बिहार मुस्लिमों की प्रयोगशाला है। यहां जिहाद के नए-नए तरीकों के लिए प्रयोग चलते रहते हैं। ताजा मामला बिहार के ही सीवान जिले का है। जहाँ उत्तरी बिहार के इकलौते अल्पसंख्यक महाविद्यालय ‘जेड ए इस्लामिया कॉलेज’ ने तुगलकी फरमान जारी किया है। आदेश में कहा गया है कि कॉलेज कैंपस में लड़के और लड़कियों के एक साथ बैठने और हंसी मजाक करने पर नामांकन रद्द कर दिया जाएगा। कॉलेज के सचिव और प्राचार्य के हस्ताक्षर वाले दो वाक्यों का नोटिस जारी किया गया है।
इसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि धारा 29 और 30 के तहत यह एक अल्पसंख्यक महाविद्यालय है और इसके सारे प्रबंधन का अधिकार इसके शासी निकाय में निहित है। अर्थात इसकी समिति कोई भी निर्णय ले सकती है। खास बात ये है कि राज्य के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी का गृह जिला भी सीवान ही है।
क्या है पूरा मामला
जेडए कॉलेज के तुगलकी फरमान के पीछे का तात्कालिक कारण दो लड़कियों की आपसी मारपीट बताई जा रही है। कॉलेज की दो लड़कियां एक ही लड़के को लेकर उलझ गईं थीं। स्नातक (भूगोल) की तृतीय वर्ष की एक छात्रा का संबंध स्नातक (अंग्रेजी) तृतीय वर्ष के एक छात्र से था। जबकि वो छात्र स्नातक (जंतु विज्ञान ) द्वितीय खंड की एक छात्रा से भी मिलता-जुलता था। बस इसी बात पर दोनों लड़कियों के बीच तकरार शुरू हुई। मामला बहसबाजी से हाथा-पाई और मारपीट तक पहुंच गया। कॉलेज कैंपस के अंदर रूम में और बाहर सड़क पर दोनों में जमकर मारपीट हुई। इसका वीडियो भी वायरल हुआ। बताया जा रहा है कि ये घटना 25 सितंबर के आसपास है। सोशल मीडिया पर वायरल इस वीडियो में एक लड़की ने लाल और दूसरी ने काला बुर्का पहना हुआ है।
पहली बार बिहार के किसी संस्थान में इस तरह का आदेश जारी किया गया है। कॉलेज अधिकारियों ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य परिसर में अनुशासन लागू करना और छात्रों को नियमित रूप से कक्षाओं में उपस्थित होने के लिए मजबूर करना है। एक अधिकारी ने कहा, “हालांकि यह शुरुआत में लड़कों का कॉलेज था, लेकिन हाल के वर्षों में हमने लड़कियों को प्रवेश देना शुरू कर दिया है और उनकी संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है।”
बहरहाल, कॉलेज के आदेश की कड़ी आलोचना हो रही है। पद्मश्री सुधा वर्गीस ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, “वे (छात्र) वयस्क हैं और जानते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है। ऐसा आदेश उनकी स्वतंत्रता के अधिकार का अतिक्रमण करने जैसा है।”
उत्तर बिहार का इकलौता अल्पसंख्यक महाविद्यालय
बिहार में 6 अल्पसंख्यक महाविद्यालय हैं। इसमें 1 उत्तर बिहार में और 5 दक्षिण बिहार में स्थित है। इस कॉलेज की स्थापना 1971 में एम एन अहमद गनी ने अपने पिता मरहूम मो अब्दुल गनी की स्मृति में किया था। कॉलेज के लिए जमीन ज़ाकिया नामक महिला ने दी थी। वह नाबल्द थी। 1998 में एम एन अहमद गनी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र ज़फर अहमद गनी कॉलेज के सचिव बने। 1998 से ज़फ़र ही कॉलेज के सचिव हैं। कॉलेज में इंटर से लेकर पीजी तक की पढ़ाई का दावा किया जाता है। इसके अलावा फैशन डिजाइनिंग, टूरिज्म और ट्रैवल मैनेजमेंट, कंप्यूटर एप्लीकेशन और बायो टेक्नोलॉजी की भी पढ़ाई होती है। इस संस्थान को 1986 – 87 में अल्पसंख्यक कॉलेज का दर्जा मिला। उस समय सिर्फ स्नातक तक की ही पढ़ाई होती थी। बाद में स्नातकोत्तर की भी पढ़ाई होने लगी। कॉलेज के 75 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी और 80 प्रतिशत विद्यार्थी मुस्लिम हैं।
भ्रष्टाचार के मामले सामने नहीं आते
स्थानीय लोग बताते हैं कि अल्पसंख्यक कॉलेज होने के कारण इसके भ्रष्टाचार के मामले सामने नहीं आते। जबकि, यहाँ पर पढ़ाई के नाम पर कई तरह के अवैध शुल्क बच्चों से लिए जाते हैं। विद्यार्थियों से परीक्षा के लिए सरकारी शुल्क से कई गुना अधिक वसूला जाता है। इंटर में लगभग 3 हजार विद्यार्थी पढ़ते हैं। प्रति विद्यार्थी ढाई हजार रुपए अतिरिक्त लिए जाते हैं। यानि प्रति वर्ष 75 लाख रुपए सिर्फ इंटर (एक वर्ष) के विद्यार्थियों से वसूला जाता है, जो सीधा समिति की जेब में जाता है। यही स्थिति स्नातक और स्नातकोत्तर की है। विद्यार्थी मजबूर हैं। चाहकर भी कहीं शिकायत नहीं कर पाते।
एक नवनियुक्त शिक्षक ने नाम नहीं छपने की शर्त पर बताया कि कॉलेज में 56 शिक्षकों की नियुक्ति हुई है। अल्पसंख्यक संस्थानों में यूजीसी के मानकों पर संस्था नियुक्ति कर लेती है। इस कॉलेज में भी हाल ही में 56 सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति हुई। इसमें 10 तो सिर्फ अलीगढ़ के हैं। इसके लिए प्रति शिक्षक लाखों रुपए लिए गए। समिति शिक्षकों को वेतन भी नहीं दे रही है।
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