राहुल गांधी ने फिर किया हिन्दू धर्म का अपमान, अब मूर्तियों पर प्रहार

राहुल गांधी जब यह बोल रहे हैं तो वह अपने उस ढोंग की पोल खोल रहे हैं जो वह चुनावों के समय करते हैं। यदि मंदिरों में प्रतिमाएं उनके अनुसार बेकार हैं, पावर लेस हैं, तो वह मंदिर क्या करते जाते हैं?

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सोनाली मिश्रा

पिछले दिनों संसद में महिला आरक्षण विधेयक पर हुई बहस में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के प्रश्नों का उत्तर देते हुए एक बात कही थी कि वह एनजीओ के लिखे गए आरोप सदन में पढ़ते हैं। बार-बार यह प्रश्न उठते हैं कि आखिर राहुल गांधी का भाषण कौन लिखता है? क्योंकि जो बातें करते हैं उनसे उसी वामपंथी एजेंडे की गंध आती है जो कई वामपंथी सोच वाले एनजीओ चलाते हैं और जो सोच अधिकांश हिंदूविरोधी होती है।

राहुल गांधी ने एक बार फिर से हिन्दू विरोधी सोच का प्रदर्शन करते हुए हिन्दू धर्म का अपमान किया है। एक बार फिर से राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी को घेरने के लिए हिन्दू धर्म की अवधारणा पर प्रहार किया है और कहा है कि मंदिरों में शक्तिहीन मूर्तियां होती हैं। उन्होंने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री किसी भी निर्णय को लेते समय किसी को पूछते नहीं हैं, जैसे मंदिरों में एक ओर मूर्तियां खड़ी रहती हैं, वैसे ही इस सरकार में सांसद खड़े रहते हैं। उन्होंने कहा कि ओबीसी सांसदों की मूर्तियां भर रखी हैं, मगर पावर बिलकुल नहीं है। यह राहुल गांधी की वह सोच है जो पूरी तरह से हिन्दू विरोधी है और भारत के ही नहीं, बल्कि विश्वभर में फैले मंदिरों का अपमान है, राहुल गांधी क्या कहना चाहते हैं कि क्या मंदिरों में निष्प्राण प्रतिमाएं हैं? क्या विग्रहों में शक्ति नहीं होती है?

दरअसल राहुल गांधी जब यह बोल रहे हैं तो वह अपने उस ढोंग की पोल खोल रहे हैं जो वह चुनावों के समय करते हैं। यदि मंदिरों में प्रतिमाएं उनके अनुसार बेकार हैं, पावर लेस हैं, तो वह मंदिर क्या करते जाते हैं? कांग्रेस के लोग मंदिर क्या करने जाते हैं? क्या वह उन मूर्तियों को कोई खिलौना समझते हैं जो जाते हैं या विशुद्ध राजनीतिक दृष्टि से जाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि हिंदुत्व की बात करने पर ही लोग उन्हें वोट देंगे? या फिर प्रधानंमंत्री मोदी की नक़ल करना चाहते हैं? यदि मंदिरों में शक्ति नहीं है तो वह मंदिर-मंदिर क्यों घूमते हैं?
मंदिरों की शक्तियों का भान शायद राहुल गांधी को नहीं है, या फिर वह भी उसी सोच का प्रदर्शन करते हैं जो हिन्दू धर्म के विग्रहों को मात्र उस बुत के रूप में देखती है जिसे तोड़ा ही जाना चाहिए। राहुल गांधी शायद भूल गए हैं या फिर उन्हें ज्ञात नहीं होगा कि हिन्दू धर्म में जब तक प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती है, तब तक उन्हें विग्रह नहीं माना जाता और तब तक उन्हें मंदिर में नहीं रखा जाता।

