भारत के कुछ अंग्रेजी अखबारों की तरह, वाशिंगटन पोस्ट जैसे दर्जनों सम्मानित अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों में चीनी प्रचार परिशिष्ट प्रकाशित कराए जाते हैं, जिनके लिए मोटा भुगतान किया जाता है।
चीन बड़े पैमाने पर पैसे के बूते वैश्विक सूचना वातावरण को अपने हिसाब से मोड़ने की कोशिश कर रहा है। वह विज्ञापन, प्रायोजित पत्रकारिता कवरेज और अपने सकारात्मक संदेशों के लिए धन देता है। खुद चीन में प्रेस पर सख्त नियंत्रण है, लेकिन दूसरे देशों में बीजिंग अपने लाभ के लिए स्वतंत्र प्रेस की कमजोरियों का फायदा उठाने की कोशिश करता है।
भारत के कुछ अंग्रेजी अखबारों की तरह, वाशिंगटन पोस्ट जैसे दर्जनों सम्मानित अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों में चीनी प्रचार परिशिष्ट प्रकाशित कराए जाते हैं, जिनके लिए मोटा भुगतान किया जाता है। इसी रणनीति के तहत और ज्यादा खतरनाक ढंग से चीनी सरकारी रेडियो स्टेशन चाइना रेडियो इंटरनेशनल (सीआरआई) से सामग्री को आस्ट्रेलिया से तुर्की तक दुनिया भर में स्वतंत्र प्रसारकों के एयरवेव्स पर पैसे देकर प्रसारित कराया जाता है।
प्रेक्षकों का मानना है कि चीन की कंपनियों के लिए की जाने वाली पत्रकारिता में, चीन के प्रचार में, चीन के प्रभाव निर्माण में और चीन के लिए जासूसी करके खुफिया जानकारी इकट्ठा करने में कोई खास अंतर नहीं रह गया है। भले ही इसका रहस्योद्घाटन न्यूयॉर्क टाइम्स ने किया हो, लेकिन यह वह रहस्य है, जिसे भारत का बच्चा-बच्चा जानता है। यह कि भारत के विपक्ष के, प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचने वालों के, भारत के विरुद्ध षड्यंत्र रचने वालों और भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार करने वालों के और चीन के परस्पर संबंध क्या हैं।
पहले बात न्यूजक्लिक की। 2021 में ईडी ने मीडिया पोर्टल न्यूजक्लिक की जांच की और पाया कि इसकी फंडिंग चीन से जुड़ी हुई है। उस समय वामपंथियों ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया था। अब दो वर्ष बाद वामपंथियों के पसंदीदा न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी यही कहा है कि न्यूजक्लिक को चीन से पैसा मिलता रहा है।
बहुत सारी आस्तीनें हैं, बहुत से आस्तीन के…
पिछले वर्ष इन्हीं दिनों विभिन्न ‘प्रभावशाली’ थिंक टैंकों और गैर सरकारी संगठनों के कार्यालयों पर आयकर विभाग ने छापा मारा था। यह छापेमारी सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च थिंक टैंक, एनजीओ आॅक्सफैम इंडिया और बेंगलुरु में इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन (आईपीएसएमएफ) के दिल्ली कार्यालय पर की गई थी।
अब देखिए इन संस्थानों की तारीफ। सीपीआर के पहले प्रमुख थे, प्रताप भानु मेहता, जो अब कई कारणों से बदनाम हो चुके हैं। फिर इसकी कमान मिली मणिशंकर अय्यर की बेटी यामिनी अय्यर को। दूसरा है आईपीएसएमएफ, जो वास्तव में द वायर, द प्रिंट और द कारवां जैसे पोर्टलों को फंडिंग करता है।
