जाति गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव गदगद हैं, लेकिन सच तो यह है कि इन दोनों ने पिछड़ों के अधिकारों पर डाका डलवाया है। डाका डालने वाले पिछड़े मुसलमान हैं।
बिहार में गत 33 वर्ष से पिछड़ों के नाम पर राजनीति हो रही है। चारा घोटाले में सजा काट रहे पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार, दोनों अपने को सामाजिक न्याय का मसीहा बता रहे हैं। जाति गणना की रिपोर्ट सामने लाकर ये दोनों दावा कर रहे हैं कि अब बिहार में पिछड़ों को राजनीति से लेकर हर क्षेत्र में उचित अधिकार मिलेगा। लेकिन रिपोर्ट को गहराई से पढ़ने पर यह सच सामने आ रहा है कि अब बिहार में पिछड़ों के अधिकारों पर मुसलमानों ने सेंध लगा दी है। मुसलमानों की आबादी बिहार में बढ़ी है। 2011 की जनगणना में बिहार में हिंदू आबादी 82.7% और मुस्लिम आबादी 16.9% थी। अब बिहार में करीब 82 फीसदी हिंदू और 17.7 प्रतिशत मुसलमान हैं। सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार बिहार में हिंदुओं की जनसंख्या 10 करोड़ 71 लाख 92 हजार 958 है। वहीं मुस्लिम जनसंख्या 2 करोड़ 31 लाख 49 हजार 925 है। मुसलमानों में यह बढ़ोतरी पिछड़ा, अति पिछड़ा और अनुसूचित जाति की श्रेणी में हुई है।
मुस्लिम समुदाय में अगड़े (असरफ) की जनसंख्या 2011 की जनगणना में 5 प्रतिशत थी, जो घटकर 4. 8 प्रतिशत हो गई है। अगड़ी जातियों में शेख, सैय्यद और पठान आते हैं। इनमें सबसे अधिक संख्या शेख की है। बिहार में 3.82 प्रतिशत शेख, 0.75 प्रतिशत पठान और 0.23 प्रतिशत सैय्यद हैं। बिहार में पिछड़ों की आबादी 27.12 प्रतिशत है। इसमें मुस्लिम पिछड़ों की संख्या 6.60 प्रतिशत है। मुस्लिम पिछड़ों में अंसारी और सुरजापुरी की संख्या सबसे अधिक है। अंसारी 3.55 प्रतिशत और सुरजापुरी 1.87 प्रतिशत हैं।
बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01 प्रतिशत है। इसमें 4.60 प्रतिशत मुस्लिम हैं। अत्यंत पिछड़ा में धुनिया और राईन की संख्या लगभग 2.9 प्रतिशत है। 19.65 प्रतिशत अनुसूचित जाति में 1.7 प्रतिशत मुस्लिम हैं। बिहार में मुस्लिम जनसंख्या की बढ़ोतरी विशेषकर इन्हीं दो वर्ग पिछड़ा और अति पिछड़ा में हुई है। एक प्रकार से देखा जाए तो समानता की दुहाई देने वाले मुस्लिम समुदाय में भी जबरदस्त विषमता है। सरकारी सुविधाओं का सर्वाधिक लाभ भी यही लेते हैं। बिहार में 50 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा है, लेकिन इस आरक्षण का लाभ लेने वाले लोगों में मुस्लिम समुदाय अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है। आर्थिक रूप से पिछड़ों में भी सबसे अधिक लाभ इन्हें मिलता है।
मुसलमानों को आरक्षण बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के विचारों के विपरीत है। बाबा साहब का कहना था कि आरक्षण कभी भी मजहब आधारित नहीं हो सकता है, लेकिन बिहार के जाति आधारित जनगणना पर ध्यान दिया जाए तो 96 प्रतिशत अल्पसंख्यकों को पिछड़े और अति पिछड़े का दर्जा देकर हिंदू समाज के वंचित वर्गों के साथ अन्याय हो रहा है।
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सांसद डॉ. संजय जायसवाल के अनुसार आज बिहार में सिर्फ कहने के लिए अल्पसंख्यकों के लिए अलग से आरक्षण नहीं है। वास्तविकता यह है कि 96 प्रतिशत अल्पसंख्यक समाज को आरक्षण दे दिया गया है। जायसवाल ने कहा कि शेखौरा, कुलहड़िया, शेरशाहबादी, ठकुराई जैसी अनेक जातियां या तो विदेश से आई हैं या फिर अगड़े समाज से कन्वर्जन करके अस्तित्व में आई हैं। इन सभी को अति पिछड़ा का दर्जा देकर संपूर्ण हिंदू पिछड़ा समाज के साथ हकमारी की गई है।
सबसे आश्चर्यजनक यह है कि इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार में ईसाई आबादी घटी है, जबकि ईसाइयों द्वारा कन्वर्जन के समाचार लगातार सुर्खियों में रहते हैं। सरकार के हिसाब से बिहार में मात्र 75,238 ईसाई हैं। जबकि गत सरकारी जनगणना में ईसाई समुदाय की आबादी 2 लाख थी। फिर 75 हजार कैसे हो गई? ईसाई समुदाय ने इस रिपोर्ट पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। राजन साह क्लेमेंट के अनुसार बिहार में रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट को मिला कर ईसाई आबादी 10 लाख से ऊपर हैं। उन्होंने प्रश्न करते हुए कहा कि क्या पूरे बिहार में केवल 75 हज़ार 238 ईसाई हैं या बिहार सरकार ने इस मत को खत्म करने का बीड़ा उठा लिया है? बिहार सरकार के अल्पसंख्यक आयोग में अपना प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से ईसाई समुदाय पहले से गुस्से में है।
बिहार सरकार ने लाल बहादुर शास्त्री और महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर जातिगत सर्वे की रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट को बिहार के कार्यकारी मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह ने पटना में जारी किया। इसके अनुसार बिहार में 2 करोड़ 83 लाख 44 हजार 160 परिवार हैं। इसमें पिछड़े वर्ग की आबादी 27.12%, अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01%, अनुसूचित जाति 19.65%, अनुसूचित जनजाति 1.68% और सामान्य वर्ग 15.52% है। खास बात यह है कि इस जातीय गणना के आंकड़े में आम जनता को कोई रुचि नहीं है। कपड़ा व्यवसायी सर्वानंद लाल का कहना है कि जातीय गणना कराने पर 500 करोड़ रुपए की बर्बादी की गई। इस रुपए से फैक्ट्री लगवा देते तो बिहार से पलायन रुकता।
पटना के मौर्यालोक दुकानदार कल्याण समिति के अध्यक्ष राजेश कुमार डब्ल्यू कहते हैं कि ये जनता के पैसे का दुरुपयोग है। कहीं न कहीं इससे सामाजिक समरसता प्रभावित होगी। हम लोग देश को भारतीय नजरिए से देखते हैं, वहां जातीय नजरिया अपनाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे जातीय द्वेष को बढ़ावा मिलेगा, जो कहीं से उचित नहीं है।
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