रीय पहुंच देने वाले चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान के उस ग्वादर बंदरगाह की तोड़ की तरह माना जाता है, जिस पर पाकिस्तान पर धमक दिखाकर चीन की थानेदारी चलती है।
सूत्रों ने बताया है कि, भारत तथा ईरान ने चाबहार जैसे रणनीतिक तौर पर बहुत अहम बंदरगाह के परिचालन से जुड़े 10 साल के समझौते को लेकर सामने आए विवाद को सुलझा लिया है। समझौते को लेकर दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व ने हरी झंडी दिखा दी है इसलिए माना जा रहा है कि बंदरगाह के परिचालन सहित अन्य सभी बातों को लेकर करार पर हस्ताक्षर अब जल्दी ही हो सकते हैं।
इतना ही नहीं, भारत और ईरान, दोनों ही इधर कुछ महीनों से रुपए—वोस्ट्रो खाते को ‘रीचार्ज’ करने की प्रक्रिया पर भी काम कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि ईरान पर अमेरिका ने कुछ आर्थिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं। उक्त खाते के क्रियान्वित होने से आर्थिक तंगी का सामना कर रहे ईरान को एक बड़ी राहत और मदद मिल सकती है। इसलिए ईरान की पूरी कोशिश है कि इस बारे में भी कुछ चीजें तय हो जाएं।
भारत के लिहाज से चाबहार बंदरगाह रणनीतिक महत्व वाला स्थान है। इसका कारण यह है कि यह बंदरगाह पश्चिमी एशिया तथा मध्य एशियाई देशों तक सीधी पहुंच देता है। गत वर्ष सितंबर माह में पहली बार यह जानकारी सामने आई थी कि ईरान तथा भारत चाबहार को लेकर लंबी अवधि के करार पर चर्चा कर रहे हैं। ईरान के मीडिया में आईं रिपोर्ट बताती है कि प्रस्तावित करार पर गत अगस्त माह में तेहरान में एक बैठक हुई थी जिसमें ईरान के विदेश मंत्री अमीर अब्दुल्लाहियन तथा नई दिल्ली में ईरानी दूत इराज इलाही के बीच बात हुई थी। तेहरान टाइम्स लिखता है कि अब्दुल्लाहियन ने ईरान की ‘लुक ईस्ट’ नीति का उल्लेख करते हुए भारत का रेखांकित किया था।
वैसे, इस समझौते की वजह से, भारत से चाबहार बंदरगाह के माध्यम से चावल, चाय तथा दवाओं जैसी चीजों का निर्यात ज्यादा आसानी से हो सकेगा। ग्वादर के रास्ते भारत को यह सुविधाा उपलब्ध नहीं है। जैसा पहले बताया, ग्वादर है तो पाकिस्तान में, लेकिन यह बना चीनी पैसों से है इसलिए वहां हुक्म भी चीन का चलता है, जिसमें भारत के लिए फिलहाल कोई रास्ता मिलने के आसार नहीं हैं और भारत उसे कुछ खास तरजीह भी नहीं देता। ग्वादर की काट चाबहार बंदरगाह भारत को उस तरफ से चिंतामुक्त करने के लिए पर्याप्त साबित होने वाला है। भारत और ईरान के बीच लंबित उक्त समझौता पर हस्ताक्षर के बाद, भारत की नजह में ग्वादर का वैसे भी कोई मोल नहीं रह जाएगा।
चाबहार बंदरगाह पर लंबे वक्त का यह करार क्षेत्र के अधिकार में मध्यस्थता से जुड़ी एक शर्त पर अटका हुआ था, इसके अलावा कुछ और मुद्दे थे जिन पर स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही थी। लेकिन अब इस विषय से जुड़े सूत्रों का कहना है कि दोनों पक्ष मध्यस्थता को लेकर रहे विवाद को सुलझा चुके हैं तथा दूसरे विषयों पर भी तेजी से आगे बढ़ा जा रहा है। इसके साथ ही दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व से भी हरी झंडी का इंतजार था जिसे मिलने में अब देर नहीं होगी। इसलिए तय माना जा रहा है कि करार जल्दी पूरा होगा। ऐसा मानने के पीछे वजह यह भी है कि चाबहार बंदरगाह के शाहिद बेहिश्ती टर्मिनल को लेकर भारत के संचालन से जुड़े शुरुआती करार का इस वर्ष के लिए नवीनीकरण किया जा चुका है।
उल्लेखनीय है कि चाबहार बंदरगाह ईरान के सागर में मकरान तट पर बना है। यहां से अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया आदि तक चाय, खाने की चीजें, बिजली उपकरण, निर्माण में काम आने वाली सामग्री तथा भारी यंत्रों जैसी चीजों को भेजा जा सकता है।
भारत के लिहाज से चाबहार बंदरगाह रणनीतिक महत्व वाला स्थान है। इसका कारण यह है कि यह बंदरगाह पश्चिमी एशिया तथा मध्य एशियाई देशों तक सीधी पहुंच देता है। गत वर्ष सितंबर माह में पहली बार यह जानकारी सामने आई थी कि ईरान तथा भारत चाबहार को लेकर लंबी अवधि के करार पर चर्चा कर रहे हैं। ईरान के मीडिया में आईं रिपोर्ट बताती है कि प्रस्तावित करार पर गत अगस्त माह में तेहरान में एक बैठक हुई थी जिसमें ईरान के विदेश मंत्री अमीर अब्दुल्लाहियन तथा नई दिल्ली में ईरानी दूत इराज इलाही के बीच बात हुई थी। तेहरान टाइम्स लिखता है कि अब्दुल्लाहियन ने ईरान की ‘लुक ईस्ट’ नीति का उल्लेख करते हुए भारत का रेखांकित किया था। उन्होंने यह उम्मीद भी जताई थी कि चाबहार बंदरगाह को विस्तार देने के लिहाज से भारत के साथ जल्दी ही एक ‘तय करार’ पर हस्ताक्षर होंगे।
इस करार को लेकर ईरान इसलिए भी ज्यादा उत्सुक है क्योंकि आर्थिक तंगी के चलते ईरान के रुपये के भंडार सिकुड़ गए हैं जिससे वह देश भारत से बासमती चावल तथा चाय जैसी चीजें आयात करने में दिक्कतों का सामना कर रहा है। आंकड़े बताते हैं कि साल 2014-15 से ईरान भारतीय बासमती चावल का सबसे बड़ा आयातक रहा है। ईरान ने साल 2022-23 में 998,879 मीट्रिक टन खुशबूदार चावल खरीदा है। सूत्रों के अनुसार, इस दृष्टि से दोनों देशों के लघु आयातकों तथा निर्यातकों ने भी कारोबार आगे चलाए रखने की एक प्रक्रिया निकाल ली है।
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