यह गलियारा क्षेत्रीय आपूर्ति शृखलाओं को सुरक्षित करेगा, व्यापार पहुंच बढ़ाएगा, व्यापार सुविधाओं में सुधार करेगा, सरकारों के पर्यावरणीय एवं सामाजिक प्रभावों पर बढ़ते प्रयासों में मददगार होगा। आईएमईसी से होने वाले लाभों की सूची बहुत लंबी है।
प्राचीन काल में व्यापारी, जो आयातक भी थे और निर्यातक भी, जापान के पश्चिमी तट से लेकर इंडोनेशिया के द्वीपों से होते हुए भारत और फिर भूमध्य सागर के पार यूरोप तक समुद्री मार्गों के नेटवर्क से लौंग और दालचीनी जैसे मसालों का व्यापार करते थे। अंग्रेजों ने इसे स्पाइस रूट कहा, जो पूर्व को पश्चिम से जोड़ता था। अब भारत ने फिर भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) की योजना बनाई है, जो भारत से पूरे मध्य पूर्व होते हुए यूरोप तक को जोड़ेगा। माने, बहुत कुछ ऐतिहासिक स्पाइस रूट और सिल्क रूट की तरह। इससे सभी पक्षों को बहुत बड़े स्तर पर आर्थिक लाभ के साथ-साथ रणनीतिक लाभ भी मिलने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है, ‘सभी क्षेत्रों के साथ संपर्क बढ़ाना भारत की प्रमुख प्राथमिकता रही है।’
प्रधानमंत्री मोदी ने 9-10 सितंबर को जी-20 शिखर सम्मेलन की शानदार सफलता के बाद एक क्षण भी विश्राम किए बिना सम्मेलन के समापन के दिन ही घोषणा कर दी थी कि जल्द ही नवंबर में जी-20 नेताओं की आभासी बैठक आयोजित की जाएगी। अमृतकाल के दौरान भारत की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक यह है कि जी-20 शिखर सम्मेलन के साथ ही भारत, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), फ्रांस, जर्मनी, इटली और संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकारों ने एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। व्हाइट हाउस की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस एमओयू के प्रतिभागियों ने आईएमईसी की स्थापना के लिए मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जताई है।
आर्थिक-रणनीतिक लाभ
आईएमईसी से एशिया, अरब सागर के तटों के खाड़ी देशों और यूरोप के बीच बढ़ी हुई कनेक्टिविटी और आर्थिक एकीकरण के माध्यम से आर्थिक विकास को बड़ा प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा है कि व्हाइट हाउस इस अंतर महाद्वीपीय पारगमन परियोजना में निवेश कर रहा है। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमारा मानना है कि भारत से पूरे मध्य पूर्व, यूरोप तक कनेक्टिविटी कल्पनातीत ढंग से महत्वपूर्ण है और इससे इसमें शामिल सभी देशों को महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ के साथ-साथ रणनीतिक लाभ भी मिलेगा।’’
यूरोपीय संघ की कार्यकारी शाखा-यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने इस परियोजना को ‘महाद्वीपों और सभ्यताओं के बीच हरित और डिजिटल सेतु’ करार दिया है। आईएमईसी की बताई गई रूपरेखा से संकेत मिलता है कि इसमें दो अलग-अलग गलियारे शामिल होंगे। एक पूर्वी गलियारा, जो भारत को अरब सागर (खाड़ी क्षेत्र) से जोड़ेगा और दूसरा उत्तरी गलियारा, जो खाड़ी क्षेत्र को यूरोप से जोड़ेगा। इसमें एक रेल मार्ग भी शामिल होगा, जो मौजूदा समुद्री और सड़क परिवहन मार्गों का पूरक, विश्वसनीय और लागत की दृष्टि से प्रभावशाली, सीमाओं के आर-पार, जहाज से रेल पारगमन नेटवर्क प्रदान करेगा। इससे भारत, यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन, इस्राइल तथा यूरोप के बीच परस्पर माल और सेवाओं का पारगमन संभव हो सकेगा।
परियोजना एक, फायदे अनेक
रेल मार्ग के साथ इस एमओयू में शामिल देशों का इरादा बिजली और डिजिटल संपर्क केलिए केबल के साथ-साथ स्वच्छ हाइड्रोजन निर्यात के लिए पाइपलाइन बिछाने का भी है। यह गलियारा क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करेगा, व्यापार पहुंच बढ़ाएगा, व्यापार सुविधाओं में सुधार करेगा तथा सरकारों के पर्यावरणीय एवं सामाजिक प्रभावों पर बढ़ते प्रयासों में मददगार होगा। आईएमईसी से होने वाले लाभों की सूची बहुत लंबी है। यह सभी संबद्ध देशों में दक्षताएं बढ़ाएगा, लागत कम करेगा, आर्थिक एकीकरण को पुष्ट करेगा, बड़े पैमाने पर नौकरियों के अवसर पैदा करेगा और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करेगा। इसके परिणामस्वरूप एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व का परिवर्तनकारी एकीकरण होगा।
