ताइवान की एक सरकारी एजेंसी ने ताइवान को ही सेना को मजबूत करने की सलाह दी है। इस एजेंसी ने एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी करके बताया है कि चीन की फौज का मुकाबला करने के लिए हमें अपने को और बेहतर बनाने की जरूरत है। ताइवान को लड़ाई की अपनी क्षमता को मजबूती देनी होगी।
चीन जिस तरह से आएदिन ताइवान के प्रति आक्रामक होता जा रहा है, उसके संदर्भ में इस रिपोर्ट पर ताइवान की सरकार ही नहीं, वहां के सुरक्षा संस्थान भी बड़ी बारीकी से गौर कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ताइवान की सरकार चीन के खतरे को भांपते हुए, उसकी रणनीति को समझते हुए, मानसिक, राजनीतिक तथा फौजी तैयारी को बढ़ाने की जरूरत है।
एक तरफ जहां रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई छिड़ी है, वहीं दूसरी तरफ चीन ताइवान को लेकर उकसावे वाले बयानों के साथ ही उसके आसमान में आएदिन अपने लड़ाकू विमान भेजकर युद्ध की धमकियां देता आ रहा है। चीन के ताइवान के प्रति इस आक्रामक रुख को दुनिया की ताकतें देख रही हैं। ऐसी परिस्थितियों में ताइवान की चोटी की सरकारी एजेंसी मेनलैंड अफेयर्स काउंसिल ने यह रिपोर्ट जारी करके अपने देश के सामने ऐसी ऐसी चीजें रखी हैं जिन पर रक्षा विभाग को फौरन ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि चीन की आक्रामकता और युद्धोन्माद का प्रतिकार ताइवान के अस्तित्व के लिए बहुत ही आवश्यक है।
इस संबंध में ताइवान के मशहूर अखबार ताइपे टाइम्स ने एक समाचार छापा है जिसमें लिखा है कि चीन ताइवान को अपनी मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए गुपचुप भी काम कर रहा है और ताकत की धमक भी दिखा रहा है। वह दोधारी रणनीति अमल में ला रहा है। चीन के इस रवैए को देखते हुए ऐसा लगता है कि वह कुछ ही समय में ताइवान के सामने भू राजनीतिक संकट तथा ताइवान की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकता है।
विस्तारवादी एजेंडे पर चल रहा चीन द्वीपीय देश ताइवान को अपने देश का हिस्सा बताता है। उसका एजेंडा है कि ताइवान को अपने जितना जल्दी हो अपने साथ मिलाए। इसलिए वह नहीं चाहता कि दुनिया को कोई देश ताइवान को एक अलग संप्रभु देश के नाते स्वीकार करके उसके साथ कूटनीतिक संबंध बनाए।
ताइवान की सरकारी एजेंसी की रिपोर्ट में यह चीज प्रमुखता से जोड़ी गई है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी घुड़काने तथा वायुसेना के जरिए ताइवान के आसमान में खतरे के बादल मंडराने जैसी शरारतें करती रही है। अगर वह और आक्रामक होती है तो ताइवान की ताकत, संचार व्यवस्था तथा चिकित्सा तंत्र खतरे में पड़ जाएगा। रिपोर्ट बताती है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2027 तक ताइवान को ‘मुख्यभूमि से जोड़ने’ के लिए फौजी कार्रवाई करके अपने सत्ता को और ताकतवर बनाने की रणनीति बनाई है, जिसे गंभीरता से देखने की जरूरत है।
रिपोर्ट आगे कहती है कि ताइवान के साथ बीजिंग के राजनीतिक मतभेद हैं तथा अमेरिका के साथ चीन के चल रहे तनाव का सुलझना अभी संभव नहीं लगता, इसलिए हो सकता है वह अपनी कुटिल चाल को पूरा करने के लिए ताइवान को किसी भी तरह अपने साथ मिलाने की कोशिश करेगा।
चीन और ताइवान के बीच तनाव की ताजा स्थिति यह है कि गत सितंबर माह में चीनी सेना ने 17 और 18 सितम्बर के बीच ताइवान की हवाई सीमा के पास 103 लड़ाकू जेट उड़ाए थे। ताइवान के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि लड़ाकू विमानों को उनके रडार ने पकड़ लिया था और उनको चेतावनी भी दी गई थी। उसके बाद चीन के वे विमान ताइवान में दाखिल होने की बजाय वापस मुड़ गए थे।
दरअसल विस्तारवादी एजेंडे पर चल रहा चीन द्वीपीय देश ताइवान को अपने देश का हिस्सा बताता है। उसका एजेंडा है कि ताइवान को अपने जितना जल्दी हो अपने साथ मिलाए। इसलिए वह नहीं चाहता कि दुनिया को कोई देश ताइवान को एक अलग संप्रभु देश के नाते स्वीकार करके उसके साथ कूटनीतिक संबंध बनाए। इसी वजह से चीन की अमेरिका और जापान के साथ पिछले दिनों तनातनी रही थी क्योंकि अमेरिका के कई राजनीतिज्ञ और सांसद ताइवान के दौरे करके गए थे। जापान भी ताइवान के साथ कूटनीतिक संबंधों को महत्व देता है। जबकि उधर बीजिंग तिब्बत और हांगकांग को निगलने के बाद ताइवान पर अपने डैने गढ़ाना जारी रखे है।
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