पाकिस्तान में एक नया विधेयक पारित हुआ है कि जो कहता है कि बलात्कार के दोषियों को दोष सिद्ध होने पर सरेआम सूली टांग दिया जाए। यह विधेकय संसदीय समिति ने तैयार किया है और काफी बहस—विरोध के बाद, पारित भी कर दिया गया है। यानी अब वहां इसके बाद, बलात्कारियों की खैर नहीं!
लेकिन यौन अपराधों में बदनामी की हदें पार रहे पाकिस्तान के पाकिस्तानियों को शक है कि इसे अमल में लाया जा सकेगा। आम लोग इस अपराध से इतने त्रस्त हैं कि वे तो चाहते हैं यह जल्दी से लागू हो जाए और अपराधियों को फांसियां दी जाएं। लेकिन ‘मानवाधिकारकर्मी’ इसके विरोध में हैं।
इस नए कानून को लेकर पड़ोसी इस्लामी देश में राजनीति गर्माई हुई है। पाकिस्तान इस वक्त चल रहे संसद सत्र में इस विधेयक पर बहुत बहस हुई। यौन अपराधों से जुड़ा यह विधेयक एक वर्ग द्वारा सराहा जा रहा था तो एक वर्ग ऐसा भी था जो इसे ‘दानवी’ कानून बता रहा है। लेकिन आखिरकार संसद की समिति द्वारा दो दिन पहले इस विधेयक को पारित कर दिया गया। अब कहा जा रहा है कि दुष्कर्म के दोषियों को सरेआम फांसी दी जा सकेगी। हालांकि इसमें कुछ संशोधन सुझाए और किए जाने के बाद सीनेट समिति ने विधेयक मंजूर कर लिया है। हैरानी की बात है कि सदन में इस विधेयक के पेश किए जाने के वक्त गृह और विदेश मंत्रालयों ने इस विधेयक को लेकर अपना विरोध दर्ज कराया था।
सरेआम फांसी की वकालत करने वाले इस विधेयक पर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सांसद शेरी रहमान ने विरोध दर्ज कराया है। उनका कहना है कि अनेक देशों में अब फांसी जैसी सजा को खत्म किया जा चुका है। जनरल जियाउल हक के राज का उल्लेख करते हुए शेरी ने कहा कि सरेआम फांसी देकर इस अपराध से छुटकारा नहीं मिल सकता।
सीनेट में इस प्रस्ताव को जमाते-इस्लामी के सांसद मुश्ताक अहमद ने पेश किया था। इसे पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 375, 375(ए), 376 और वर्तमान में लागू आपराधिक प्रक्रिया संहिता की अनुसूची-2 में संशोधन करने को रखा गया था।
सरेआम फांसी की वकालत करने वाले इस विधेयक पर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सांसद शेरी रहमान ने विरोध दर्ज कराया है। उनका कहना है कि अनेक देशों में अब फांसी जैसी सजा को खत्म किया जा चुका है। जनरल जियाउल हक के राज का उल्लेख करते हुए शेरी ने कहा कि सरेआम फांसी देकर इस अपराध से छुटकारा नहीं मिल सकता। इसे खत्म करने का यही सही तरीका नहीं है।
इसमें संदेह नहीं है कि इस्लामी देश पाकिस्तान में गांवों ही नहीं, शहरों में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। उन्हें सरेआम अगवा किया जाता है, सड़क चलते उनकी इज्जत से खेला जाता है। पाकिस्तान की एक टिकटॉकर के साथ वहां के आजादी के जश्न के दौरान लाहौर में करीब 250 की भीड़ ने जैसा बर्ताव किया था उसे दुनिया ने देखा था। विशेषरूप से हिन्दुओं और ईसाइयों की लड़कियों को तो खास तौर पर निशाना बनाया जाता है। उनसे बलात्कार की घटनाएं आएदिन होती हैं लेकिन मजहबी उन्मादी अपराधियों को पुलिस हाथ तक नहीं लगती जब तक कि कोई ‘दबाव’ न आए। इसलिए पाकिस्तान में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो इस जैसे कानून के पक्षधर हैं।
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