इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए कहा कि हिन्दू विवाह पूरे रीति रिवाज से होने चाहिए. अगर उसमें सप्तपदी जैसी महत्वपूर्ण रस्म को नहीं पूरा किया गया है तो ऐसे विवाह को वैध नहीं माना जाएगा. हिन्दू विवाह में सात फेरे लेना अनिवार्य घटक है. इसके बगैर शादी को पूर्ण नहीं माना जा सकता है.
वर्ष 2017 में याचिकाकर्ता स्मृति सिंह का विवाह सत्यम सिंह से हुआ था. कुछ दिन बाद विवाद होने लगा. पति – पत्नी का साथ रहना संभव नहीं हो पा रहा था. इसके बाद याचिकाकर्ता स्मृति सिंह अपने मायके में रहने लगी. स्मृति सिंह ने अपने पति समेत ससुराल के अन्य लोगों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया और एफआईआर भी दर्ज करा दी. पुलिस ने विवेचना के बाद पति और ससुराल वालों के खिलाफ आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया. इसके बाद स्मृति सिंह ने मेंटेनेंस का मुकदमा दायर किया. मिर्जापुर जनपद न्यायालय ने स्मृति सिंह के वाद की सुनवाई के बाद वर्ष 2021 में आदेश दिया कि स्मृति सिंह का पति सत्यम सिंह हर महीने चार हजार रुपये भरण पोषण के लिए स्मृति सिंह को देगा. इसके बाद पति सत्यम सिंह ने आरोप लगाया कि स्मृति सिंह ने दूसरा विवाह कर लिया है. सत्यम सिंह ने वाराणसी जनपद न्यायालय में इस सम्बन्ध में मुकदमा भी दायर किया. इसके बाद स्मृति सिंह ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की.
उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने अपने निर्णय में कहा कि शादी के संबंध में समारोह शब्द का अर्थ है, ‘उचित समारोहों और उचित रूप में विवाह का उत्सव मनाना’. जब तक विवाह को उचित समारोहों और उचित रूप के साथ नहीं मनाया जाता है या किया जाता है, तब तक इसे ‘संपन्न’ नहीं कहा जा सकता है. यदि विवाह वैध नहीं है तो यह कानून की नजर में विवाह नहीं है. हिंदू कानून के अंतर्गत विवाह के लिए सात फेरे आवश्यक हैं. न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 को आधार मानते हुए यह कहा कि हिन्दू विवाह पूरे रीति रिवाज से होना चाहिए. जिसमें सप्तपदी (विवाह के लिए सात फेरे) उस विवाह को पूर्ण बनाती है. इस मामले में उक्त साक्ष्य की कमी है.
टिप्पणियाँ