श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के सूत्रधार अशोक सिंहल जी, हिंदू समाज की दरारों को पाटना जिनके जीवन का उद्देश्य था
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श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के सूत्रधार अशोक सिंहल जी, हिंदू समाज की दरारों को पाटना जिनके जीवन का उद्देश्य था

अशोक जी का स्मरण आते ही श्रीराम जन्मभूमि का आन्दोलन मानस पटल पर घूमने लगता है, आज श्री अशोक सिंहल जी की जयंती है

by डॉ. चंद्रप्रकाश सिंह
Sep 27, 2023, 09:54 am IST
in भारत
श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के उन्नायक श्री अशोक सिंहल जी

श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के उन्नायक श्री अशोक सिंहल जी

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अशोक जी का स्मरण आते ही श्रीराम जन्मभूमि का आन्दोलन मानस पटल पर घूमने लगता है। वह समय आ गया जिसका भारत का विराट समाज पांच शताब्दियों से प्रतीक्षा कर रहा था। एक विदेशी आक्रान्ता ने भारत की चेतना के प्रतीक श्रीराम जन्मभूमि के मंदिर को तोड़कर भारत के मर्म पर प्रहार किया था। पांच शताब्दियों तक भारत व्याकुल रहा, युद्ध पर युद्ध होते रहे, छिहत्तर संघर्ष हुए और इसमें लगभग पौने चार लाख लोगों ने अपनी आत्माहुति दी, लेकिन भारत की स्वतंत्रता के बाद जो संघर्ष हुआ वह अपने-आप अद्भुत और अद्वितीय रहा| इस आन्दोलन ने सम्पूर्ण भारत को एकाकार कर लिया।

वास्तव में, बीसवीं इक्कीसवीं सदी का संधि काल इतिहास के पन्नों में हिंदू समाज के नवजागरण के काल खण्ड के रूप में अंकित होगा। यह वह कालखंड है जब शताब्दियों से पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े जाने से उत्पन्न आत्मविस्मृति एवं आत्महीनता की भावना को तोड़कर हिंदू समाज ने विश्वपटल पर हूंकार भरी थी। हिंदू समाज के सोए हुए पौरुष को जगाने का आधार बना श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन। यह आन्दोलन केवल एक मंदिर निर्माण का आन्दोलन नहीं था अपितु राष्ट्रीय स्वभिमान के जागरण का आन्दोलन था। विदेशी आक्रान्ता द्वारा राष्ट्र के स्वाभिमान पर किये गए कुठाराघात का परिमार्जन कर राष्ट्र के सांस्कृतिक स्वतंत्रता के उद्घोष का आन्दोलन था। चार सौ नब्बे वर्ष के अहर्निश संघर्ष के पश्चात् अब श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के सभी अवरोध समाप्त हो चुके हैं।

वह शुभ अवसर आ गया है जब भव्य मंदिर निर्माण का शुभारम्भ हो चुका है तब इस आंदोलन के स्मरण के साथ ही इसके नायकों में जो नाम प्रमुखता से उभरकर सामने आता है वह है श्रद्धेय अशोक सिंहल का। अशोक सिंहल जी उन महापुरुषों में थे जिन्होंने राष्ट्र की सुप्त पड़ी विराट चेतना को श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के माध्यम से झकझोर कर रख दिया। प्रांत भाषा, क्षेत्र के भेदभाव सुप्त पड़ गए। वास्तव में यह आन्दोलन भारत की राष्ट्रीय एकात्मता का महायज्ञ था। यह वह महायज्ञ था जिसमें न केवल लद्दाख से कन्याकुमारी और अरुणाचल से गुजरात तक अपितु सम्पूर्ण विश्व में कहीं भी निवास करने वाला भारत प्रेमी श्रीराम भक्त एकता के सूत्र में एकाकार हो गया।

