भारत में भी सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पहल पर अदालत की कार्यवाही, दलीलों आदि के लाइव ट्रांसक्रिप्शन (लेखन) की परियोजना शुरू हुई है जिसमें एआई का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस परियोजना की मदद से अदालत की कार्यवाही का स्थायी रिकॉर्ड रखा जा सकेगा। फिलहाल यह संविधान पीठ में काम कर रही है।
जेनरेटिव एआई के फायदों को देखते हुए भारत सहित कई सरकारों ने इसके प्रयोग शुरू कर दिये हैं। अमेरिका का रक्षा विभाग (पेंटागन) सैनिक उपकरणों के नये डिजाइन बनाने के लिए मशीनी दिमाग को आजमा रहा है तो ब्रिटेन और आॅस्ट्रेलिया की सरकारें सड़कें, पुल, परिवहन आदि की योजना बनाने में इसका फायदा उठा रही हैं। ब्रिटेन का एक उदाहरण दिलचस्प है। वहां वाहनों के चालान जैसे मामूली मामलों में उत्तर तैयार करने के लिए भी वकील इतनी ज्यादा फीस लेते हैं कि वह सामान्य व्यक्ति के बस की बात नहीं है। ‘डू नॉट पे’ नामक चैटबॉट ने इसका समाधान दे दिया है जो खुद ही उत्तर और दलीलें तैयार करने लगा है।
भारतीय रेलवे के सेंटर फॉर रेलवे इन्फॉर्मेशन सिस्टम्स (क्रिस) ने एआई पर आधारित यह एप्प बनाया है जो ट्रेनों में सीटों के खाली रह जाने की समस्या के समाधान में हाथ बंटाएगा। इसने रेलयात्राओं से जुड़े बहुत सारे डेटा का विश्लेषण किया है, जैसे किन रेलमार्गों पर किस सीजन में ज्यादा मांग रहती है और किन रेलगाड़ियों के कौन से स्टेशनों के बीच बुकिंग कम होती है। इससे यात्रियों की भी मदद होगी और रेलवे की भी। भारतीय रेलवे की 200 रेलगाड़ियों में इसका इस्तेमाल शुरू हो चुका है
आपने पढ़ा होगा कि भारत में भी सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पहल पर अदालत की कार्यवाही, दलीलों आदि के लाइव ट्रांसक्रिप्शन (लेखन) की परियोजना शुरू हुई है जिसमें एआई का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस परियोजना की मदद से अदालत की कार्यवाही का स्थायी रिकॉर्ड रखा जा सकेगा। फिलहाल यह संविधान पीठ में काम कर रही है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ अदालतों में तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रहे हैं। अदालतों की कार्यवाही की यूट्यूब पर लाइव स्ट्रीमिंग से लेकर पेपरलेस कोर्ट की स्थापना जैसी पहल की गई है। दस्तावेजों को कागज के बजाय स्कैन करके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सहेजा जाने लगा है। इससे दस्तावेज तो सुरक्षित होंगे ही, उन्हें न्यायाधीशों, वकीलों, छात्रों और नागरिकों द्वारा इस्तेमाल भी किया जा सकेगा। इसका पर्यावरण पर भी असर पड़ेगा क्योंकि भारत की अदालतों में ए-3 साइज के 11 अरब कागजों का सालाना इस्तेमाल होता है।
साल 2014 में हुए एक अध्ययन में कहा गया था कि सरकारी कामकाज का 37.5 प्रतिशत समय दस्तावेजों को निपटाने और दूसरी प्रक्रियाओं में निकल जाता है जबकि सिर्फ 9 प्रतिशत समय में ही सरकारी अधिकारी कोई ठोस काम कर पाते हैं। ऐसी बहुत सी प्रक्रियाएं हैं जो बार-बार एक ही ढंग से पूरी की जाती हैं और बहुत सारे दस्तावेज तथा फॉर्म भी एक जैसे ही होते हैं। इस तरह की दोहराव वाली प्रक्रियाओं को आटोमैटिक तरीके से पूरा करने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद ली जा सकती है। आज कंपनी मामलों के मंत्रालय के वेब पोर्टल एमसीए 3.0 में कुछ-कुछ ऐसा ही हो रहा है। यहां कंपनियों की तरफ से नियामकों के सामने दाखिल किये जाने वाले दस्तावेजों का विश्लेषण एआई के जरिए किया जाता है। साथ ही मशीनी अनुवाद का भी प्रयोग किया गया है।
कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में आईबीएम कंपनी की मदद से ग्राहकों के प्रश्नों और शिकायतों के उत्तर देने के लिए माईसर्वे नाम का एआई-आधारित एप्प बनाया गया है। इसी तरह नॉर्थ कैरोलिना (अमेरिका) में सरकारी चैटबॉट पासपोर्ट सेवाओं से जुड़े करीब 90 प्रतिशत प्रश्नों के जवाब देने में सक्षम है। इससे बोलकर भी सवाल किये जा सकते हैं और लिखकर भी।
भारतीय रेलवे के सेंटर फॉर रेलवे इन्फॉर्मेशन सिस्टम्स (क्रिस) ने एआई पर आधारित यह एप्प बनाया है जो ट्रेनों में सीटों के खाली रह जाने की समस्या के समाधान में हाथ बंटाएगा। इसने रेलयात्राओं से जुड़े बहुत सारे डेटा का विश्लेषण किया है, जैसे किन रेलमार्गों पर किस सीजन में ज्यादा मांग रहती है और किन रेलगाड़ियों के कौन से स्टेशनों के बीच बुकिंग कम होती है। इससे यात्रियों की भी मदद होगी और रेलवे की भी। भारतीय रेलवे की 200 रेलगाड़ियों में इसका इस्तेमाल शुरू हो चुका है।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट एशिया में डेवलपर मार्केटिंग के प्रमुख हैं)
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