आईएमईसी एमओयू हस्ताक्षरकर्ताओं ने दो नए पारगमन मार्गों के सभी तत्वों को व्यवस्थित करने और लागू करने तथा तकनीकी, डिजाइन, वित्तपोषण, कानूनी और प्रासंगिक नियामक मानकों की पूरी शृंखला पर काम करने के लिए समन्वय संस्थाओं की स्थापना हेतु सामूहिक रूप से और तेजी से काम करने पर प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
जी-20 नेताओं की आभासी बैठक आयोजित की जाएगी। अमृतकाल के दौरान भारत की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक यह है कि जी-20 शिखर सम्मेलन के साथ ही भारत, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), फ्रांस, जर्मनी, इटली और संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकारों ने एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। व्हाइट हाउस की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस एमओयू के प्रतिभागियों ने आईएमईसी की स्थापना के लिए मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जताई है।
योजना को ठोस आकार
वास्तव में आईएमईसी उस प्रारंभिक परामर्श का परिणाम है, जिसमें मई 2023 में जापान के हिरोशिमा में हुई जी-7 चर्चा शामिल है। इस बैठक में अन्य आमंत्रित सदस्यों के साथ भारत भी शामिल था। लेकिन इस योजना को ठोस आकार मिला है नई दिल्ली में। अब एमओयू हस्ताक्षरकर्ता प्रासंगिक समय सारिणियों के साथ एक कार्य योजना विकसित करने और उस पर सभी को प्रतिबद्ध करने के लिए 60 दिनों के भीतर मिलने के लिए सहमत हुए हैं। इसके महत्व और इसकी पृष्ठभूमि को वैश्विक अवसंरचना और निवेश के लिए साझेदारी (पीजीआईआई) से समझा जा सकता है। इस बुनियादी ढांचा योजना की घोषणा पहली बार जून 2021 में यूके में हुए जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी। जी-7 में यूके, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और यूरोपीय संघ शामिल हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने पीजीआईआई को बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (बी3डब्ल्यू) फ्रेमवर्क कहा था।
हालांकि पीजीआईआई मामले में अभी तक जमीनी स्तर पर ठोस प्रगति नहीं हुई है। लेकिन जर्मनी में 2022 में हुए जी-7 शिखर सम्मेलन में सार्वजनिक और निजी निवेश के माध्यम से विकासशील देशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्त पोषित करने में मदद करने के लिए पीजीआईआई को आधिकारिक तौर पर एक संयुक्त पहल के रूप में लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए 2027 तक जी-7 से सामूहिक रूप से लगभग 600 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाना है।
हिरोशिमा शिखर सम्मेलन में शामिल नेताओं ने पीजीआईआई को बढ़ाने के लिए नए अवसरों की पहचान करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की थी। इस शिखर सम्मेलन में आस्ट्रेलिया, कोमोरोस, कुक आइलैंड्स, भारत, इंडोनेशिया, वियतनाम, कोरिया गणराज्य, विश्व बैंक के नेता और वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए थे। विकासशील दुनिया में इन परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक और निजी पूंजी का प्रवाह शुरू करने और एक गंभीर टिकाऊ मार्ग खोलने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए सिटी, ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर पार्टनर्स, जापान फॉरेन ट्रेड काउंसिल व नोकिया के अधिकारी भी शामिल हुए थे।
बीआरआई का जवाब पीजीआईआई
उम्मीद है कि आईएमईसी को भी पीजीआईआई के तहत वित्त पोषित किया जाएगा। हालांकि, अभी स्पष्ट नहीं है कि आईएमईसी पर कितना खर्च आएगा, लेकिन सऊदी क्राउन प्रिंस के अनुसार इसकी अनुमानित लागत लगभग 20 अरब डॉलर होगी। पीजीआईआई ने निम्न और मध्यम आय वाले देशों में उच्च गुणवत्ता वाले बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण की वैश्विक मांग को बेहतर ढंग से पूरा करने के लिए प्रमुख निवेशकों को आकर्षित किया है। पीजीआईआई लॉन्च होने के बाद से ही जी-7 नेताओं ने इसके माध्यम से ऊर्जा, भौतिक, डिजिटल, स्वास्थ्य और जलवायु को सह सकने योग्य बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण में सैकड़ों अरब डॉलर जुटाने के लक्ष्य पर काम शुरू कर दिया है। इस कार्य में लैंगिक समानता और समता को प्रोत्साहित करने, श्रम और पर्यावरण मानकों के संवर्धन, पारदर्शिता, शासन व भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को बढ़ावा देने जैसे लक्ष्यों पर भी ध्यान दिया गया है। हिरोशिमा बैठक की कार्यवाही के अनुसार, पीजीआईआई के तहत भारत में दो परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी।
