नई दिल्ली। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के मकसद से रक्षा अधिग्रहण परिषद ने शुक्रवार को सशस्त्र बलों के लिए 45 हजार करोड़ रुपये मंजूर किये हैं। इसमें वायु सेना के लिए 12 सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की नासिक यूनिट में निर्मित किये जाने हैं। सुखोई वायुसेना का अग्रिम पंक्ति का लड़ाकू विमान है।वायुसेना के पास सुखोई-राफेल की जोड़ी बनने के बाद भारत की ‘आसमानी ताकत’ में काफी इजाफा हुआ है।
भारत ने रूस से 30 नवंबर,1996 को 272 सुखोई-30 लड़ाकू विमानों का अनुबंध किया था। यह बहु-उपयोगी लड़ाकू विमान रूस के सैन्य विमान निर्माता सुखोई तथा भारत के हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के सहयोग से बना है। 2004 के बाद से ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी के तहत 222 विमान एचएएल की नासिक यूनिट को दिए गए। इनमें से 40 सुखोई विमानों को सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस से लैस किया जाना था। सभी 40 विमान ब्रह्मोस मिसाइल से लैस किए जाने के बाद अपग्रेड करके वायुसेना को सौंपे जा चुके हैं, जिनमें से कुछ को पिछले साल तमिलनाडु के तंजावुर हवाई अड्डे पर तैनात किया गया है।
एचएएल की नासिक यूनिट में सुखोई विमानों को अपग्रेड किए जाने के बाद मिग सीरीज के विमानों और सुखोई-30 की मरम्मत और ओवरहालिंग का कार्य चल रहा है। एचएएल के पास यहां प्रतिवर्ष 15 से 25 सुखोई-30 एमकेआई को ओवरहाल करने की क्षमता है। एचएएल अब यहां वायु सेना के लिए 83 स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस-एमके-1 ए के निर्माण की तैयारी कर रहा है, जिसके लिए एक और नये प्लांट का उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया है। उम्मीद है कि रक्षा मंत्रालय से दो बार मंजूरी मिलने के बाद 12 सुखोई विमानों का उत्पादन एचएएल की इसी नासिक यूनिट में किया जाएगा।
दरअसल, 2000 से 2019 के बीच 11 सुखोई-30 दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। वायुसेना के लड़ाकू बेड़े में इन विमानों की भरपाई करने के लिए 02 जुलाई, 2020 को रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने 10,730 करोड़ की लागत से 12 सुखोई-30 एमकेआई विमानों की खरीद को मंजूरी दी थी। रक्षा अधिग्रहण परिषद ने 15 सितम्बर को सशस्त्र बलों के लिए 45 हजार करोड़ रुपये मंजूर किये हैं। इनमें से रक्षा मंत्रालय ने भारतीय वायु सेना के लिए 12 सुखोई-30 एमकेआई की खरीद के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। 11 हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना में विमान और संबंधित ग्राउंड सिस्टम शामिल होंगे। विमान में आवश्यकता के अनुसार 60 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री शामिल होगी। यह विमान हवा से हवा मार करने वाली नई मिसाइलों के लिए बेहद कारगर माने जाते हैं।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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