इन दिनों पकिस्तान तो खराब आर्थिक स्थितियों से गुजर ही रहा है, मगर यह बहुत ही हैरान करने वाला तथ्य है कि यूके के दूसरे सबसे बड़े शहर बर्मिंघम ने हाल ही में स्वयं को आर्थिक रूप से दिवालिया घोषित किया है, वहां भी पाकिस्तानियों की संख्या बहुत अधिक है। क्या इसमें कोई सम्बन्ध है? क्या पाकिस्तानी नागरिक आर्थिक बोझ बन जाते हैं या फिर आर्थिक बाध्यताएं? आइये पहले जानते हैं कि बर्मिंघम के साथ क्या हुआ है?
पिछले दिनों एक समाचार से सनसनी फैल गयी थी कि यूके का दूसरा सबसे बड़ा शहर बर्मिंघम दिवालिया हो गया है। उसने धारा 114 के अंतर्गत एक नोटिस जारी किया था, जिसके अनुसार उस शहर में हर प्रकार के नए व्यय पर रोक लग गयी थी और केवल आवश्यक व्यय ही किए जा सकते हैं।
यद्यपि बर्मिंघम काउंसिल के अनुसार यह जो भी वित्तीय समस्याएं उत्पन्न हुई हैं, वह “समान वेतन बाध्यता” के चलते हुई हैं, जिसके लिए उनके पास संसाधन नहीं हैं। स्थानीय अधिकारियों के अनुसार उन्हें वर्ष 2012 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार एक भुगतान करना था, जिनमें से अधिकाँश महिलाएं ही थीं, और वह शिक्षा सहायक, क्लीनर्स एवं केटरिंग स्टाफ के रूप में कार्य कर रही थीं और जिन्हें वह बोनस नहीं दिया जाता था, जो परम्परागत पुरुष वर्चस्व वाली भूमिकाओं को दिया जाता था।
परन्तु अब शहर के पास देने के लिए पैसा नहीं है। हालांकि जब सोशल मीडिया पर और इस मामले को खंगाला जाता है और मीडिया में आई और रिपोर्ट्स को पढ़ा जाता है तो एक बहुत ही चौंकाने वाला तथ्य कहीं न कहीं उभर कर आता है। और वह तथ्य है माइग्रेंट्स अर्थात शरणार्थियों को लेकर! एक यूजर ने X (twitter) पर लिखा कि बर्मिंघम काउंसिल ने दिवालिया होने की घोषणा कर दी है। और कितनी काउंसिल इसी भाग्य के रास्ते जा रही हैं। जहां हमारे अपने लोगों के पास घर नहीं हैं या फिर उनके घर जा रहे हैं, उतने ही ज्यादा गैरकानूनी शरणार्थियों को पांच सितारा आरामदायक सुविधाएं दी जा रही हैं।
मगर टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के अनुसार बर्मिंघम सिटी काउंसिल की रिपोर्ट कई रोचक तथ्य उजागर करती है। यह बताती है कि इस शहर की काउंसिल पर पाकिस्तानी और बांग्लादेश मूल के लोगों की कितनी बड़ी जिम्मेदारी है। यह रिपोर्ट कहती है कि इस शहर की आधी से अधिक जनसँख्या एथनिक माइनोरिटी अर्थात अल्पसंख्यक की है। और यहाँ पर पूरे यूके में सबसे सबसे अधिक पाकिस्तानी मूल के लोग हैं। कुछ ऐसा ही मिलता जुलता ट्वीट एक यूज़र ने किया, जिसमें उसने पाकिस्तानी मूल के लोगों का एक जुलूस और उसका चित्र साझा करते हुए लिखा कि क्या इस शहर के दीवालिया होने का एक बड़ा कारण वह पाकिस्तानी मूल की जनसँख्या नहीं है, जो करों का भुगतान नहीं करती है और हमेशा राज्य कल्याण योजनाओं का लाभ उठाती है।
रिपोर्ट पर एक बार फिर आते हैं। टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के अनुसार यूके के दूसरे सबसे बड़े शहर बर्मिंघम में सबसे अधिक पाकिस्तानी एवं बांग्लादेशी मूल के लोग रहते हैं। उनकी शिक्षा का स्तर, कौशल आदि ने काउंसिल की बैलेंस शीट को बिगाड़ा है। और इस शहर में काम करने वाली आयु के कुल 65% लोगों के पास नौकरी है, जबकि राष्ट्रीय औसत इसका 74% है।
पाकिस्तानी बन रहे बोझ, भारतीयों का हो रहा आदर
यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि बड़ी संख्या में पाकिस्तानी एवं बांग्लादेशी नागरिकों के पास योग्यता नहीं है एवं लगभग 47,005 लोग अंग्रेजी नहीं बोल पाते हैं। कुछ रिपोर्ट्स तो यह भी बताती हैं कि बड़ी संख्या में पाकिस्तानी और बांग्लादेश मूल के लोग कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। वर्ष 2021 के सर्वे के आंकड़ों के अनुसार बर्मिंघम में लगभग 3,55,384 एशियाई लोग रहते हैं, जिनमें से 1,95,102 पाकिस्तानी हैं तो वहीं 48,232 बांग्लादेशी हैं। यहाँ पर कुल 66,519 भारतीय हैं, परन्तु उनके कौशल, दक्षताओं और शिक्षा के चलते उनका आदर होता है और चूंकि वह देश की संस्कृति में घुल-मिल जाते हैं तो इस गुण के चलते भी उनका आदर होता है।
कई लोग इन्हीं आंकड़ों के चलते इसके दीवालिये होने पर प्रश्न उठा रहे हैं। कई यूजर जनसांख्यिकी पर बात कर रहे हैं। वह कह रहे हैं कि कुछ ही वर्ष पहले बर्मिंघम एक ब्रिटिश शहर हुआ करता था, अब वह मुस्लिम एशियाई लोगों से भरा है और यहाँ पर कानून व्यवस्था समाप्त हो चुकी है।
क़ानून व्यवस्था से पाठकों को स्मरण होगा कि पिछले वर्ष ही हिन्दुओं के विरुद्ध यूके में हिंसा हुई थी और कई मंदिरों को कट्टर मुस्लिमों की भीड़ ने निशाना बनाया था, जिनमें बर्मिंघम में भी एक मंदिर को तोड़ दिया गया था।
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