हम सबका सौभाग्य है कि देश हजारों साल के अनेक झंझावातों के बाद भी भारत के रूप में जीवित है। यह पुन: विश्व में अपनी भूमिका अदा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारत की परंपरा के प्रतीक सभी आचार्य, महामंडलेश्वर, तपस्वी, संतों की उपस्थिति में यह समारोह संपन्न हुआ, यह हमारे लिए आनंद का विषय है।
आज के इस दिव्य अवसर पर भगवद्पाद आदि शंकराचार्य जी की एकात्म प्रतिमा का उद्घाटन और भविष्य की योजना ‘अद्वैत लोक’ और संस्थान की प्रक्रिया का शुभारंभ हुआ। यह हम सबका सौभाग्य है कि देश हजारों साल के अनेक झंझावातों के बाद भी भारत के रूप में जीवित है। यह पुन: विश्व में अपनी भूमिका अदा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारत की परंपरा के प्रतीक सभी आचार्य, महामंडलेश्वर, तपस्वी, संतों की उपस्थिति में यह समारोह संपन्न हुआ, यह हमारे लिए आनंद का विषय है।
एक लंबे काल के बाद अपने स्व को अभिव्यक्त करने के लिए फिर से भारत में एक प्रक्रिया प्रारंभ हुई है। देश के भिन्न-भिन्न स्थानों पर भारत की सांस्कृतिक चेतना को गति देने वाले जितने भी स्थान हैं, उनके पुनरुद्धार की प्रक्रिया चल रही है। केदारनाथ धाम, काशी, अयोध्या, महाकाल इत्यादि के पुनरुद्धार का एक ही उद्देश्य है- संपूर्ण देशवासियों का ध्यान एक तरफ आकर्षित हो। ऐसे कई विराट प्रकल्प चल रहे हैं। गुजरात में ऐसी ही एक प्रतिमा बनी, जिसका नाम है स्टैच्यू आफ यूनिटी। हैदराबाद में भगवद्पाद रामानुजाचार्य जी की प्रतिमा बनी, जिसे स्टैच्यू आफ इक्वालिटी नाम दिया गया। सब जानते हैं कि समाज में एकता, समानता होनी चाहिए।
हमारे देश में जी-20 सम्मेलन संपन्न हुआ, उसका भी नारा था-एक धरती, एक परिवार और एक भविष्य। आज संपूर्ण विश्व को दिशा देने और अद्वैत को जीवन में उतारने का समय है। ओंकारेश्वर का प्रकल्प एक गंगोत्री के समान है, जो जल की धारा को बढ़ाते हुए महासागर के रूप में सामने आएगा। यह संतों की प्रेरणा और आशीर्वाद मिल जाने से साकार होगा।
तत्व जानने के बाद भाषा, कुल, स्थान, संप्रदाय आदि को लेकर भेद दृष्टि है। इसके कारण एकता, समानता साकार रूप नहीं ले पाती। अद्वैत केवल तत्व चर्चा में ही नहीं, बल्कि जीवन के व्यवहार में भी आए, इसके लिए और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। इस देश की आशा, आकांक्षा है कि भारतीय समाज एक हो। भारतीय समाज समरस बने और संपूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करने में सक्षम बने। इसके लिए अद्वैत सिद्धांत और सनातन सिद्धांत को संपूर्ण विश्व में गुंजायमान करने वाली आदि शंकराचार्य की विशाल मूर्ति का आज यहां पर अनावरण हुआ है। यह बहुत ही संतोषजनक बात है और इसके लिए राज्य के मुख्यमंत्री और इस कार्य में लगे सभी लोगों को साधुवाद देता हूं। इस प्रतिमा का अनावरण और अद्वैत लोक की स्थापना से एक भौतिक प्रतीक बना है।
आज का प्रसंग और पूज्य संतों का आशीर्वाद, उनकी तपस्या और समाज के लोगों का संगम, इन सभी को मिलाकर अद्वैत सिद्धांत जब हमारी बोली, व्यवहार और संवेदनाओं में व्यक्त होगा, तो देश इस एकात्म सिद्धांत को अपने जीवन में उतार कर अपना स्वरूप प्राप्त करेगा जिसके चिह्न हमें दिखाई दे रहे हैं। इस समय भारत का विचार विश्व के मंचों पर व्यक्त हो रहा है। अभी हमारे देश में जी-20 सम्मेलन संपन्न हुआ, उसका भी नारा था-एक धरती, एक परिवार और एक भविष्य। आज संपूर्ण विश्व को दिशा देने और अद्वैत को जीवन में उतारने का समय है। ओंकारेश्वर का प्रकल्प एक गंगोत्री के समान है, जो जल की धारा को बढ़ाते हुए महासागर के रूप में सामने आएगा। यह संतों की प्रेरणा और आशीर्वाद मिल जाने से साकार होगा।
(लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं)
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