अब याद कीजिए मोदी-विरोधी बीबीसी डॉक्युमेंटरी को। इसमें दिखाए गए लोगों पर एक नजर डालें। बीबीसी डॉक्युमेंटरी की शुरुआत एक अली हसन जाफरी से होती है, जो प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ के पत्रकार हैं। वह ‘आर्टिकल 14’ के लिए और मनी लॉन्ड्रिंग की आरोपी प्रोपेगेंडा फर्म न्यूजक्लिक के लिए भी लिखते हैं। इस प्रोपेगंडा डॉक्युमेंट्री में दूसरा किरदार हैं हरतोष सिंह बल। वह प्रोपेगेंडा समाचार वेबसाइट द कारवां के राजनीतिक संपादक हैं।
मोदी की आलोचना करने वाली बीबीसी की प्रोपेगंडा डॉक्यूमेंट्री में नजर आने वाले तीसरे किरदार हैं नीलंजन मुखोपाध्याय, जो द वायर और द कारवां के लिए भी लिखते हैं। वह भी मनी लॉन्ड्रिंग की आरोपी कंपनी न्यूजक्लिक के लिए काम करते हैं और उन्हें वहीं से वेतन मिलता है।
प्रोपेगंडा बीबीसी डॉक्यूमेंट्री में दिखाई देने वाली चौथी किरदार हैं अरुंधति रॉय। लगभग हर भारतीय अरुंधति रॉय के बारे में अच्छी तरह जानता है। लेकिन यह बात अपेक्षाकृत कम लोग जानते हैं कि प्रोपेगंडा फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट आल्टन्यूज और उनके कम्युनिस्ट मालिकों को फंड देने वाली पहली महिला वही थीं। प्रोपेगंडा बीबीसी डॉक्यूमेंट्री में पांचवां किरदार जाफरलॉट क्रिस्टोफ है। दिलचस्प बात यह है कि जाफरलॉट क्रिस्टोफ के प्रचार कार्यों को द वायर और द कारवां इन्हीं दोनों संस्थाओं द्वारा प्रचारित किया जाता है। आगे सच्चाई यह है कि इस प्रोपेगंडा लेखक जैफ्रेलोट क्रिस्टोफ ने इस प्रोपेगेंडा बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को देखने और शेयर करने के लिए भारतीय अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल को टैग किया था, जो भारत पर प्रतिबंध लगाने के लिए अभियान चलाती रही है।
इस डॉक्यूमेंट्री के पीछे का एक और महत्वपूर्ण किरदार थे जैक स्ट्रॉ, जो प्रोपेगंडा वेबसाइट द वायर पर प्रोपेगंडा बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के रिलीज होने के ठीक बाद एक विशेष साक्षात्कार के लिए पेश हुए थे। क्या इसे मात्र संयोग माना जा सकता है कि उन्होंने साक्षात्कार देने के लिए द वायर को चुना? प्रोपेगंडा बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के रिलीज होने के बाद, द वायर और द कारवां के प्रोपेगंडा पत्रकारों और अन्य आईपीएसएमएफ द्वारा वित्त पोषित पत्रकारों ने योजना के अनुसार अपना काम किया।
न्यूजक्लिक की करतूतें
तो क्या यह फंडिंग चीनी प्रचार के लिए थी? उत्तर है, सिर्फ आधी। बाकी काम भारत विरोध का था, भारत को बदनाम करने का था। चीनी फंडिंग से न्यूजक्लिक ने क्या किया था? उसने वुहान वायरस के लिए बनाए गए भारतीय टीकों पर दुष्प्रचार किया। उसने मेक इन इंडिया का मजाक उड़ाया, उसके लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया और उस पर दुष्प्रचार किया। उसने पीएम केयर्स पर दुष्प्रचार किया। उसने राफेल पर दुष्प्रचार किया। उसने राम मंदिर को लेकर अभद्रता की सीमाएं पार कर दी और दुष्प्रचार किया। उसने सीएए पर दुष्प्रचार किया। उसने सेंट्रल विस्टा पर दुष्प्रचार किया। उसने चीनी एप्स पर प्रतिबंध पर दुष्प्रचार किया। गौर कीजिए, यह सारा एजेंडा सिर्फ न्यूजक्लिक का नहीं था। यही एजेंडा, न्यूजक्लिक के साथ-साथ राहुल गांधी का, कांग्रेस का और भारत के वामपंथियों का भी था। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि इनकी साठगांठ कितनी गहरी थी।
चोरी और सीनाजोरी
