श्री शारदा पीठ, शृंगेरीदुनिया में सनातन धर्म के हर अनुयायी के लिए आज पवित्र, अविस्मरणीय और ऐतिहासिक शुभ दिन है। पवित्र ज्योतिर्लिंग क्षेत्र में नर्मदा नदी के तट पर विराजमान जगद्गुरु श्री श्री 108 शंकराचार्य जी की भव्य प्रतिमा का पदों से लेकर सिर तक दर्शन कर सकेंगे। इनके दर्शन मात्र से मन में जो आनंद उत्पन्न होता है, उसे हम शब्दों में नहीं कह सकते। यहां पर शंकराचार्य जी का सुंदर मुख देखते हैं, तो उस मुख के ऊपर हमें विशाल आसमान दिखाई दे रहा है। कैलाश पर्वत का शिखर जितना दृढ़ है, उतनी ही शंकराचार्य जी की महिमा। इनके द्वारा प्रतिपादित अद्वैत सिद्धांत कैलाश पर्वत के शिखर जैसा भव्य एवं सर्वश्रेष्ठ है।
अद्वैत का सिद्धांत आकाश जैसा अति विस्तृत, अनंत एवं शुद्ध है। जिस प्रकार आकाश में सभी प्रकार के तारों, चंद्रमा इत्यादि का एक स्थान है, वैसे ही इस अद्वैत सिद्धांत में हर दर्शन, हर संप्रदाय का एक स्थान है। उन्होंने सनातन धर्म के सभी संप्रदायों को एकजुट कर आपसी विवाद को समाप्त किया था। अद्वैत सिद्धांत सर्वश्रेष्ठ है। यह पूरी दुनिया के संप्रदायों को जोड़ता है। भगवान् शंकराचार्य जी के दर्शन के उपरांत हमारे मन में ऐसी भावना आनी चाहिए कि इनके सामने हम कितने छोटे हैं। हमें इनके बताए मार्ग पर चल कर अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।
विश्व के कल्याण के लिए सनातन धर्म अति आवश्यक है। जब सनातन धर्म पर संकट आया था, तब शंकराचार्य जी ने इसका उद्धार कर लोगों को अनुग्रहीत किया था। शंकराचार्य जी ने धर्म की शाश्वत स्थिति के लिए मुख्य रूप से तीन काम किए थे। पहला ग्रंथों, प्राकरण और स्त्रोतों की रचना। दूसरा, दिग्विजय यात्रा कर पूरे भारतवर्ष का मार्गदर्शन और तीसरा काम चारों दिशाओं में पीठों की स्थापना। यह सनातन धर्म के लिए शाश्वत रूप से एक बड़ी व्यवस्था थी। इसी के कारण दुनिया में आज भी सनातन धर्म जीवंत है। जहां पर जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य जी को गुरु के रूप में श्री गोविंद पादाचार्य जी मिले, उस प्रदेश में इतनी उनकी भव्य मूर्ति की स्थापना बहुत ही संतोषजनक एवं ऐतिहासिक बात है।
– जगद्गुरु शंकराचार्य श्री विधुशेखर भारती
श्री शारदा पीठ, शृंगेरी
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