तालिबान द्वारा नियुक्त तालीम मंत्री नीदा मोहम्मद नदीम ने कहा कि अल्लाह की नजर में पुरुष और महिला समान नहीं हैं। यह बात उन्होंने बाघलान यूनिवर्सिटी में एक बैठक के दौरान कही जब महिलाओं की तालीम के बारे में उनसे सवाल किए गए। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देश भले ही यह कह रहे हों कि महिला और पुरुष एक समान होते हैं, अल्लाह ने पुरुष और महिलाओं के बीच अंतर किया है।
उन्होंने कहा कि एक पुरुष बादशाह होता है, उसके पास हुकूमत होती है और उसकी बात को माना जाना चाहिए और महिलाओं को उसके संसार को अपनाना चाहिए। एक महिला कभी भी पुरुष के बराबर नहीं होती है।
उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा सरकार की जिम्मेदारी है कि वह लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करे और सभी को सुरक्षा और इन्साफ दे। तालिबान के तालीम मंत्री का यह कथन तब आया है, जब अफगानिस्तान में महिलाओं को पर्दे में रखने को लेकर विरोध होने लगा है। लोग बातें करने लगे हैं कि आखिर इन महिलाओं का क्या दोष है ? गौरतलब है कि अफगानिस्तान में कक्षा 5 के बाद लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक है। अनिश्चित काल के लिए स्कूल बंद हैं और कहा जा रहा है कि महिलाओं के लिए नया पाठ्यक्रम बनाया जा रहा है। जो पढ़ाया जा रहा था, वह बिलकुल भी इस्लामी नियमों के अनुकूल नहीं था, इसलिए लड़कियों की तालीम अभी अनिश्चितता के भंवर में फंसी है। महिलाओं को लेकर तालिबान का रवैया कैसा होगा, इसे लेकर तभी से चर्चा थी, जब से तालिबान के सत्ता में आने की आशंका पनप रही थी, परन्तु बार-बार यह कहा गया कि वह इस बार उदार चेहरा लेकर आ रहे हैं।
उनकी उदारता के भ्रम भी मीडिया का एक वर्ग बना रहा था और सत्ता संभालने के बाद तालिबान की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद तो मीडिया और भारत का कम्युनिस्ट मीडिया तथा कम्युनिस्ट फेमिनिस्ट महिलाएं यह कहते हुए भारत के प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कसने लगी थीं कि “अरे! तालिबान भी कॉन्फ्रेंस कर रहा है!”
परन्तु तालिबान ने आते ही महिलाओं पर शिकंजा कंसना आरंभ कर दिया। उनका घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया। यूनिवर्सिटी के दरवाजे तो उनके लिए बंद किए ही, साथ ही उन्होंने कक्षा 5 के बाद बच्चियों का स्कूल जाना भी बंद करा दिया।
महिलाओं को काम से निकाल दिया। उनके लिए पर्दा जरूरी कर दिया और साथ ही उनके पार्क जाने आदि पर कई नियम एवं प्रतिबंध लगा दिए। कुल मिलाकर मुस्लिम महिलाओं के लिए एक ऐसा माहौल बना दिया, जिससे वह सार्वजनिक परिदृश्य से पूरी तरह से गायब हो जाएं। वह खेल आदि क्षेत्रों से गायब हो चुकी हैं। जिन्होनें आवाज उठाने का प्रयास किया उन्हें जेल में डाल दिया गया।
खुले लॉन वाले रेस्टोरेंट तक में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी गयी है। यहां तक कि उनके ब्यूटीपार्लर्स तक को बंद करा दिया गया है। कुल मिलाकर एक ऐसा परिदृश्य बना दिया गया है, जहां पर महिलाओं के लिए केवल घर और पर्दा ही है और यदि कोई चूक होती है तो उसके लिए दंड भी है।
जेल की बात को लेकर यूएन के विशेष दूत रिचर्ड बेनेट ने 29 सितंबर को एक ट्वीट किया था। जिसमें लिखा था कि महिला अधिकारों की बात करने वाले लोगों को उठाकर गिरफ्तार किया जा रहा है। जैसे झोलिया पारसी और नेदा परवानी और उनके परिवार के सद्श्य। उन्होंने कहा था कि वह तालिबान से अनुरोध करते हैं कि वह उनकी जल्दी रिहाई और परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
यह भी अजीब बात है कि जहां एक ओर महिला शिक्षा की बात करने वाले लोग सुरक्षित नहीं हैं, तो वहीं तालिबान सरकार की ओर से सुरक्षा का वादा करते हुए पर्यटन विभाग से विज्ञापन दिए जा रहे हैं कि अफगानिस्तान में अब पर्यटकों का अपहरण नहीं होता। आप आएं। अफगानिस्तान बहुत सुंदर है और उनकी टैग लाइन थी कि “हम अब फिरौती के लिए पर्यटकों को बंदी नहीं बनाते!” परन्तु उनके अपने देश में जो महिलाएं अघोषित बंदी हैं, उनपर बात करते समय वह इसे छोटा मसला बता देते हैं।
अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति पर 26-27 जुलाई को आयोजित यूएन वीमेन एशिया द्वारा एक्सपर्ट समूह की बैठक में भी इन विषयों पर विस्तार से बात की गयी थी और यह रिपोर्ट भी थी कि कैसे वर्ष 2021 से जब से तालिबान ने अफगानिस्तान की संभाली है, तभी से एक-एक करके महिलाओं और लड़कियों की आजादी को प्रतिबंधित किया है।
इसमें लिखा है कि महिलाओं और लड़कियों को निशाना बनाने वाले 50 से अधिक आदेशों की शुरूआत ने निसंदेह महिलाओं से बुनियादी अधिकारों और स्वतंत्रता की एक विस्तृत श्रृंखला छीन ली है, जिससे वे दोयम दर्जे की नागरिक बनकर रह गई हैं। कुछ अफगान महिलाओं के शब्दों में इससे उनकी मानवता और व्यक्तित्व नष्ट हो गया है। ये आदेश महिलाओं के अधिकारों पर एक व्यवस्थित, नियोजित हमले का सबूत हैं जो शरिया, राज्य और समाज के बारे में तालिबान के दृष्टिकोण का आधार है।
दुर्भाग्य की बात यही है कि वहां पर महिलाएं निरंतर संघर्ष कर रही हैं और तालीम मंत्री कह रहे हैं कि महिला और पुरुष बराबर नहीं हैं। और उससे भी बड़ा दुर्भाग्य कि इस महिला विरोधी वक्तव्य पर चर्चा तक नहीं!
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