जब भारत में न्यूजक्लिक का भंडाफोड़ हो गया, तो कोई 700 लोग न्यूजक्लिक के बचाव में आगे आए। न्यूजक्लिक का समर्थन करने वालों में लगभग वे सारे लोग थे, जिन पर ऐसा करने का सहज संदेह किया जा सकता है। जैसे एन. राम, प्रेम शंकर झा, सिद्धार्थ वरदराजन, एम.के. वेणु, सुधींद्र कुलकर्णी, पी. साईनाथ, वैष्णा रॉय, जॉन दयाल, बी. विल्सन, सैयदा हमीद, हर्ष मंदर, अरुणा रॉय, संजय हेगड़े, कॉलिन गोंजाल्विस और प्रशांत भूषण।
‘‘सौभाग्य से रॉय ने एक उल्लेखनीय सॉफ्टवेयर कंपनी बनाई थी, जब मैं उनसे पहली बार मिला था- एक विशाल सॉफ्टवेयर कंपनी के साथ एक मार्क्सवादी! उन्होंने कुछ साल पहले उस कंपनी को बेच दिया और सारा पैसा नई पीढ़ी के कट्टर वामपंथियों को राजनीतिक शिक्षा देने के लिए देने का फैसला किया। वे फंड, जो अब बड़े पैमाने पर गैर-लाभकारी संस्थाओं में हैं-@ ट्राई_कॉन्टिनेंटल के बंदोबस्ती कोष और अन्य परियोजनाओं के लिए मूल स्रोत थे, जो हमें उम्मीद है कि यह पैसा कम से कम एक पीढ़ी तक चलेगा।’’ -विजय प्रशाद
इनमें से पी. साईनाथ की बात करें। पी. साईनाथ पेशे से पत्रकार हैं और भारत के वामपंथियों के अखबार ‘द हिन्दू’ में ग्रामीण संपादक रह चुके हैं। अच्छे-खासे, खाते-पीते वामपंथी हैं। उनका पीपुल्स आर्काइव आफ रूरल इंडिया ((PARI)) एक वामपंथी प्रचार पोर्टल है, जो खुद को भारत की ‘व्यावसायिक, भाषाई और सांस्कृतिक विविधता’ का संग्रह बताता है। पी. साईनाथ इसके संस्थापक संपादक हैं। परी ने न्यूजक्लिक चीनी फंडिंग विवाद के केंद्र में अमेरिकी करोड़पति और थॉटवर्क्स के संस्थापक नेविल रॉय सिंघम का कई संदर्भ दिया था। खुद पी. साईनाथ ट्राइकॉन्टिनेंटल के एक सीनियर फेलो हैं, जिन्होंने चीन को सकारात्मक रूप में दिखाने वाले समाजवादी मुद्दों पर वीडियो और लेख तैयार किए हैं।
आगे, एक तरफ तो पी. साईनाथ ने न्यूजक्लिक के समर्थन में पत्र लिखा, दूसरी ओर जब पी. साईनाथ के परी ने नेविल रॉय सिंघम के सारे संदर्भ अपनी वेबसाइट से हटा दिए। इसके पहले तक परी की आधिकारिक वेबसाइट पर नेविल रॉय सिंघम का ‘आभार’ व्यक्त किया गया था। साईनाथ ने अपने पोर्टल परी के लिए ‘भारी प्रोत्साहन’ और ‘समर्थन’ के लिए विजय प्रशाद का भी उल्लेख किया है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की जांच में जिन कई अन्य व्यक्तियों की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है, उनमें विजय प्रशाद भी शामिल हैं। सिंघम के नेटवर्क में इनकी मुख्य भूमिका रही है। ट्राइकॉन्टिनेंटल के कार्यकारी निदेशक विजय प्रशाद हैं।
यह विजय प्रशाद कौन है? वैसे यह एक ‘मार्क्सवादी इतिहासकार’ और ट्राइकॉन्टिनेंटल के एक कार्यकारी निदेशक हैं। विजय प्रशाद लेफ्ट वर्ड बुक्स के संपादक और ग्लोबट्रॉटर में मुख्य संवाददाता भी हैं। प्रशाद वैश्विक मंचों पर भारत-विरोधी, हिंदू-विरोधी प्रचार करते हैं। विजय प्रशाद सीपीआई (एम) नेता प्रकाश करात की पत्नी और सीपीआई (एम) की नेता बृंदा करात के भतीजे हैं। नेविल रॉय सिंघम के साथ ईमेल संवाद से घोटाले में उनके करीबी संबंधों का पता चला है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की जांच में जिन कई अन्य व्यक्तियों की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है, उनमें विजय प्रशाद भी शामिल हैं। सिंघम के नेटवर्क में इनकी मुख्य भूमिका रही है। प्रशाद ‘पीपुल्स डिस्पैच’ में भी योगदानकर्ता रहे हैं, जो एक मीडिया पोर्टल है। यह खुद को ‘दुनिया भर के लोगों के आंदोलनों और संगठनों की आवाज को दुनिया के सामने लाने के मिशन के साथ एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया प्रोजेक्ट’ बताता है। जनवरी 2020 के एक लेख में, प्रशाद ने जेएनयू प्रदर्शनकारियों के प्रति सहानुभूति जताते हुए मोदी सरकार पर हमला बोला था।
