हिंदू संगठनों ने हिंदुओं के बीच जागरूकता अभियान चलाकर अवैध मजारों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया है। अभी तक 27 मजारों को तोड़ा जा चुका है।
तीर्थ नगरी ऋषिकेश में एक बड़े इस्लामिक षड्यंत्र का पदार्फाश हुआ है। इन इलाकों में हिंदुओं की जमीन कब्जाने के लिए मुसलमानों ने उनके घरों में मजारें बनवा दीं! ऋषिकेश के अलावा पछुवा देहरादून में भी इसी तरह की अवैध मजारें सामने आई थीं, जिन्हें प्रशासन ने ध्वस्त कर दिया। देहरादून शहर में भी 50 से अधिक अवैध मजारें हैं। हिंदू संगठनों ने हिंदुओं के बीच जागरूकता अभियान चलाकर अवैध मजारों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया है। अभी तक 27 मजारों को तोड़ा जा चुका है।
उत्तराखंड सरकार ने पहले से ही अवैध मजारों को ध्वस्त करने के लिए ‘अतिक्रमण हटाओ अभियान’ चला रखा है। इसी क्रम में एक सर्वेक्षण में ऋषिकेश के भट्टोवाला, केशव ग्राम, रूपा फार्म गुमानीवाला आदि क्षेत्रों में लगभग 72 हिंदू परिवारों के घरों में मजारें मिली हैं। अभियान के अंतर्गत अभी तक सरकारी जमीन पर बनी लगभग 480 अवैध मजारें हटाई जा चुकी हैं। उत्तराखंड में मजार जिहाद की शुरुआत लगभग दो दशक पहले हुई थी। देखते-देखते सरकारी जंगल की जमीन पर सैकड़ों अवैध मजारें बन गर्इं। उसके बाद राज्य के भोले-भाले लोगों की जमीनों पर मुस्लिम खादिमों की निगाह पड़ी, जहां महिलाएं रहती हैं। इन घरों में पुरुष नहीं हैं या हैं भी तो रोजी-रोजगार के लिए दूसरे शहरों में चले गए हैं। खादिम यह कह कर महिलाओं को अपने जाल में फंसाते हैं कि उनकी जमीन में मुस्लिम पीर-फकीरों का वास है। खादिम बुजुर्ग महिलाओं को अपनी बड़ी मजार पर बुलाकर उनसे चादर चढ़वाते हैं, फिर उन्हें बरगलाते हैं कि दुआ कबूल होने या मन्नत पूरी होने के बाद अपने घर में मजार बनाना।कई मजारों पर ‘भूमिया देवता पीर मजार’ लिखा हुआ है।
जिन हिंदुओं के घरों में मजारें बनी हुई हैं, उनका कहना है कि उनकी मां किसी पीर-फकीर की मजार पर गई थी और मन्नत मांगी थी। मन्नत पूरी होने के बाद मजार के खादिम ने उन्हें अपनी जमीन पर ‘मजार देवता’ बनाने के लिए कहा था। इसके बाद खादिम उनके घर आया और अपने सामने मजार बनवाई। मजार बनने के बाद वह नियमित रूप से यहां आता है। लगभग ऐसी ही कहानी सभी हिंदुओं ने बताई। अधिकतर मजारें लगभग 15-17 वर्ष पहले बनी हैं। सुमन विहार के स्वयंवर सिंह भंडारी के घर में बनी मजार हटाने के क्रम में पता चला कि इसका निर्माण उनकी मां ने कराया था। उनकी मां किसी मुस्लिम के संपर्क में थीं। यही बात मनसादेवी वार्ड संख्या 37 के कृपाल सिंह नेगी भी कहते हैं। उनका कहना है कि जो पहले हो गया, सो हो गया। इसका असर हमारी आने वाली पीढ़ी पर न पड़े और वह इस्लाम से दूर रहे, इसलिए हम मजार हटा रहे हैं।
श्रीदेव सुमन रोड स्थित उमा दत्त जोशी के घर में भी मजार बनी हुई थी। उनका कहना था कि मुसलमानों ने भोले-भाले बुजुर्गों को बरगला कर मजार बनवा दी थी, जिसे उन्होंने हटा दिया है। भट्टोवाला क्षेत्र के महेंद्र रमोला ने भी अपने आवासीय परिसर में बनी मजार को तोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि हमने अपनी गलती का पश्चाताप कर लिया है। वह अपने यहां मुसलमानों का आना-जाना भी बंद कर रहे हैं।
ऋषिकेश सनातन तीर्थ नगरी है और नगर पालिका के उपबंधों के अनुसार यहां गैर-हिंदुओं के रात्रि विश्राम पर पाबंदी थी। यहां गैर-हिंदू बस नहीं सकता था। मुस्लिम आबादी शहर से बाहर रहती थी। आज भी गंगा क्षेत्र में हिंदू ही रहते हैं। 1924 में मदन मोहन मालवीय और ब्रिटिश सरकार के बीच गंगा क्षेत्र को लेकर एक समझौता हुआ था, जिसे हरिद्वार और ऋषिकेश में लागू किया गया था।
हिंदू संगठन से जुड़े चंद्र भूषण शर्मा का कहना है कि ऋषिकेश में मुस्लिम खादिम हिंदू महिलाओं और भोले-भाले लोगों को बरगला कर उनके घरों में घुस रहे हैं और उनकी संपत्ति कब्जा रहे हैं। यह तीर्थ नगरी ऋषिकेश के इस्लामीकरण की दिशा में एक बड़ा षड्यंत्र है। यहां मुस्लिम खादिम-मौलवी अड्डा जमाने लगे थे। लेकिन हमने स्थानीय लोगों को समझा कर अवैध मजारों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया है। संत स्वामी दर्शन भारती कहते हैं कि इस्लामिक कट्टरपंथी हमारे तीर्थ स्थलों की जनसांख्यिकी बदलना चाहते हैं। लेकिन हम उनके षड्यंत्र को सफल नहीं होने देंगे और ऋषिकेश को मजार मुक्त करेंगे। अवैध मजारों को ध्वस्त करने में जुटीं समाजकर्मी राधा सेमवाल धोनी बताती हैं कि उत्तराखंड में 1,000 से अधिक अवैध मजारें हैं। यह अतिक्रमण का मॉडल ही नहीं, बल्कि देवभूमि के इस्लामीकरण का एक बड़ा षड्यंत्र है।
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