पेशे से दूध कारोबारी इकबाल के बेटे आमिर को पड़ोस में रहने वाली साजिदा से प्यार हो गया। मगर जल्दी ही उन दोनों को पता चल गया कि उन दोनों का निकाह नहीं हो सकता क्योंकि साजिदा और आमिर की बिरादरी या कहें जाति अलग है।
रियावली के हाजी इकबाल डेयरी पर दूध पहुंचाने का काम करते हैं और आमिर गाँव के घरों से दूध लेने जाया करता था। साजिदा का परिवार भी दूध बेचने के काम में है और इस प्रकार इन दोनों की मुलाकात हुई और फिर प्यार हुआ। साजिदा अब्बासी बिरादरी की थी। दोनों ही प्यार करने वाले अपनी दुनिया कहीं और जाकर बसाना चाहते थे। मगर जाति-बिरादरी अलग होने के चलते दोनों के कुनबे वाले तैयार नहीं थे। इसलिए दोनों ने घर से भागकर शादी करने का फैसला किया और फिर फिर दो अक्टूबर को घर से भागकर निकाह का फैसला लिया।
मुजफ्फरनगर के रतनपुरी में रहने वाले आमिर और साजिदा के गायब होने की खबर तेजी से फ़ैल गयी। कुछ लोगों ने कहा उन्होंने आमिर को बाइक से जाते हुए देखा है।
साजिदा के चाचा ने रतनपुरी थाने में आमिर और उसके चचेरे भाई के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया, मगर इसी बीच इन दोनों की आत्महत्या की खबर गाँव में आ गयी। वह दोनों ही मुजफ्फरनगर से मेरठ पहुंचे थे और वहां पर एक होटल में टिके थे। दोनों ने बाथरूम में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। होटल में काम करने वालों ने कई बार दरवाजा खटखटाया था और जब कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी तो उन्होंने आमिर को कॉल किया था, जब उस पर भी कोई जबाव नहीं मिला तो दरवाजे को मास्टर चाबी से खोला गया और फिर बाथरूम में जाकर देखा तो दोनों ही चुन्नी से लटके हुए मिले थे।
होटल के मैनेजर के अनुसार दोपहर 12 बजे दोनों होटल आए थे। दोनों ने अपनी आईडी पर कमरा लिया था। लड़के के नाम से हमने कमरा बुक किया। एक दिन के लिए उनकी कमरे की बुकिंग थी। कमरा नंबर-104 में दोनों ठहरे हुए थे।” फिर उन्होंने बताया कि “इसके बाद शाम को लगभग साढ़े चार बजे मुजफ्फरनगर रतनपुरी थाना पुलिस के साथ आमिर और साजिदा के अब्बा और अम्मी होटल पहुंचे थे और उन्होंने बताया कि यह दोनों ही मंगलवार से लापता है और हमारे होटल की लोकेशन आ रही है तो हमने पुलिस को दोनों लोगों के बारे में जानकारी दी और जब कमरे को खोला तो दोनों के शव लटके थे!”इसके बाद मेरठ पुलिस को सूचना दी गयी और शवों को उतारकर आवश्यक कार्यवाही की गयी। और इसके बाद होटल को खाली कर बंद करा दिया गया है।
यह बहुत ही दुखद है कि जहां एक ओर हर राजनेता राजनीति करने के लिए हिन्दुओं के बीच जातियों पर बात कर रहा है, जबकि हिन्दुओं में अब ऐसे विवाह लगभग आम हो चुके हैं, परन्तु मुस्लिमों में ऐसा नहीं है, ऐसी एक नहीं कई घटनाएं सामने आई हैं जिनमें अलग बिरादरी का होने के चलते प्यार करने वालों को अलग होना पड़ा है। हाल ही में एक नव विवाहित मुस्लिम युवती की भी हत्या उसके परिजनों ने ही इस कारण कर दी थी क्योंकि उसने बिरादरी से बाहर निकाह कर लिया था।
दुर्भाग्य यह है कि साजिदा और आमिर की मौत पर सन्नाटा छाया रहता है। यह तक आवाज नहीं आती कि क्या मुस्लिमों में भी जातियां हैं? क्योंकि इस्लाम को जाति से परे मजहब बताया जाता है। हालांकि समय समय पर पसमांदा विद्वान डॉ फैयाज़ अहमद फैजी इस्लाम में फैले जातिवाद पर प्रहार करते रहते हैं। और ऐसा भी नहीं है कि इस्लाम में आज जाति-बिरादरी की बात होती है। डॉ फैयाज़ ने अपने एक लेख में इसकी ऐतिहासिकता के विषय में लिखा था कि ““बादशाह अकबर ने कसाई और मछुआरों के लिए राजकीय आदेश जारी किया था कि उनके घरों को आम आबादी से अलग कर दिया जाए और जो लोग इस जाति से मेलजोल रखें, उनसे जुर्माना वसूला जाए। अकबर के राज में अगर निम्न श्रेणी का व्यक्ति किसी उच्च श्रेणी के किसी व्यक्ति को अपशब्द कहता था तो उस पर कहीं अधिक अर्थदंड लगाया जाता था।“
डॉ फैयाज़ ने अपने इसी लेख में निकाह को लेकर लिखा है कि “इस्लामी फिकह में शादी विवाह के लिए कुफू का सिद्धांत है जिसमें जाति, नस्ल, धन, पेशा और क्षेत्र (अरबी-अजमी) आदि में बराबरी की बात कही गई है। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड द्वारा प्रकाशित मजमूये कवानीने इस्लामी उक्त बातों का समर्थन करता है। इसे बोर्ड मुस्लिम समाज के पर्सनल लॉ के मामले में वैधानिक दस्तावेज की मान्यता देता है।“
इस्लाम में जाति बिरादरी को लेकर अपनी पुस्तक अकबर में राहुल सांकृत्यायन लिखते हैं –
“अरब आदमी नहीं, अरब खून के महत्व को जरूर माना जाता था,” फिर उन्होंने लिखा कि “शेख सबसे श्रेष्ठ माने जाते थे! शेख का अर्थ हुआ गुरु या सत पुरुष। उनके बाद पैगम्बर के अपने वंश और रक्त से संबंधी होने से सैय्यदों का नंबर आता था। मध्य एशिया में उन्हें खोजा कहा जाता था। मुग़ल पहले तुर्क कहाए जाते थे।” उन्होंने विस्तार से अकबर के समय इस्लाम में व्याप्त जाति-बिरादरी के विषय में लिखा है। मगर दुर्भाग्य की बात यह है कि न ही तो डॉ फैयाज़ की बात को लेकर यहाँ पर विमर्श होता है और न ही राहुल सांकृत्यायन द्वारा रचित पुस्तकों के विमर्श पर और जिसका खामियाजा आमिर और साजिदा जैसे युवक-युवतियों को उठाना पड़ रहा है क्योंकि उनकी मौत के बाद भी विमर्श नहीं होता।
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