तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र उदयनिधि की ‘सनातन धर्म के उन्मूलन’ की बात को खारिज करते हुए राज्य के विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों ने प्रतिक्रिया की है या कहें कि प्रत्युत्तर दिया है।
हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, लेकिन जब आम लोग अपने धर्म के उन्मूलन का आह्वान करने वाले किसी शक्तिशाली राजनीतिक परिवार के व्यक्ति के खिलाफ प्रतिक्रिया करते हैं, तो बेशक उसे गंभीरता से लिया जाता है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र उदयनिधि की ‘सनातन धर्म के उन्मूलन’ की बात को खारिज करते हुए राज्य के विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों ने प्रतिक्रिया की है या कहें कि प्रत्युत्तर दिया है। इन लोगों ने सनातन धर्म के प्रति समर्थन जताने के लिए गत 17 सितंबर को चेन्नई में एक सम्मेलन आयोजित किया, जिस दिन ईवी रामासामी नायकर का जन्मदिन होता है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 2021 में इसे ‘सामाजिक न्याय दिवस’ घोषित किया था।
आयोजकों के अनुसार, ‘सनातन तमिषार संगमम’ नामक यह सम्मेलन अब हर साल सामाजिक न्याय दिवस के अवसर पर ही आयोजित किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म दिवस भी इसी दिन होता है और सम्मेलन के आयोजकों ने प्रधानमंत्री के जन्मदिन को ही आयोजन के केंद्रीय विचार के रूप में समाहित किया। चेन्नई के कुमारराजा मुथैया हॉल में एक लोकप्रिय यूट्यूब चैनल, ‘पेसु तमिळा पेसु’ के बैनर तले कई अन्य चैनलों और गणयमान्य जन के समर्थन से आयोजित सम्मेलन में 16 वक्ताओं ने ‘मैं सनातन धर्म का समर्थन क्यों करता हूं’ विषय पर अपने विचार व्यक्त किए।
वक्ताओं ने प्राचीन उद्धरणों के माध्यम से स्पष्ट किया कि सनातन धर्म क्या है और कि सामाजिक कुरीतियां इस धर्म के साथ पैदा नहीं हुई थीं।
इस सम्मेलन के आयोजन की घोषणा होते ही इसके प्रमुख वक्ताओं में शामिल दुष्यंत श्रीधर ने ट्वीट किया कि इस कार्यक्रम में ‘ऐसा मानदंड स्थापित किया जाना चाहिए जिसमें किसी भी समुदाय, पंथ और लिंग के खिलाफ कोई खराब बात या अपमानजनक टिप्पणी न हो।’ सम्मेलन में इस बात का पूरा ध्यान रखते हुए वक्ताओं ने उदयनिधि की बात को सभ्य तरीके से अस्वीकार करने का स्पष्ट संदेश भेजा। एकेश्वरवादी मजहबों से संबंधित दो वक्ताओं द्वारा उदयनिधि के उन्मूलन आह्वान के विरुद्ध सनातनधर्मियों के साथ एकजुटता प्रदर्शित किये जाने से यह सम्मेलन पांथिक एकता का भी अवसर बन गया। उन दोनों महिला वक्ताओं ने सनातन धर्म की प्राचीनता का उल्लेख करते हुए कहा कि यह अन्य पंथों के जन्म से बहुत पहले से अस्तित्वमान था।
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए अधीनकर्ता ने नये संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर उनके जैसे अन्य साधु-संतों के नेतृत्व में नये भवन में प्रवेश करने तथा सेंगोल स्थापित किये जाने जैसी सनातन प्रथा का जिक्र किया। तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 40 प्रतिशत वंचित द्रविड़ों के ईसाई मिशनरियों के निशाने पर होने का उल्लेख करते हुए उन्होंने आशंका जतायी कि मिशनरियों को खुश करने के उद्देश्य से ही उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म के उन्मूलन का आह्वान किया था। उन्होंने बताया कि वह स्वयं उन वंचित वर्गों को मदद करने में लगे हैं और अपेक्षा की कि दूसरे लोग भी ऐसा ही करें।