खैर, न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार ट्राइकॉन्टिनेंटल उन गैर-लाभकारी कंपनियों में से एक थी, जिन्होंने नेविल रॉय सिंघम से फंडिंग प्राप्त की और चीनी प्रचार को बढ़ावा दिया। नेविल रॉय सिंघम इस कथित थिंक-टैंक के अंतरराष्ट्रीय सलाहकार बोर्ड में हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स की जांच के अनुसार, ट्राइकॉन्टिनेंटल और एक चीनी मीडिया कंपनी माकू, ‘चीन का प्रोपेगंडा आगे बढ़ाने’ के लिए शंघाई विश्वविद्यालय के साथ काम करने के लिए सहमत हुए। इस घोटाले में फिर विजय प्रशाद का नाम पी. साईनाथ और नेविल रॉय सिंघम के साथ एक तिकड़ी के तौर पर उभरता है।
विजय प्रशाद ने दिसंबर 2021 में ट्वीट्स की एक शृंखला में इसकी घोषणा की थी कि ट्राइकॉन्टिनेंटल का निर्माण नेविल रॉय सिंघम से प्राप्त धन से किया गया था। विजय प्रशाद का नेविल रॉय सिंघम के साथ संबंध सिंघम के पिता आचीर्बाल्ड विक्रमराजा सिंघम तक जाता है। आर्ची सिंघम पर तीन ट्वीट के बाद प्रशाद लिखते हैं कि कैसे नेविल रॉय सिंघम ने ट्राइकॉन्टिनेंटल को वित्त पोषित किया।
एक ट्वीट में विजय प्रशाद ने कहा है, ‘‘सौभाग्य से रॉय ने एक उल्लेखनीय सॉफ्टवेयर कंपनी बनाई थी, जब मैं उनसे पहली बार मिला था- एक विशाल सॉफ्टवेयर कंपनी के साथ एक मार्क्सवादी! उन्होंने कुछ साल पहले उस कंपनी को बेच दिया और सारा पैसा नई पीढ़ी के कट्टर वामपंथियों को राजनीतिक शिक्षा देने के लिए देने का फैसला किया। वे फंड, जो अब बड़े पैमाने पर गैर-लाभकारी संस्थाओं में हैं-@ ट्राई_कॉन्टिनेंटल के बंदोबस्ती कोष और अन्य परियोजनाओं के लिए मूल स्रोत थे, जो हमें उम्मीद है कि यह पैसा कम से कम एक पीढ़ी तक चलेगा।’’
न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद से विजय प्रशाद अपने वामपंथी पोर्टलों के माध्यम से ‘मैककाथीर्वाद’ के प्रकाशन का आरोप लगाते हुए एक अभियान चला रहे हैं। ‘मैककाथीर्वाद’ और ’रेड स्कैयर’ शब्दों का प्रयोग कम्युनिस्टों द्वारा अमेरिकियों के बीच कम्युनिस्टों से खतरे के बारे में व्याकुलता को इंगित करने के लिए किया जाता है। यह बहुत कुछ वैसा ही है, जैसे आतंकवाद का समर्थन करने वाले इस्लामोफोबिया की बात करते हैं। विजय प्रशाद का वास्तविक इरादा सिर्फ मार्क्सवाद नहीं था। सीएए के मुद्दे पर हमला करके ‘लोकतंत्र के क्षरण’ की कहानी एक चरण थी, असली पारी क्वाड पर हमला करना था और भारत सरकार को घेरना और बदनाम करना था।
