ज्यादातर हिन्दू यही देख-सुनकर खुशी से बावले हो जाएंगे कि पाकिस्तान के इतने बड़े मौलाना यह स्वीकार कर रहे हैं कि उनके पूर्वज हिन्दू थे। मगर इसमें बावले होने की जरूरत नहीं है। जो वह बता रहे हैं, उसे पहले ध्यान से सुनिए, समझिए और फिर सोचिए।
पाकिस्तान के सबसे बड़े और मशहूर मौलाना हैं, जनाब तारिक जमील साहब। तारिक जमील कहते हैं कि वह पृथ्वीराज चौहान के वंशज हैं।वह खुद को राजपूत चौहान बताते हैं। ज्यादातर हिन्दू यही देख-सुनकर खुशी से बावले हो जाएंगे कि पाकिस्तान के इतने बड़े मौलाना यह स्वीकार कर रहे हैं कि उनके पूर्वज हिन्दू थे। मगर इसमें बावले होने की जरूरत नहीं है। जो वह बता रहे हैं, उसे पहले ध्यान से सुनिए, समझिए और फिर सोचिए।
तारिक जमील साहब कहते हैं कि ‘‘पृथ्वीराज चौहान (जो कि इनके दादा हुए) को मुहम्मद गोरी रहमतुल्लाह अलैह (अल्लाह मुहम्मद गोरी पर अपनी कृपा बरसाए) ने मार डाला। उसका एक बेटा था ‘रामदेव’, जो कि ख्वाजा मोईनउद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह (अल्लाह ख्वाजा पर अपनी रहमत बरसाए) के द्वारा मुसलमान बनाया गया था। हम लोग उसी रामदेव के वंशज हैं।’’
कुछ समझ में आया आपको? कुछ दिखाई दिया? यह मौलाना अपने दादा और पिता का नाम कैसे ले रहे हैं तू-तड़ाक के साथ, जैसे वे कितने गिरे हुए और मुजरिम लोग हों। और जिसने इनके दादा को मार डाला, उस पर ये ‘खुदा की रहमत बरसा’ रहे हैं। जिस सूफी ने इनके दूसरे दादा ‘रामदेव’ को उनका धर्म छुड़वा कर इस्लाम कबूल करवाया, उस पर भी रहमत बरसा रहे हैं। ऐसी विचित्र शिक्षा आपने दुनिया में और कहीं देखी है?
सोचिए! जब ये अपने पुरखों से इतनी नफरत करते हैं तो धर्म के अन्य लोगों से क्या मुहब्बत करेंगे? और फिर बड़े-बड़े मंचों से इनके यही मौलाना आजकल सहअस्तित्व और शान्ति की बात करते हैं। मरे हुए पुरखों से तो सहअस्तित्व हो नहीं पा रहा है तुम्हारा, हमारे साथ क्या खाक होगा?
यह असलियत है इस समुदाय की। आपके अपने पुरखे, जो मजहब से इतर अपना धर्म मान रहे थे, उन्हें ही यह समुदाय आपका दुश्मन घोषित कर देता है। अरब में जब इस्लाम का फैलाव शुरू हुआ था, तब भाई अपने सगे भाई को, बाप अपने बेटे को, बेटा अपने पिता को सिर्फ इसलिए मार डालता था, क्योंकि वह इस्लाम से अलग अपना धर्म मानते थे और मुहम्मद को पैगम्बर नहीं स्वीकार कर रहे थे। आज भी वही स्थिति है। रत्ती भर भी बदलाव नहीं आया है। पाकिस्तान या किसी भी इस्लामी मुल्क में किसी का भाई या बेटा इस्लाम के अलावा कोई दूसरा पंथ अपना कर दिखा दे, घर वाले उसे वहीं मार डालेंगे। इस समुदाय की यही मूल शिक्षा है।
तारिक साहब बहुत बड़े मौलाना हैं और कम से कम यह स्वीकार ही कर ले रहे हैं कि उनका पूर्वज कोई हिन्दू था। यहां भारत के आम मुसलमान तो अपना खानदान सीधे अली और मुहम्मद से जोड़ कर बताते हैं। जैसे ये सीधे मक्का और मदीना से इम्पोर्ट किए गए हैं! ये इस वजह से अपनी सच्चाई नहीं बताते, क्योंकि इन्हें अपने हिन्दू पुरखों से ‘नफरत’ है।
सोचिए! जब ये अपने पुरखों से इतनी नफरत करते हैं तो धर्म के अन्य लोगों से क्या मुहब्बत करेंगे? और फिर बड़े-बड़े मंचों से इनके यही मौलाना आजकल सहअस्तित्व और शान्ति की बात करते हैं। मरे हुए पुरखों से तो सहअस्तित्व हो नहीं पा रहा है तुम्हारा, हमारे साथ क्या खाक होगा?
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