पीजीआईआई को वैश्विक स्तर पर चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाता है। बीआरआई के जरिये चीन यूरोप में रोम से लेकर पूर्वी एशिया तक आवाजाही वाले प्राचीन व्यापारिक मार्गों को पुनर्जीवित करना चाहता है। बीआरआई के तहत चीनी सरकार विभिन्न देशों को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए ऋण देती है और कई मामलों में परियोजना का ठेका चीनी कंपनियों को ही दिया गया।
पीजीआईआई और बीआरआई, दोनों का घोषित उद्देश्य वैश्विक व्यापार और सहयोग बढ़ाने के लिए सड़कों, बंदरगाहों, पुलों, संचार जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए देशों को सुरक्षित वित्त पोषण में मदद करना है। भले ही बीआरआई से चीन को वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ने में मदद मिली है, लेकिन इस परियोजना से जुड़े देशों को अव्यावहारिक ऋण देने के लिए चीन की आलोचना भी हुई है, जो ऋण चुकाने में असमर्थ होंगे। इसके विपरीत, नई दिल्ली में हुई जी-20 सम्मेलन में बड़ी संख्या में देशों, विशेषकर ग्लोबल साउथ के अव्यावहारिक ऋण बोझ पर चिंता जताई गई।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व का लगभग 42 प्रतिशत निर्यात और 38 प्रतिशत वैश्विक आयात हिंद-प्रशांत से होकर गुजरता है। क्वाड सदस्य क्षेत्र में चीन की भूमिका और कानून के शासन के लिए बीजिंग की चुनौतियों को लेकर चिंतित हैं। आईएमईसी भारत को अपने आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने व सुरक्षित करने के लिए अपनी समुद्री सुरक्षा क्षमता और क्षमता बढ़ाने का भी अवसर प्रदान करेगा।
बीआरआई पर विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरणीय ह्रास, महंगे ऋण और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है। भारत बीआरआई का विरोध कर रहा है, क्योंकि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) इसका एक हिस्सा है, जो चीन के काशगर को पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ता है। एक तो समूचा कश्मीर भारत का हिस्सा है और दूसरे अखंड भारत की अवधारणा में सीपीईसी प्रतिकूल रणनीतिक प्रभाव डालता है, इसलिए भारत इसके विरुद्ध है। जी-7 सदस्य देशों में से केवल इटली ही बीआरआई का हिस्सा था, लेकिन अब उसने भी इसे जारी रखने में असमर्थता जता दी है।
वास्तव में आईएमईसी के लिए क्वाड अधिक प्रासंगिक है। क्वाड के बीच समुद्री सहयोग 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के बाद शुरू हुआ। क्वाड के सदस्य देश एक व्यापक एजेंडे पर काम करते हैं, जिसमें सुरक्षा, आर्थिक और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे शामिल हैं। क्षेत्र में चीन के बढ़ते आक्रामक व्यवहार पर क्वाड देशों की अपनी साझा चिंताएं हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र दो महासागरों और कई महाद्वीपों तक फैला हुआ है। यह भारत के समुद्री हितों के लिहाज से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व का लगभग 42 प्रतिशत निर्यात और 38 प्रतिशत वैश्विक आयात हिंद-प्रशांत से होकर गुजरता है। क्वाड सदस्य क्षेत्र में चीन की भूमिका और कानून के शासन के लिए बीजिंग की चुनौतियों को लेकर चिंतित हैं। आईएमईसी भारत को अपने आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने व सुरक्षित करने के लिए अपनी समुद्री सुरक्षा क्षमता और क्षमता बढ़ाने का भी अवसर प्रदान करेगा।
भारत का लक्ष्य तीव्र विकास के साथ विकसित देश के रूप में वैश्विक अर्थव्यवस्था में तीसरी बड़ी शक्ति बनना है। इसलिए आंतरिक सुरक्षा के साथ भारत आर्थिक सुरक्षा को अत्यधिक महत्व देता है। इसलिए घरेलू उद्योग के विकास के लिए सुरक्षित आपूर्ति शृंखला और अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ निर्बाध निर्यातपरक व्यापार एक आवश्यक शर्त है।
आईएमईसी एक ऐसा ढांचा है, जिसमें भारत सुविचारित ढंग से अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में भागीदार बना है। आने वाले महीनों में जब इस पहल के विवरण सामने आएंगे, तो भारत की प्रमुख आर्थिक और सुरक्षागत चिंताएं और अमृतकाल के लक्ष्य इसके मार्गदर्शक पक्ष होंगे।
(लेखक जम्मू-कश्मीर कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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