ताइवान को लेकर धनपति कारोबारी एलन मस्क की अक्खड़ बयानबाजी को लेकर ताइवान ने अपना गुस्सा जाहिर किया है। चीन की कटु चालों को झेलते आ रहे संप्रभु देश ताइवान के के विदेश मंत्री ने पिछले हफ्ते मस्क द्वारा दिए एक बयान के जवाब में दो टूक कहा है कि ताइवान किसी मायने में चीन का हिस्सा नहीं है। मस्क का ऐसा कहना बहुत ही गलत, आपत्तिजनक और निंदनीय है।
ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ ने खुद मस्क को फटकारा है कि उन्होंने आखिर ऐसा सोच भी कैसे लिया कि ताइवान चीन का हिस्सा है। एलन मस्क की इस सोच में चीन के एजेंडे की बू है, जिस पर चलते हुए वह ताइवान को हड़पकर चीन में मिलाने के सपने देख रहा है।
अमेरिकी व्यवसायी एलन मस्क को जवाब देते हुए जोसेफ ने कहा है कि ताइवान कोई बिकाऊ देश नहीं है। मस्क ने यह आपत्तिजनक बयान पिछले हफ्ते एक कार्यक्रम में दिया था। उसमें उनका कहना था कि ताइवान चीन का अंग है। मस्क के इसी बयान को लेकर ताइवान जैसे स्वाभिमानी देश का गुस्सा होना स्वाभाविक ही है। इसलिए विदेश मंत्री जोसेफ ने उन्हें वक्त रहते कड़ी फटकार लगाई है।
ताइवान के विदेश मंत्री को इस बात पर आपत्ति इसलिए है क्योंकि मस्क के बयान में ऐसा संकेत मिलता है कि वह ताइवान जैसे संप्रभु देश को चीन में मिलाने की बात कर रहे हैं।
चीन तो जाने कबसे ताइवान पर अपनी विस्तारवादी गिद्धदृष्टि गढ़ाए बैठा है। वह चाहता है कि भय दिखाकर ताइवान को उसकी मुख्यभूमि से जुड़ने के लिए राजी कर ले। इसके लिए वह कई मौकों पर ताइवान के आसमान में युद्ध जैसे पैंतरे दिखा चुका है। वह ‘ऐतिहासिक रूप से’ ताइवान को चीन का हिस्सा बताता आ रहा है और हर उस देश की भर्त्सना करता है, धमकाता है जो ताइवान के साथ किसी भी तरह का व्यवहार रखता है।
असल में मस्क ने कहा था कि चीनी नीति में है कि ताइवान को फिर से चीन में मिलाना है। जोसेफ ने इस बयान के जवाब में यह भी कहा कि उन्हें तो इस बात की आस है कि मस्क चीन से अपील करेंगे कि चीन अपने देश में उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ को अपने नागरिकों के लिए सुलभ करा देंगे। लेकिन ऐसा मुश्किल लगता है। रही ताइवान की बात, तो मस्क ध्यान रखें कि ताइवान चीन का अंग नहीं है। जोसेफ के शब्द और कड़े होते गए और उन्होंने यहां तक कह दिया कि ताइवान बिकाऊ देश नहीं है। ताइवान की लोकतांत्रिक पद्धति से चयनित सरकार चीन के संप्रभुता के तमाम तरह के दावे अस्वीकार करती है और करती रहेगी।
एलन मस्क ने ताइवान के संदर्भ में कोई पहली बार ऐसा नहीं कहा है। अक्तूबर 2022 में भी एक जगह उन्होंने यह ‘सलाह’ दी थी कि चीन और ताइवान के बीच के तनातनी को दूर करने ताइवान को चाहिए कि वह अपने यहां थोड़ा बहुत नियंत्रण चीन के हाथों में सौंप दे। जाने
उल्लेखनीय है कि चीन तो जाने कबसे ताइवान पर अपनी विस्तारवादी गिद्धदृष्टि गढ़ाए बैठा है। वह चाहता है कि भय दिखाकर ताइवान को उसकी मुख्यभूमि से जुड़ने के लिए राजी कर ले। इसके लिए वह कई मौकों पर ताइवान के आसमान में युद्ध जैसे पैंतरे दिखा चुका है। वह ‘ऐतिहासिक रूप से’ ताइवान को चीन का हिस्सा बताता आ रहा है और हर उस देश की भर्त्सना करता है, धमकाता है जो ताइवान के साथ किसी भी तरह का व्यवहार रखता है।
उधर ताइवान हमेशा से खुद को एक संप्रभु राष्ट्र ही मानता आया है। चीन का ‘दावा’ 1940 की एक घटना को लेकर है जब चीन में गृहयुद्ध भड़का था और चीन व ताइवान दो अलग देश बन गए थे। लेकिन चीन की कम्युनिस्ट सत्ता आज भी अड़ी हुई है कि वह ताइवान को अपने में मिलाकर ही रहेगी। ताइवान उसके धमकाने में नहीं आता और उसने खुद को अपनी रक्षा करने लायक बना लिया है। अमेरिका, जापान जैसे बड़े देश ताइवान के पाले में हैं।
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