देहरादून जिले के हरिपुर में यमुना नदी के किनारे बनने वाले घाट का शिलान्यास। साथ ही हुआ ‘यमुने’ जलांदोलन का शुभारंभ
उत्तराखंड में गंगा की तरह अब यमुना जी पर भी पावन घाट बनाने का काम शुरू हो गया है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन यानी 7 सितंबर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंत्रोच्चारण के बीच हरिपुर में इस पुण्य कार्य की नींव रखी। देहरादून जिले के कालसी ब्लॉक में हरिपुर वह आध्यात्मिक तीर्थस्थल है, जो कभी यमुना जी की प्रलयकारी बाढ़ में बह गया था। इस धार्मिक आस्था के केंद्र को पुनर्स्थापित किए जाने का संकल्प उत्तराखंड सरकार ने लिया है।
हरिपुर में यमुना जी हिमालय शिवालिक से होते हुए शांत और निर्मल भाव से बहती हुई हिमाचल और हरियाणा की तरफ चली जाती हैं। उल्लेखनीय है कि भगवान कृष्ण की यमुना का उद्गम स्थल उत्तराखंड में यमुनोत्री है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार यमुना जी ने ही भगवान श्रीकृष्ण के चरण सर्वप्रथम स्पर्श किए थे और वासुदेव जी को मार्ग देकर उन्हें सुरक्षित पहुंचाया था।
हरिपुर में यमुना जी पर पावन घाट के शिलान्यास के अवसर पर उत्सव जैसा माहौल देखने को मिला। जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र है और हरिपुर इसका प्रवेश द्वार। इस जनजाति क्षेत्र के लोगों के लिए यमुना जी आराध्य देवी हैं। उनका जीना-मरना पावन यमुना जी के साथ है। शिलान्यास के अवसर पर स्थानीय महिलाएं परंपरागत वेशभूषा में झूम रही थीं। उनके भाव कुछ ऐसे थे मानो उनकी बरसों पुरानी इच्छा पूरी हुई हो। सैकड़ों की संख्या में हिंदू युवाओं ने भगवा पताकाएं लहराते हुए अपनी खुशी को जाहिर किया।
‘पाञ्चजन्य’ ने शुरू किया जलांदोलन अभियान
गंगा जी की तरह यमुना जी भी देश में पावन, निर्मल, स्वच्छ और अविरल बहे, इस विषय को लेकर ‘पाञ्चजन्य’ ने ‘यमुने’ जलांदोलन का शुभारंभ किया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ‘यमुने’ जलांदोलन के लिए शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह शानदार पहल है और इसकी शुरुआत उत्तराखंड से इसलिए हो रही है, क्योंकि यमुना जी यमुनोत्री से निकलकर सात राज्यों को जल जीवन देती हैं।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ स्थानीय जन प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि कुछ हफ्ते पहले जब मुझे दिल्ली में नए संसद भवन का अवलोकन करने का अवसर मिला तो वहां एक अखंड भारत का नक्शा दिखाई दिया। उसमें कालसी शहर प्रमुखता से दिख रहा था। तब मुझे ध्यान आया कि यह तो अपना कालसी है। मेरे मन में सवाल उठा कि कालसी यहां क्यों है?
