बात सिर्फ यह नहीं है कि कनाडा या कोई अन्य देश खालिस्तानी आतंकवादियों का अभयारण्य बन गया है। बात यह है कि यह सारा कृत्रिम ढांचा कुत्सित स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्रयुक्त हो रहा है। स्वार्थ मात्र एक व्यक्ति के कनाडा के प्रधानमंत्री बने रहने का नहीं है। स्वार्थ लूट के उस तंत्र को जारी रखने के प्रयासों का है, जिसके मूल में नस्लवाद और साम्राज्यवाद है।
कनाडा की नादानी ने न केवल एक बहुत बड़े षड्यंत्र को विश्व के सामने ला दिया है, बल्कि भारत के भी उस विशाल जन समुदाय को आंखें खोलने के लिए बाध्य कर दिया है, जो ‘लोकतंत्र’, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’, ‘उदारवाद’ और इसी तरह के अन्य नारों से प्रभावित हो गया था। बात सिर्फ यह नहीं है कि कनाडा या कोई अन्य देश खालिस्तानी आतंकवादियों का अभयारण्य बन गया है। बात यह है कि यह सारा कृत्रिम ढांचा कुत्सित स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्रयुक्त हो रहा है। स्वार्थ मात्र एक व्यक्ति के कनाडा के प्रधानमंत्री बने रहने का नहीं है। स्वार्थ लूट के उस तंत्र को जारी रखने के प्रयासों का है, जिसके मूल में नस्लवाद और साम्राज्यवाद है।
भारत ने ग्लोबल साउथ की आवाज जैसे ही उठाई, इस साम्राज्यवादी तंत्र को दर्द होने से यह साबित हो गया कि मुक्त व्यापार से लेकर अन्य तमाम तरह की उन्मुक्तता के उनके कथ्यों का मर्म कहां है। आखिर कनाडा क्या चाह रहा है? क्या यह कि वहां भारतीय राजनयिकों की हत्या का आह्वान करने की अनुमति है, क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रश्न है। अगर वह भारत का विरोध करने वालों के साथ खड़ा दिखता है तो यह और भी निकृष्ट संकेत है। यदि शासकीय स्तर पर वास्तव में ऐसा है, तो स्पष्ट रूप से यह एक बड़ा षड्यंत्र और शत्रुतापूर्ण कृत्य है।
यह किसी भी दृष्टि से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं है। और फिर वे चाहते हैं कि दुनिया उनके तर्क को स्वीकार करे। और यह क्यों न माना जाए कि अमेरिका सिर्फ इस कारण यह चाहता है कि भारत उसके आगे झुक जाए, क्योंकि ‘गोरे लोगों’ ने ऐसा कहा है। क्या उनकी परेशानी यह है कि जैसे यूक्रेन युद्ध ‘महत्वपूर्ण’ है, क्योंकि यह ‘व्हाइट मैन्स वर्ल्ड’ में हो रहा है और इसी प्रकार गैंगस्टरों और नशे के कारोबारियों की आपसी खींचतान की अंतर्कथा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ‘व्हाइट मैन्स वर्ल्ड’ में हुई थी? इस तर्क को कितनी गंभीरता से लिया जा सकता है?
हालांकि गंभीरता से लेने की और बातें अवश्य हैं। खालिस्तानी आतंकवादी और मणिपुर के कुकी आतंकवादी, कश्मीर के पाकिस्तान प्रायोजित पृथकतावादी सारे कनाडा की धरती पर भारत के खिलाफ एक सुर में शोर करते नजर आए। एक वीडियो सामने आया है, जिसमें मणिपुर के एक अलगाववादी समूह ‘नमता’ का नेता लीन गैंगटे कनाडा के सरे गुरुद्वारे में भाषण दे रहा है। भारत और लोकतांत्रिक व्यवस्था के विरोधियों का कनाडा में खुलेआम एकजुट होना और इस पर शासकीय चुप्पी क्या कहती है?
कुकी-मैतेई संघर्ष में केवल किसी एक पक्ष की बात करना, सदियों जिनका घर आंगन एक रहा ऐसी हिन्दू-सिख एकता में खालिस्तानी फांक पैदा करना, झूठा-गढ़ा आर्य-द्रविड़ सिद्धांत देकर संस्कृति और सनातन को राजनीतिक तौर पर ललकारना, बांटो और राज करो की पुड़िया बांटने वाले गोरों ने जो खेल खेला, खेल वही है। प्यादों और पालनहारों की वही काली करतूतें आज भी जारी हैं।
यह घटना अकेले ही इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए पर्याप्त है कि भारत ने कनाडा के प्रति उतना कठोर रुख क्यों अपनाया है। वास्तव में आतंक और अराजकता को पालने की ट्रूडो की जिद ने अच्छे-भले कनाडा को पाकिस्तान की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। पाकिस्तान इस्लाम की आड़ में आतंकवाद को बढ़ाता रहा, ट्रूडो अभिव्यक्ति की आजादी पर मुखर होने की आड़ में आतंकवाद पर मौन हो गए हैं।
दूसरे, इस बिंदु पर यह भी बिल्कुल स्पष्ट है कि दो या दो से अधिक बाहरी शक्तियां भारत विरोधी आतंकवादियों को संगठित होने में मदद कर रही हैं। यह भी संभव है कि उनका कोई अलायंस भी बन गया हो। यह वीडियो इस बात की भी पुष्टि करता है कि मणिपुर दंगों के पीछे अंतरराष्ट्रीय शह और षड़्यंत्र है। भारत में फैलाई जा रही अराजकता और दंगे विदेश समर्थित हैं। सैकड़ों हत्याओं के लिए जिम्मेदार नमता गिरोह के खुद को दीन-हीन बताने से यह भी स्पष्ट है कि ‘विक्टिम कार्ड’ का नैरेटिव बहुत सिखाई-पढ़ाई वस्तु है।
भारत विरोध और इसमें भी हिन्दू विरोध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकी गुटों के साझा लक्ष्यों के तौर पर साफ दिखाई दे रहा है। एक ओर विश्व स्तर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कथित ‘चैम्पियन’ इसे बढ़ावा दे रहे हैं और दूसरी ओर भारत में विभाजनकारी सोच रखने वाले राजनीतिक गठबंधन इस हिन्दू विरोध को तेज कर रहे हैं। अलग-अलग घटनाओं को जोड़कर देखें तो स्पष्ट होता है कि कनाडा के गुरुद्वारे में मणिपुरी अलगाववादी नेता का भाषण तथा भारत के भीतर कांग्रेस नीत गठबंधन के नेता द्वारा सनातन धर्म के खिलाफ दिया गया भाषण कोई संयोग नहीं था।
कुकी-मैतेई संघर्ष में केवल किसी एक पक्ष की बात करना, सदियों जिनका घर आंगन एक रहा ऐसी हिन्दू-सिख एकता में खालिस्तानी फांक पैदा करना, झूठा-गढ़ा आर्य-द्रविड़ सिद्धांत देकर संस्कृति और सनातन को राजनीतिक तौर पर ललकारना, बांटो और राज करो की पुड़िया बांटने वाले गोरों ने जो खेल खेला, खेल वही है। प्यादों और पालनहारों की वही काली करतूतें आज भी जारी हैं।
@hiteshshankar
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