इंदु (हिंदू) मक्कल काची के प्रमुख अर्जुन संपत ने अपने सम्बोधन में उल्लेख किया कि जिन सामाजिक सुधारों को सामान्यत: ईवीआर से जोड़ा जाता है, वे तथाकथित सुधार ईवीआर के जन्म से बहुत पहले ही शुरू हो चुके थे। देवेंद्र वेल्लालर समुदाय को अनुसूचित जाति की श्रेणी से बाहर लाने की लड़ाई के अगुआ रहे थंगराज ने अपने समुदाय को सम्मान दिलाने की लड़ाई को याद करते हुए कहा कि द्रविड़ विचारधारा ने उनके समुदाय को सम्मान न देते हुए हमेशा उसे नीचा दिखाया था। उन्होंने गो-रक्षकों के रूप में समुदाय की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा सराहना का उल्लेख भी किया। उन्होंने कहा कि कोई भी उनके समुदाय के सनातन मूल पर सवाल नहीं उठा सकता।
सम्मेलन पर गहरी छाप छोड़ने वाले एक अन्य वक्ता ‘टाडा’ पेरियासामी थे जिन्होंने बताया कि अपने आरंभिक जीवन में उन्हें जातिगत भेदभाव की कुछ परेशान करने वाली घटनाओं का सामना करना पड़ा था। इन अप्रिय अनुभवों से वह हथियार उठाने के लिए प्रेरित हुए, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें अहसास हुआ कि उन घटनाओं का सनातन धर्म से कोई लेना-देना नहीं था। अब वे पूरी निष्ठा से सनातन सिद्धांतों के प्रसार में लगे हैं।
विभिन्न स्थानों पर सनातन धर्म पर आयोजित हो रही बहसों के प्रत्युत्तर में ऐसा आयोजन हो। कुछ लोग चाहते थे कि ऐसे सम्मेलन अन्य राज्यों में भी आयोजित हों क्योंकि आम तौर पर इस बारे में जागरूकता की कमी है कि सनातन धर्म क्या है और अतीत के विभिन्न कालखंडों में लोगों द्वारा पैदा की गई सामाजिक बुराइयों के लिए इसे दोषी क्यों नहीं ठहराया जा सकता। लोगों का मानना था कि उदयनिधि की अपमानजनक बातों का सकारात्मक पक्ष यह है कि इससे लोगों में एक बार फिर अपनी संस्कृति और धार्मिक सिद्धांतों के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने की रुचि पैदा हो गयी है।
भारतीय जनता पार्टी, तमिलनाडु के नेताओं अश्वत्थामन और अमर प्रसाद रेड्डी ने उदयनिधि की टिप्पणी को खारिज किया। अश्वत्थामन ने जोर देकर कहा कि उदयनिधि का प्रयास हिंदुत्व के खिलाफ सांस्कृतिक युद्ध है क्योंकि सनातन धर्म एक प्राचीन संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है।
हर वक्ता ने अपना संबोधन इस बात पर केंद्रित किया कि सनातन धर्म क्या है और कि सामाजिक कुरीतियां इस धर्म के साथ पैदा नहीं हुई थीं। दुष्यंत श्रीधर ने विभिन्न तमिल ग्रंथों का उल्लेख करते हुए कहा कि वे सभी देवताओं और हिंदू धर्म की समान अवधारणाओं की बात करते हैं जिससे इस धर्म के अत्यंत प्राचीन अतीत के अस्तित्व पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता। ‘ऋषि धर्म’ नामक संगठन चलाने वाले डी.ए. जोसेफ ने समानता और सामाजिक न्याय की अवधारणा के संबंध में द्रमुक के झूठे दावों को तार-तार कर दिया।
इस अवसर पर ‘सनातन तमिळार’ नाम से एक पुरस्कार शुरू किया गया। इस वर्ष का पुरस्कार द्रविड़ पार्टियों के पाखंड और झूठ को उजागर करने वाली पुस्तक ‘द्रविड़ मायाई’ के लेखक सुब्बू को दिया गया।
यह सम्मेलन एक द्रमुक राजनीतिज्ञ द्वारा सनातन आस्था पर हमले से आहत उन सनातनियों की उम्मीदों पर खरा उतरा जिन्होंने इस उम्मीद में सुबह 9 बजे से ही आयोजनस्थल खचाखच भर दिया था कि इसके माध्यम से धर्म-विरोधियों को समुचित उत्तर दिया गया। सनातनियों की अपेक्षा थी कि तमिलनाडु में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने के उद्देश्य से विभिन्न स्थानों पर सनातन धर्म पर आयोजित हो रही बहसों के प्रत्युत्तर में ऐसा आयोजन हो।
कुछ लोग चाहते थे कि ऐसे सम्मेलन अन्य राज्यों में भी आयोजित हों क्योंकि आम तौर पर इस बारे में जागरूकता की कमी है कि सनातन धर्म क्या है और अतीत के विभिन्न कालखंडों में लोगों द्वारा पैदा की गई सामाजिक बुराइयों के लिए इसे दोषी क्यों नहीं ठहराया जा सकता। लोगों का मानना था कि उदयनिधि की अपमानजनक बातों का सकारात्मक पक्ष यह है कि इससे लोगों में एक बार फिर अपनी संस्कृति और धार्मिक सिद्धांतों के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने की रुचि पैदा हो गयी है।
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