जब मैं देहरादून लौटा तो मैंने हिमालयन गजेटियर मंगवाया। उसमें कालसी अध्याय को पढ़ा कि यहां चक्रवर्ती सम्राट अशोक का शिलालेख है और इस बात का जिक्र चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी किया है। उसी पाठ को पढ़ते-पढ़ते मेरी नजर ‘हरिपुर’ पर जाकर रुक गई। हरिपुर के बारे में ये लिखा था कि यमुना जी के किनारे यह कभी बहुत बड़ा तीर्थस्थल हुआ करता था, जो कि किसी प्रलयकारी बाढ़ में बह गया।
देवभूमि उत्तराखंड का प्रथम सेवक होने के नाते मेरा यह संकल्प है कि हम सब मिलकर यमुना जी को वह मान-सम्मान दिलाएं, हरिपुर को वह मान-सम्मान दिलाएं, जिसे हम जाने-अंजाने में भूल गए थे। उन्होंने कहा कि हरिपुर में पावन घाट के प्रथम चरण के निर्माण का काम आज से शुरू हो रहा है। यह घाट करीब 1,000 मीटर लंबा होगा। उन्होंने कहा कि हरिपुर में ऐसा संगम है, जहां यमुना जी की तीन सखियां टोंस, अमलावा और नौरा भी आकर मिलती हैं। ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं है, जहां चार पावन नदियों का संगम हो रहा हो।
इसी बीच मुझे कुछ लोग मथुरा-वृंदावन के मिले और उन्होंने हरिपुर में यमुना जी का जिक्र किया कि यहां यमुना जी पावन निर्मल हैं और हम वहां गए थे। मेरी जिज्ञासा और बढ़ती गई। मैंने अपनी रिसर्च टीम को इस कार्य में लगाया तो जानकारी मिली कि गंगा जी के हरिद्वार की तरह यमुना जी का सनातन तीर्थ हरिपुर हुआ करता था, जहां तीर्थयात्री स्नान करके, यमुनोत्री के लिए अपनी तीर्थयात्रा प्रारंभ करते थे। पहले चारधाम की तीर्थयात्राएं नदी के किनारे- किनारे पैदल या घोड़ों, खच्चरों के माध्यम से हुआ करती थीं। वहीं से मेरे अंदर एक संदेश, एक भाव, एक आदेश,एक प्रेरणा, जागृत होने लगी कि हम यमुना जी के हरिपुर को पुन: तीर्थस्थल के रूप में स्थापित करेंगे।
उन्होंने कहा कि मैंने एक बात और गौर कि हरिपुर से लेकर यमुनोत्री तक यमुना जी पर कोई घाट नहीं है, कोई ऐसा तीर्थस्थान नहीं है, जहां तीर्थयात्री रुकें और आरती, पूजा-पाठ, स्नान आदि कर सकें। उन्होंने कहा कि यमुना जी उत्तर प्रदेश में तो राधा-कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी हुई हैं। उत्तराखंड में यमुना जी का उद्गम स्थल है। यहां उनकी कोई लीला कहीं लुप्त हो गई, जबकि महाभारत का लाक्षाग्रह लाखामंडल में ही तो है,जो यहां से लगभग 50 किमी दूर होगा।
उन्होंने कहा कि यमुना जी भगवान श्रीकृष्ण की चौथी पटरानी हैं, यह हमारे ग्रंथों में लिखा हुआ है। यह हमारा सौभाग्य है कि हमारी यमुना जी का अटूट रिश्ता भगवान कृष्ण के साथ है। जब भगवान कृष्ण पैदा हुए तो उस वक्त घनघोर बारिश थी और जब वासुदेव जी को यमुना पार जाना था तो यमुना जी ने जैसे ही कृष्ण जी के पांव छुए तो उन्होंने वासुदेव जी को पार जाने का मार्ग दिया। आज जन्माष्टमी ही है और यमुना जी ने हमें आपको अपने पास बुलाया है। कोई ऐसे ही नहीं चला आता है, हमें मां यमुना जी ने अपने पास बुलाया है।
श्री धामी ने कहा कि यमुना जी हमारी आस्था हैं, यमुना जी हमारा विश्वास हैं। इसी यमुना जी के हरिपुर के किनारे कालपी ऋषि ने सैकड़ों साल तक तपस्या की। इन्हीं यमुना जी के किनारे दशम गुरु गोबिंद सिंह जी ने धर्मयुद्ध की शिक्षा-दीक्षा ली और उसके बाद खालसा पंथ की स्थापना की। उन्होंने कहा कि यमुना जी, देवभूमि उत्तराखंड की देवी हैं। इन्हें मान-सम्मान देना हमारा पहला कर्तव्य है।
देवभूमि उत्तराखंड का प्रथम सेवक होने के नाते मेरा यह संकल्प है कि हम सब मिलकर यमुना जी को वह मान-सम्मान दिलाएं, हरिपुर को वह मान-सम्मान दिलाएं, जिसे हम जाने-अंजाने में भूल गए थे। उन्होंने कहा कि हरिपुर में पावन घाट के प्रथम चरण के निर्माण का काम आज से शुरू हो रहा है। यह घाट करीब 1,000 मीटर लंबा होगा। उन्होंने कहा कि हरिपुर में ऐसा संगम है, जहां यमुना जी की तीन सखियां टोंस, अमलावा और नौरा भी आकर मिलती हैं। ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं है, जहां चार पावन नदियों का संगम हो रहा हो।
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