आई.एन.डी.आई. अलायंस ने देश को यह संदेश तो दे ही दिया कि पूरे देश में नरेंद्र मोदी के कद का नेता नहीं है। इसलिए 2024 में मुकाबला करने के लिए ये बौने एक-दूसरे के कंधों पर चढ़ कर उनके बराबर दिखने का प्रयास कर रहे हैं।
जोनाथन स्विफ्ट की 1726 में लिखित रोचक कहानी ‘गुलिवर्स ट्रैवल्स’ में गुलिवर दैत्याकार पात्र न होकर एक औसत शरीर का स्वामी है। लिलिपुटवासी अत्यंत छोटे-छोटे हैं, 6 इंच से भी कम कद के। उनके लिए तो गुलिवर किसी महाकाय जैसा ही था। उन्होंने गुलिवर को अपनी सबसे मजबूत रस्सियों से जकड़ दिया, पर गुलिवर के लिए तो वह धागे के समान थी। देश में अभी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। एक असाधारण प्रतिभा वाला साधारण व्यक्ति, जिसका न घर है न परिवार, जो गरीब घर में अपने पिता के छोटे से व्यवसाय में हाथ बंटाता रहा और पढ़ता रहा। 26 राजनीतिक दल मिलकर इस व्यक्ति को बांधने, रोकने का प्रयास कर रहे हैं। देश के बच्चे भी यह देख आश्चर्यचकित हैं। मानो पूछ रहे हों, वह तो बाकी मानवों के समान है, तुम सब इतने बौने कैसे हो? तथाकथित आई.एन.डी.आई. अलायंस ने देश को यह संदेश तो दे ही दिया कि पूरे देश में नरेंद्र मोदी के कद का नेता नहीं है। इसलिए 2024 में मुकाबला करने के लिए ये बौने एक-दूसरे के कंधों पर चढ़ कर उनके बराबर दिखने का प्रयास कर रहे हैं।
गठबंधन में शीर्ष पर कौन?
इन 26 दलों में समन्वय की बात होते ही यह प्रश्न खड़ा हो जाता है कि कौन-सा बौना नीचे होगा और कौन-सा उसके कंधों पर चढ़ेगा। एक क्षण के लिए कल्पना कीजिए कि एनडीए और आई.एन.डी.आई. अलायंस में मुकाबले की घोषणा हो गई है। दोनों टीमें आमने-सामने खड़ी हैं और अपना जय घोष कर रही हैं। एनडीए टीम ने भगवा टी शर्ट पहनी है और दूसरी टीम का रंग हरा है। सीटी बजती है और भगवा टीम के सदस्य फुर्ती से एक-दूसरे के कंधों पर चढ़ते हैं और शीर्ष का सदस्य कुछ ही पलों में हांडी तक पहुंच जाता है। किंतु दूसरी ओर हरी टीम में चर्चा चल रही है कि कौन नीचे होगा और कौन ऊपर। बहस इस पर भी है कि शीर्ष पर कौन होगा? इसका फैसला तो समय आने पर ही किया जाएगा। यह निर्णय करना कठिन नहीं है कि ऐसी परिस्थिति में कौन-सी टीम जीतेगी। यह कल्पना भी वस्तुस्थिति से बहुत परे नहीं है। जब भी आई.एन.डी.आई. अलायंस से पूछा गया कि यदि जीत गए तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा? उनका उत्तर होता है कि इसका निर्णय चुनाव के बाद होगा। यह न्यायसंगत नहीं लगता कि विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र के मतदाता यह जाने बिना किसी गुट के पक्ष में मत डाल दें कि इसका शीर्ष है भी या नहीं। और है तो वहां कौन है?
पद के दावेदार
140 करोड़ लोगों के देश की बागडोर अगले पांच वर्ष तक किसके हाथ में होगी, यह कोई अनर्गल प्रश्न नहीं है, जिसे चुनाव के पश्चात भी पूछा जा सकता है। आज विश्व जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें अंतरराष्ट्रीय संबंधों का देश की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के साथ घनिष्ठ संबंध है। देश के प्रधानमंत्री को विश्व के सभी नेताओं से समन्वय रखना पड़ता है। यहां तक कि शत्रु देशों के नेताओं से भी औपचारिक बातचीत करनी पड़ती है। जब उनसे अकेले में बात होती है, तो कभी-कभी कोई और होता ही नहीं, यहां तक कि विदेश मंत्री भी नहीं। ऐसे में अपरिपक्व नेता राष्ट्र हित को हानि पहुंचा सकता है। देशवासी अपरिपक्व नेताओं से भली-भांति परिचित हैं। एक के तो अनगिनत वीडियो यूट्यूब पर देशवासियों को हंसाते रहते हैं, क्योंकि वह जब भी बिना देखे बोलेंगे तो कुछ का कुछ कहेंगे। खानदानी शासक हैं। इनके पिताश्री, दादी और उनके पिताश्री, सब प्रधानमंत्री रह चुके हैं। तो वह कैसे मानेंगे की किसी का दावा इनसे बड़ा है।