2019 में प्रशाद ने ‘द अनार्किस्ट’ में एक सनसनीखेज और षड्यंत्रकारी लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था ‘भारत सरकार अपने ही लोगों के खिलाफ युद्ध करने जा रही है।’ प्रशाद ने अपने लेख में पड़ोसी देशों से मुस्लिम शरणार्थियों का बोझ उठाने के लिए भारत पर शोषणकारी मामला बनाने के लिए सीएए के बारे में झूठ फैलाया। जहां भारत में इस्लामवादियों ने देश को बंधक बनाने के लिए पूरे जोर-शोर से काम किया, वहीं प्रशाद ने इस्लामोफोबिया, फासीवाद आदि जैसे शब्दों का उपयोग करके वैचारिक कट्टरता को बढ़ावा देकर विश्व स्तर पर वही काम करने का प्रयास किया। प्रशाद ने वैश्विक दर्शकों को भारत के खिलाफ प्रेरित करने का प्रयास किया है और खुले तौर पर भारत में माओवाद (उर्फ नक्सलवाद) के पुनरुद्धार की वकालत की है।
विजय प्रशाद ने एक षड्यंत्रकारी लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था ‘भारत सरकार अपने ही लोगों के खिलाफ युद्ध करने जा रही है।’ प्रशाद ने सीएए के बारे में झूठ फैलाया और मुस्लिम देशों से दबाव डलवाने की कोशिश की
उन्होंने नोटबंदी, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और एनआरसी के खिलाफ सामान्य कम्युनिस्ट स्क्रिप्ट भी पेश की। विजय प्रशाद ने खुद कहा है कि उन्होंने दिल्ली और कोलकाता में सीएए विरोधी विरोध स्थलों का दौरा किया और उसके बाद हुई हिंसा की सराहना की। प्रशाद ने ‘बहुसंख्यकवादी’ तर्क का उपयोग करते हुए हिंदुओं के खिलाफ खुलेआम नफरत फैलाई। विजय प्रशाद 2021 में भारत में फिर से सुर्खियों में आए, जब संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में उनके भाषण का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और मुख्यधारा के भारतीय मीडिया ने इसे उठाया।
जलवायु परिवर्तन पर पश्चिम में उनके व्याख्यान के लिए उनकी सराहना की गई। लेकिन जो बात सामने नहीं आई, वह थी चीन के प्रति उनकी प्रशंसा। शुरुआत में विजय प्रशाद की ऐसी कई बातें पश्चिम को आईना दिखाने वाले भारतीय की तरह लगती हैं और पेश भी की जाती हैं। विजय प्रशाद चीन और क्यूबा जैसे वाम-संचालित देशों को भारत जैसे विकासशील देशों के लिए आदर्श के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। 8 अगस्त को प्रशाद को सीपीआई (एम) द्वारा पुरस्कृत किया गया। यह चीनी एजेंटों द्वारा वित्त पोषित व्यक्तियों और संगठनों के साथ भारतीय वामपंथियों के घनिष्ठ संबंधों का एक और सबूत है।
प्रशाद इस सीमा तक हिंदू विरोधी हैं कि वह स्कूली पाठ्यक्रम में सरस्वती वंदना को शामिल करने को ‘असहिष्णुता’ बताते हैं। विदेशी भूमि पर रहते हुए प्रशाद विकासशील देशों पर पश्चिमी कब्जे की आलोचना करके आसानी से खुद को नायक के रूप में पेश करते हैं और जब भारत के बारे में बोलते हैं, तो वह चीन को एक रोल मॉडल की तरह दिखाते हैं और उपदेश देते हैं कि जो कुछ भी प्रकृति में हिंदू है, जो भी कुछ भारत का अपना है, वह लोकतंत्र पर हमला है। विजय प्रशाद स्क्रॉल और द हिंदू जैसे भारतीय वामपंथी समाचार पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं। लेकिन इससे भी ज्यादा रोचक यह है कि उन्हें इस्लामवादी समाचार पोर्टल अल जजीरा और हिंदू घृणा करने वाले द गार्जियन जैसे प्रकाशनों द्वारा भी प्रकाशित किया जाता है।
विजय प्रशाद का मामला इस बात का एक सबूत है कि भारत और हिंदुओं को बदनाम करने और वैश्विक मंच पर चीन का गुणगान करने की साजिश कितनी गहरी गई है और किस तरह चीनी फंडिंग उसे एक छोर से दूसरे छोर तक उपलब्ध है।
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