राहुल गांधी यह भी भूल रहे हैं कि हिन्दू धर्म में विग्रहों को जीवित इकाई माना जाता है और तभी अयोध्या में श्री रामलला की ओर से पैरवी करने वाले परासरन ने कहा था कि चूंकि रामलला नाबालिग हैं, इसलिए उनकी ओर से अंतरंग मित्र मुकदमा लड़ रहे हैं। इतना ही नहीं राहुल गांधी शायद काशी में भी बाबा विश्वनाथ के मंदिर गए थे। वहीं ज्ञानवापी परिसर में माँ गौरी के श्रृंगार के अधिकार को लेकर ही मुकदमा चल रहा है क्योंकि यह विग्रहों का अधिकार है कि उनका श्रृंगार, पूजापाठ नियमित विधिविधान से हो क्योंकि उनमें जीवन माना गया है। यह हिन्दुओं के धार्मिक विश्वास हैं। परन्तु राहुल गांधी के भाषण लिखने वाले की दृष्टि में और राहुल गांधी की भी दृष्टि में हिन्दू मन्दिरों में प्रतिमाएं दरअसल केवल वह बुत या आइडल हैं, जिन्हें तोड़ा जाना ही उचित है, जैसा कि उर्दू शायर बार-बार कहते
हुए आए हैं जैसे
वफ़ा जिस से की बेवफ़ा हो गया
जिसे बुत बनाया ख़ुदा हो गया
हफ़ीज़ जालंधरी
वो दिन गए कि ‘दाग़’ थी हर दम बुतों की याद
पढ़ते हैं पाँच वक़्त की अब तो नमाज़ हम
दाग़ देहलवी
ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी हैं राहत

हर इक तराशे हुए बुत को देवता न कहो
राहत इन्दौरी

यह कुछ शायरी हैं जो बुत पर हैं, बुत का अर्थ या तो शैतान के अर्थ में है या फिर जिसमें जान न हो! कमोबेश यही अर्थ idol या statue का है। cambridge डिक्शनरी के अनुसार इसका अर्थ है an object made from a hard material, especially stone or metal, to look like a person or animal: परन्तु क्या यही अर्थ हमारे समाज में प्रतिमा का है? हमारे यहाँ पर प्रतिमा का अर्थ है प्रतिमान! किसी देव के गुणों, उनकी शक्तियों के आधार पर उनके मूर्त रूप की प्रतिमा बनाते हैं एवं फिर उनमें प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। उसके उपरान्त वह विग्रह के रूप में स्थापित होते हैं और उसके उपरान्त ही हिन्दू उन्हें अपने देव मानकर उनकी पूजा करते हैं। मंदिरों में मूर्तियाँ पावरलेस नहीं होती हैं, बल्कि उनमें पावर होती है। मूर्तियां प्रतीक होती हैं संस्कृति की, धर्म की एवं उस पहचान की जो हमारी जड़ों को बताती है।

मूर्तियों को पावरलेस बोलकर राहुल गांधी वही हमला कर रहे हैं, जो आज तक हिन्दुओं पर आक्रमण करने वाले आतताई करते रहे। उन्होंने भी मंदिरों पर आक्रमण किए। मंदिरों या प्रतिमाओं पर आक्रमण मात्र उनके अनुसार निर्जीव या पावरलेस मूर्तियों पर आक्रमण नहीं होता, बल्कि यह आक्रमण हिन्दुओं को पावरलेस बनाने के लिए होता है, उनकी स्थापत्य कला, उनके मन्दिरों के विज्ञान एवं देवों के प्रति निष्ठा को नष्ट करने के लिए होता है।

दुर्भाग्य की बात यही है कि आज राहुल गांधी हिन्दुओं की प्रतिमाओं को, हिन्दुओं के विग्रहों को बुत, स्टैचू, और आइडल के स्थानापन्न के रूप में देख रहे हैं, और हिन्दुओं का अपमान ही नहीं, बल्कि उनकी मूल अवधारणा पर प्रहार कर रहे हैं। राहुल गांधी यह भूल रहे हैं कि आज जो अयोध्या के गौरव को पूरे विश्व के हिन्दू अनुभव कर रहे हैं उसका सारा संघर्ष रामलला की प्रतिमा के चलते ही हुआ है और आज काशी की मुक्ति में नंदी बाबा की प्रतिमा ही संघर्ष का आधार है। परन्तु जड़ों से कटे एवं हिन्दू धर्म को न समझने वाले राहुल गांधी इसे कभी समझ नहीं पाएंगे!

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