दूसरे वे हैं जो कहते हैं कि दिल्ली के तीन चुनावों में वे एनडीए को हरा चुके हैं इसलिए स्वाभाविक है कि पोस्टर पर उनकी तस्वीर नरेंद्र मोदी को हरा सकती है। उनके दावे का ऐलान उनकी प्रवक्ता ने मुंबई में पत्रकारों के सामने कर भी दिया था, पर खलबली इतनी मची कि उनकी ही पार्टी को इस दावे को नकारना पड़ा। तीसरे हैं, जिन्होंने बिहार में यह सिद्ध कर दिखाया कि वह बार-बार एक-दूसरे के विरोधियों से हाथ मिला सकते हैं, चाहे उससे पहले उन्होंने उन दलों को कितनी ही गालियां क्यों न दी हों। एक महिला नेता, जो साम्यवादियों को हरा कर सत्ता में आई थी, अब वह नरेंद्र मोदी को हराने के लिए उन्हीं साम्यवादियों से हाथ मिलाने को तैयार है। यानी दावेदार किसी भी परिस्थिति में जोड़-तोड़ करने में सक्षम हैं।
ऐसे लचकदार राजनीतिकों के सामने बेचारे खानदानी नेता को शीर्ष पर पहुंचने की राह आशा से कठिन लग रही है। वैसे, उन्होंने विदेशियों से समन्वय काफी समय से बनाया हुआ है। उन्होंने अपने आप को ‘जनेऊधारी’ घोषित किया और कैलाश यात्रा पर चल दिए। पर विशेष नेता की ‘तीर्थ यात्रा’ भी साधारण तो हो नहीं सकती। वहां चीन के उप-विदेश मंत्री उनके स्वागत के लिए उपस्थित थे। इस नेता के पूर्वज ने भारत के 40,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर चीन का कब्जा करवा दिया था। लिहाजा, उन्हें अगली नस्लों का शुक्रिया तो करना ही था। जब 2020 में सीमा पर हमारे जवान चीनियों से जूझ रहे थे तो ये महाशय चीन के नई दिल्ली स्थित दूतावास में दावत में शामिल थे। चीनियों ने इनके ट्रस्ट में कुछ 10 लाख डॉलर भी भेंट किए थे। इनके दल का मानना है कि इतना विदेशी अनुभव गठबंधन में किसी और नेता का नहीं है। गांधीजी ने पदयात्रा की तो राष्ट्रपिता कहलाए, चंद्रशेखर ने की तो प्रधानमंत्री बने। इन्होंने भी तो पद यात्रा की है।
लचकदार राजनीतिकों के सामने बेचारे खानदानी नेता को शीर्ष पर पहुंचने की राह आशा से कठिन लग रही है। वैसे, उन्होंने विदेशियों से समन्वय काफी समय से बनाया हुआ है। उन्होंने अपने आप को जनेऊधारी घोषित किया और कैलाश यात्रा पर चल दिए।
नाम बड़े और दर्शन छोटे
गठबंधन में एक भीष्म पितामह भी हैं, जो पहले कांग्रेस में वरिष्ठ नेता, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। उनके परिवार के एक सदस्य ने महाराष्ट्र में एनडीए से हाथ मिलाकर इन्हें सलाह दी कि आप सेवानिवृत्त हो जाओ या एनडीए में शामिल हो जाओ। अब वह दुविधा में हैं, पर इसमें होता वही है-‘माया मिली न राम।’ बिहार के भी एक नेता हैं, जो लंबा समय जेल में बिताकर बाहर आए हैं। उन्हें जेल कांग्रेस ने ही भिजवाया था, पर नौंवी पास पुत्र को उपमुख्यमंत्री बनवाने के लिए अब वह खानदानी नेता के मित्रों में से हैं और मुंबई में देर तक खुसुर-फुसुर करते देखे गए। तमिलनाडु के एक राजकुमार ने कह दिया कि ‘सनातन धर्म को समाप्त कर देना चाहिए।’ उसकी बात तो आई-गई हो जाएगी, पर उसके पिताश्री को शायद उसे समझाना चाहिए कि जो सनातन है, वह कैसे समाप्त हो सकता है? और नन्हा बौना पिता से पूछकर ही बोले तो उनके गठबंधन को तुरंत उसके बयान का खंडन नहीं करना पड़ेगा। ऐसे कई नन्हे नेताओं को दल की गद्दी विरासत में मिली है। वह कोई भी अनुभव प्राप्त करने से पहले सत्ता का प्रदर्शन करते हैं और ‘छोटा मुंह बड़ी बात’ कर पिता की गद्दी को खतरे में डालते हैं।
ये सभी नेता अलग-अलग तरह से महारथी हैं तो कौन किसको रास्ता दे। इनकी चचार्एं चलती रहेंगी। बहरहाल, गुलिवर को बौनों से कोई डर नहीं था। बौनों को भी गुलिवर से कोई डर नहीं होना चाहिए था, पर वह फिर भी डरे हुए थे। वातावरण देख कर गुलिवर ने उनकी अनदेखी की और अपनी यात्रा आगे बढ़ाई। इस गठबंधन से यह तो स्पष्ट हो गया कि मतदाता के सामने एक तरफ यह शीर्षहीन खिचड़ी है और दूसरी ओर अनुशासित एनडीए और उसके नेता नरेंद्र मोदी। मतदाता को इन दोनों में से एक को चुनना है। भारत के मतदाताओं ने यह बार-बार सिद्ध किया है कि वे परिपक्व हैं, कुछ नेता भले ही न हों।
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