जैसी आशंका जताई जा रही थी, ठीक उसी लीक पर चलते हुए मालदीव में नए राष्ट्रपति बने मोहम्मद मुइज्जू ने भारत विरोधी सोच पर चलने का संकेत दिया है। वे पूर्व राष्ट्रपति सोलिह को हरा कर कुर्सी पर आए हैं। शुरू से ही चीन के प्रभाव में रहे मुइज्जू को भारत की दृष्टि से इसीलिए कोई सहज नहीं माना जा रहा था, जबकि उनके पूर्ववर्ती सोलिह ने भारत से नजदीकी संबंध बनाए रखे थे और चीन की उस देश में पैर जमाने की कोशिशों का प्रतिकार किया था। लेकिन अब इस हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन का दबदबा बढ़ता जाएगा, ऐसा विशेषज्ञों को लगने लगा है, क्योंकि चुनाव में जीतने के फौरन बाद एक समारोह में मुइज्जू ने अपने भाषण में अपनी सरकार की भावी नीति से पर्दा हटा दिया है। उन्होंने कहा है कि वे अपने देश में किसी ‘विदेशी सेना’ को नहीं रहने देंगें।
उल्लेखनीय है कि मुइज्जू के चीन के प्रति अति झुकाव को सब जानते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि उन्हें कुर्सी पर लाने के लिए चीन ने हर तरह से छुपे तौर पर मदद की थी। विशेषज्ञ पहले से कहते आ रहे हैं कि मालदीव के ये नए राष्ट्रपति मुइज्जू हिन्द प्रशांत में चीन के इशारे पर भारत के लिए दिक्कत खड़ी कर सकते हैं। जबकि चीन खुद उस इलाके में अपनी थानेदारी चलाना चाहता है।
चुनावी जीत से खुशी में डूबे 45 साल के मुइज्जू ने उस समारोह में कहा कि मालदीव की हर तरह से आजादी सुनिश्चित की जाएगी। मुइज्जू ने यह भी कहा कि इस ओर उनकी कोशिशें पद की शपथ लेते ही आरम्भ होंगी। इसी के साथ मुइज्जू ने ‘कानून की जद’ में रहते हुए देश से ‘विदेशी सैनिकों’ को बाहर भेजने की अपनी सोच व्यक्त कर दी। उनके अनुसार, मालदीव के लोग किसी विदेश सैनिक को अपनी धरती पर नहीं चाहते और उनकी इच्छा नहीं है तो कोई विदेशी सैनिक यहां कैसे रह सकता है!
पिछले दिनों अपने भाषण में मुइज्जू ने कहा कि मालदीव से विदेशी सेनाओं को हटाने का अपना चुनावी वादा पूरा करेंगे। अर्थात उनका इंशारा मालदीव में मौजूद भारतीय सैनिकों की तरफ है। मुइज्जू ने कहा कि ‘देश के नागरिकों की इच्छा के खिलाफ इस देश में कोई विदेशी सैनिक नहीं रह सकता’। यानी एक तरह से पदभार संभालने के दिन से ही उन्होंने भारत को लेकर अपनी सोच सार्वजनिक कर दी है कि वे चीन के इशारों पर सरकार चलाएंगे। उनका ऐसा व्यवहार हिन्द प्रशांत क्षेत्र को आगे किस तरह अस्थिर करने वाला है, यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
अपनी चुनावी जीत से खुशी में डूबे 45 साल के मुइज्जू ने उस समारोह में कहा कि मालदीव की हर तरह से आजादी सुनिश्चित की जाएगी। कहा कि लोगों ने इसी वादे को स्वीकारते हुए उन्हें जिताया है। मुइज्जू ने यह भी कहा कि इस ओर उनकी कोशिशें पद की शपथ लेते ही आरम्भ होंगी। इसी के साथ मुइज्जू ने ‘कानून की जद’ में रहते हुए देश से ‘विदेशी सैनिकों’ को बाहर भेजने की अपनी सोच व्यक्त कर दी। उनके अनुसार, मालदीव के लोग किसी विदेश सैनिक को अपनी धरती पर नहीं चाहते और उनकी इच्छा नहीं है तो कोई विदेशी सैनिक यहां कैसे रह सकता है!
भारत का नाम लिए बिना मुइज्जू ने आगे कहा कि उनसे भेंट करने आने वाले सभी राजदूत यह जान लें कि उनके देश से निकट संबंध बनाने हैं तो उसके लिए यही शर्त है।
इससे पूर्व 2018 में मालदीव में हुए चुनावों में भारत के मित्र माने जाने वाले मोहम्मद सोलिह राष्ट्रपति बने थे। उस वक्त विपक्ष ने मालदीव में भारतीय सेना की उपस्थिति को लेकर खूब शोर मचाया था। यहां तक आरोप लगाया गया था कि सरकार ने भारतीय सैनिकों को यहां रखकर एक तरह से अपने देश को भारत के हवाले कर दिया है। उस वक्त भी मुइज्जू चीन से कथित सलाहें ले रहे थे। जबकि सोलिह ने इन आरोपों का खंडन करते हुए अपने देश के विकास में भारत से सहयोग लिया था जिसका लाभ भी मालदीव को हुआ था।
नए चीन समर्थक राष्ट्रपति के अनुसार, बात सिर्फ विदेशी सैनिकों की मौजूदगी की ही नहीं है, असल में देश अर्थव्यवस्था तक विदेशी ताकतों के हाथ में थी। विदेशों से संबंध के संदर्भ में मुइज्जू का कहना है कि वे विभिन्न देशों के राजदूतों से बाकायदा भेंट करेंगे। उन्होंने कहा कि उनकी ‘मालदीव समर्थक’ विदेश नीति का मानने वाले देशों के साथ वे राजनयिक संबंध बनाएंगे, लेकिन उनके राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होंगे।
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