देहरादून। चमोली जिले में जोशीमठ में भवनों में आई दरारों की वजह सामने आ गई है। विभिन्न एजेंसियों की रिपोर्ट में एक बात एक जैसी है कि यहां अंधाधुंध मकानों का निर्माण हुआ और इसमें ये ध्यान नहीं रखा गया कि जोशीमठ के नौ वार्डों की पहाड़ियां कमजोर हैं।
भारतीय भवन अनुसंधान संस्थान के अभियंताओं की 342 पेज की रिपोर्ट कहती है कि जोशीमठ के जिन नौ वार्डों में मकानों में दरारें आई हैं, वे पहाड़ कच्चे और ढाल पर हैं और यहां कंक्रीट-लोहे का काफी इस्तेमाल किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार 2368 मकानों का परीक्षण किया गया है, जिनमें 868 मकानों में दरारें पाई गई हैं। इनमे गांधी नगर के 156 मकान सबसे ज्यादा खतरे की सीमा में हैं। रिपोर्ट के अनुसार 20 प्रतिशत घर रहने योग्य नहीं, 42 प्रतिशत आंशिक नुकसान वाले और 37 प्रतिशत उपयोग में लाए जा सकते हैं और एक प्रतिशत को ध्वस्त किया जाना है।
रिपोर्ट कहती है कि जोशीमठ की आबादी का घनत्व बढ़ गया है, जो भवन बने हैं उनमें वैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल नहीं किया गया। ऊंची-ऊंची इमारतें बना दी गईं, जिनका बोझ पहाड़ नहीं उठा पा रहे हैं। सीबीआरआई ने स्पष्ट कहा है कि यहां ग्रीन बिल्डिंग प्रणाली से ही भवनों का निर्माण किया जाए। संस्थान ये भी कहता है कि पानी की निकासी के उपाय नहीं किए गए और प्राकृतिक जल स्रोतों को भी बंद करके इन पर पक्के निर्माण कर दिए गए हैं, जिनकी वजह से घरों में पानी का रिसाव होने लगा है। संस्थान कहता है कि दीवारों में सीलन की वजह से भी मकान कमजोर हो गए, क्योंकि पहाड़ों में एक मकान की आयु भी बीस से पच्चीस साल होती है और यहां प्रयुक्त भवन सामग्री मानकों के अनुसार नहीं लगाई गई प्रतीत होती है।
उत्तराखंड सरकार ने अब हाई कोर्ट के निर्देश पर रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी है। रिपोर्ट में खास बात यह है कि थोड़ी दूरी पर बन रही जल विद्युत परियोजना को इसमें क्लीन चिट दी गई है, जिसके लिए वामपंथी एजेंसियों ने बवाल किया था और प्रोजेक्ट के खिलाफ आंदोलन चलाने के लिए चंदा वसूली भी की थी।
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