माइक्रोसॉफ्ट के ‘बिल्ड’ नामक तकनीकी सम्मेलन में भारत सरकार की भाषिनी परियोजना का प्रदर्शन किया गया था
कई देशों ने नागरिक प्रशासन में एआई का प्रयोग शुरू कर दिया है। सरकारी कामकाज में चुस्ती लाने, प्रक्रियाएं सरल बनाने, पारदर्शिता बढ़ाने और जटिलताएं दूर करने में एआई की महती भूमिका आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) को लेकर जितनी जिज्ञासा तकनीकी लोगों तथा आम नागरिकों के मन में है, उतनी ही सरकारों के बीच भी है। अमेरिका, यूरोप, चीन, जापान आदि ने सरकारी कामकाज और नागरिक सेवाओं में एआई का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। भारत भी इस मामले में पीछे नहीं है। सरकार के सभी स्तंभों के कामकाज में चुस्ती लाने, सरकारी प्रक्रियाओं को सरल बनाने, पारदर्शिता बढ़ाने, गुणवत्ता सुधारने और जटिलताएं दूर करने में एआई की भूमिका अहम होने वाली है, फिर भले ही वह प्रशासन हो, न्यायपालिका या फिर हमारी संसद या विधानसभाएं ही क्यों न हों। एआई दूरियों को पाटने में मदद कर रही है और सरकारी सेवाओं तक आम नागरिकों की पहुंच बढ़ा रही है।
इस साल के शुरू में माइक्रोसॉफ्ट के ‘बिल्ड’ नामक तकनीकी सम्मेलन में भारत सरकार की भाषिनी परियोजना का प्रदर्शन किया गया था जिसमें यह तकनीकी कंपनी भी सहयोगी है। भाषिनी में जेनरेटिव एआई का प्रयोग हुआ है। नागरिकों ने अपनी-अपनी भाषा में सरकारी योजनाओं के बारे में सवाल पूछे और भाषिनी ने उन्हें समझते हुए सटीक उत्तर भी दिये। इससे न सिर्फ भाषायी दीवारें दूर हुईं बल्कि सरकारी सेवाएं सटीक ढंग से सुलभ हुईं। बिना किसी विलंब के सेवा प्रदान करने की नयी क्षमता का भी प्रदर्शन हुआ और सरकारी प्रक्रियाओं के आटोमेशन का भी। भाषिनी की क्षमताओं को किसी भी डिजिटल प्लेटफॉर्म से जोड़ा जा सकता है और तब वह प्लेटफॉर्म भी बहुभाषी हो जाता है।
रक्षा मंत्रालय के आईआईटी कानपुर के सहयोग से विकसित शिकायत प्रबंधन एप्प को ही देखिए। जब कोई व्यक्ति मंत्रालय में शिकायत करता है तो यह न सिर्फ उसके सार को समझ लेता है बल्कि शिकायतों को अलग-अलग श्रेणियों में बांट देता है। शिकायत का निबटारा होने पर वह इस बात का भी विश्लेषण करता है कि उसका समाधान सही ढंग से हुआ या नहीं।
एआई का एक उदाहरण उल्लेखनीय है। इंटरनेट पर भारत के नये संसद भवन की कार्यवाही से जुड़ी सेवाएं देने वाले ‘डिजिटल संसद’ एप्प में एआई का प्रयोग हुआ है। यह वीडियो स्ट्रीमिंग करने में तो सक्षम है ही, सदन की कार्यवाही को स्पीच रिकॉग्निशन के जरिए ट्रांस्क्राइब (लिखने) करने की भी काबिलियत रखता है। संसद में बोले जाने वाले प्रत्येक शब्द की ध्वनि को पहचानकर उसे दर्ज करने में सक्षम है। एक बार शब्द दर्ज हो जाएं तो मशीनी अनुवाद संभव हो जाता है।
जेनरेटिव एआई लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स के आधार पर काम करती है। ये मॉडल बहुत बड़ी मात्रा में डेटा को एक्सेस करके सीखते हैं और अपनी क्षमता बढ़ाते हैं। लोगों की टूटी-फूटी भाषा, कई बोलियों तथा भाषाओं को जोड़कर बनी खिचड़ी अभिव्यक्ति, हिंग्लिश आदि को समझना पहले मुश्किल था लेकिन अब आसान हो गया है और त्वरित भी। मतलब यह कि एआई की बदौलत नौकरशाही और प्रशासन का भी कायाकल्प होने वाला है। प्रशासन अब नागरिकों की समस्याओं को न सिर्फ बेहतर ढंग से समझ सकता है, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके लिहाज से सटीक जवाब भी दे सकता है। कामकाज कहां चुस्त है, कहां सुस्त है, और कहां अटका है, इसका विश्लेषण संभव है। कौन रुकावट बन रहा है- कर्मचारी, सिस्टम, नागरिक, तकनीकी सीमाएं, लालफीताशाही – यह बता सकता है। कैसे रुझान चले आ रहे हैं, इसे जानने के लिए फाइलों को खंगालने की जरूरत नहीं रहेगी। नतीजा? चुस्त, बेहतर और जवाबदेह सरकार।
रक्षा मंत्रालय के आईआईटी कानपुर के सहयोग से विकसित शिकायत प्रबंधन एप्प को ही देखिए। जब कोई व्यक्ति मंत्रालय में शिकायत करता है तो यह न सिर्फ उसके सार को समझ लेता है बल्कि शिकायतों को अलग-अलग श्रेणियों में बांट देता है। शिकायत का निबटारा होने पर वह इस बात का भी विश्लेषण करता है कि उसका समाधान सही ढंग से हुआ या नहीं। इतना ही नहीं, यह गलत तत्वों की तरफ से की जाने वाली फर्जी शिकायतों को पहचानने में भी सक्षम है।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट एशिया में डेवलपर मार्केटिंग के प्रमुख हैं)
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