इस सम्पूर्ण आन्दोलन की रीढ़ भारत की संत शक्ति रही और इस संत शक्ति को एकजुट करने में श्रद्धेय अशोक सिंहल जी की अद्वितीय भूमिका रही। अशोक जी की संतों के प्रति असीम श्रद्धा थी और संतों का अशोक जी के प्रति अटूट विश्वास और प्रेम। इस अन्दोलन में शैव, वैष्णव, शाक्त हों या जैन, सिख और बौद्ध सभी का कहीं न कहीं स्नेह और सौहार्द प्राप्त होता रहा। चाहे संन्यास परंपरा के दशनामी संन्यासी हों या वैष्णव परम्परा के रामानुज, रामानंद संप्रदाय के आचार्य हों या वल्लभ, निम्बार्क, मध्व व गौणीय वैष्णव मत के आचार्य हों या असम के सत्राधिकार हों या राजस्थान के रामस्नेही और महाराष्ट्र के वारकरी और रामदासी हों भारत में उद्भूत सभीं मत-पंथ के धर्माचार्यों का अद्भुत सहयोग इस आन्दोलन को प्राप्त हुआ। यह भारत की आध्यात्मिक एकाकारता का अद्भुत उदहारण था और इस महान कार्य के सूत्रधार थे श्रद्धेय अशोक सिंहल।

यह आन्दोलन न केवल राष्ट्रीय एकात्मता अपितु सामाजिक समरसता का भी अद्भुत प्रेरक था। इस आन्दोलन में वर्ण, जाति, पंथ, संप्रदाय सभी का भेद एकाकार होकर श्रीराम मय हो गया भारत राम का और राम इस भारत के बस यही एकमात्र सत्य बाकी सब कुछ ओझल हो चुका था। गली, गाँव, चौराहे पर बस एक ही धुन “रामलला हम आएंगे, मंदिर भव्य बनायेंगे।” कण-कण में बसने वाले राम विराट रूप में साकार हो गए थे। अबाल-वृद्ध सभी श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के लिए ऐसे व्याकुल थे जैसे त्रेता युग में बनवास के समय शबरी प्रतीक्षा कर रही थी और अयोध्या वापसी के समय भरत।

युगों-युगों से भारत श्रीराम पर किये गए अघात-प्रतिघात से व्यथित और व्याकुल हो जाता है , क्योंकि श्रीराम भारत की लोक-चेतना हैं, इसलिए सदैव भारत के लोक को श्रीराम की परंपरा की कसौटी पर कसा जाता रहा है। श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण का अभिप्राय केवल मंदिर निर्माण नहीं भारत के निर्माण से है। श्रीराम के जन्मस्थान का अपमान भारत की लोकचेतना का अपमान था। अब भारत उसका परिमार्जन कर रहा है, लेकिन इसका पूर्ण सुफल तभी होगा जब श्रीराम का निवास केवल मंदिर में ही नहीं लोक-चेतना और लोक-जीवन में इस प्रकार स्थापित हो कि कोई आक्रान्ता श्रीराम की जन्मभूमि ही नहीं इस पवित्र भारत राष्ट्र की तरफ भी वक्र दृष्टि से देखने का साहस न कर सके। श्रीराम की परम्परा ही भारत की भावना है। जब यह भावना कमजोर होती है तब भारत कमजोर होता है, इसलिए यदि भारत को शक्तिशाली बनाना है तो राम के भाव को शक्तिशाली बनाना होगा।

(लेखक अंरुधती वशिष्ठ अनुसंधान पीठ, प्रयाग के निदेशक एवं श्री अशोक सिंहल जी के निजी सचिव रहे हैं। संपूर्ण लेख  पूर्व में प्रकाशित हो चुका है। आर्काइव से लेख के अंश का प्रकाशन किया गया है)

Topics: हिंदू समाजश्रीराम जन्मभूमि आंदोलनविश्व हिंदू परिषदअशोक सिंहलAshok SinhalShri Ram Janmabhoomi movement
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