भारत इस समय ऐतिहासिक दौर से गुजर रहा है। पूरे विश्व के नेता भारत आए और जी-20 का सफल आयोजन हुआ। यह अब जी-21 भी हो गया है भारत ने सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास का स्वप्न पूरे विश्व के लिए तब सार्थक कर दिया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह प्रस्ताव दिया कि अफ्रीकन यूनियन को भी जी-20 में सम्मिलित किया जाए और ऐसा तत्काल ही हो गया।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि कोविड-19 के बाद विश्व में एक बहुत बड़ा संकट विश्वास के आभाव का आया है। युद्ध ने इसको और गहरा किया है। जब हम कोविड को हरा सकते हैं तो हम आपसी विश्वास में आए इस संकट पर भी विजय प्राप्त कर सकते हैं। आज जी-20 के अध्यक्ष के रूप में भारत यह आह्वान करता है कि इस विश्वास के अभाव को विश्वास में बदलें!
परन्तु जब भारत के वसुधैव कुटुम्बकम के आधार पर जी20 के देश आगे बढ़ रहे हैं उसी समय भारत के मुख्य विपक्षी दल के नेता, जो स्वयं को मोहब्बत की दुकान कहते हैं, और सरकार को नफरत फैलाने वाला, वही नेता जिनके दल के अध्यक्ष देश के स्वतंत्रता दिवस के आयोजन का भी बहिष्कार कर देते हैं, वह इस समय भी विदेश में जाकर अपना मनपसन्द कार्य कर रहे हैं। वह भारत की छवि धूमिल करने का कार्य कर रहे हैं। आज जहां भारत के नेतृत्व को मंत्रमुग्ध होकर दुनिया देख रही है, सुन रही है, तभी अफ्रीकी यूनियन को सम्मिलित कर लिया गया और साथ ही विश्वास के अभाव को कम करने की बात भारत का नेतृत्व कर रहा है और भारत के उसी विश्वास का उपहास राहुल गांधी विदेशों में उड़ा रहे हैं।
वह यूरोप के दौरे पर हैं, और इसके साथ ही वह वही दोहरा रहे हैं कि भारत के लोकतांत्रित ढांचे और संस्थाओं के ढांचे पर हमले हो रहे हैं और ये कुछ लोगों के समूह द्वारा किया जा रहा है। इस बारे में सभी जानते हैं।’
‘भारत में लोकंत्रत के लिए संघर्ष का जिम्मा हमारा है और हम इसे आगे ले जाएंगे और सुनिश्चित करेंगे कि हमारी संस्थाओं और आज़ादी पर हमले बंद हों।’ इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि देश में अल्पसंख्यकों के साथ अन्य समुदायों, वंचित समाज, वनवासियों पर भी हमले हो रहे हैं।
जब राहुल गांधी यह कह रहे थे कि अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं, या वंचितों पर हमले हो रहे हैं, तो क्या उन्होंने कांग्रेस शासित राज्यों की ओर दृष्टि डाली होगी? क्या उन्होंने बिहार और बंगाल और राजस्थान में निर्वस्त्र की गयी महिलाओं की दुर्दशा पर बात की होगी? क्या उन्होंने झारखण्ड की उस महिला के विषय में बात की होगी जिसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया गया?
वह चीन की प्रशंसा कर रहे हैं। कांग्रेस के आधिकारिक हैंडल से ट्वीट किया जा रहा है जिसमें चीन की प्रशंसा करते हुए राहुल गांधी कह रहे हैं कि “चीन विश्व में एक विशेष दृष्टिकोण प्रस्तावित कर रहा है। वे ‘बेल्ट एंड रोड’ का विचार मेज पर रख रहे हैं। चीनी ऐसा करने में सक्षम हैं क्योंकि वे वैश्विक उत्पादन का केंद्र बन गए हैं। मुझे हमारी ओर से कोई वैकल्पिक दृष्टिकोण आता नहीं दिख रहा है।
चुनौती यह है: क्या हम एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान कर सकते हैं जहां हम राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता के साथ लोकतांत्रिक परिस्थितियों में उत्पादन कर सकें? हालांकि राहुल गांधी यह नहीं बताने में सक्षम होते हैं कि आज से कुछ वर्ष पहले तक जब यूपीए की सरकार थी, तब भारत केवल चीनी माल का आयातक देश कैसे बन गया था? हमारे बच्चों के हाथ में चीनी खिलौने होते थे, भारत का व्यापारी चीनी माल पर ही निर्भर होकर रह गया था।
राहुल गांधी यह भूल जाते हैं कि यह सूचना युग है। यहाँ पर आप असत्य भाषण नहीं कर सकते हैं। एक यूजर ने चीन और भारत की तुलना करते हुए लिखा कि 90 के दशक तक भारत चीन के बराबर था। अचानक, हमारा निर्माण कम होना आरम्भ हो गया। निर्माताओं को ‘चीन पर निर्भर’ व्यापारी बनने के लिए मजबूर किया गया। यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि जब अंतर बढ़ रहा था तो भारत पर कौन शासन कर रहा था और नीतियां बना रहा था। दुख की बात है कि राहुल गांधी चीन के लिए बल्लेबाजी कर रहे हैं।
परन्तु राहुल गांधी इससे भी बड़ा झूठ बोलते हैं कि फोन की जासूसी हो रही है। जबकि सत्य यह है कि जब पेगासिस वाला एजेंडा चलाया गया था और उसके बाद जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा था, तो जिन्होनें अपने डेटा की जासूसी का आरोप लगाया था, उनमें से किसी ने अपना फोन सहज जांच के लिए नहीं दिया था और जिन्होनें अपना फोन दिया था, उनके फोन से ऐसा कुछ नहीं पता चला था, जिससे यह ज्ञात होता कि ऐसा कुछ भी उनके साथ हुआ था। कुल मिलाकर यह झूठ की दुकान थी, जिसे उन्होंने बेचने का प्रयास किया। मगर कहा जाता है कि एक झूठ कई बार बोला जाए, तो वह सत्य जैसा प्रतीत होने लगता है। यही कारण है कि कांग्रेस और कांग्रेस के युवराज सत्ता पाने के लिए बार-बार और लगातार झूठ बोल रहे हैं, और एक ऐसे परिदृश्य का निर्माण करने का विकृत प्रयास कर रहे हैं, जहाँ पर वह भारत को नीचा दिखा सकें।
राहुल गांधी के चीन प्रेम की पीड़ा को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि जहां एक ओर चीन ने अफ्रीका को कर्ज के जाल में फंसाने का प्रयास किया तो वहीं भारत के नेतृत्व में आज जी-20 में अफ्रीकी देशों को सम्मान एवं आदर प्रदान करते हुए विश्व की उस मुख्यधारा की राजनीति में लाया गया, जहां से वह अपने अधिकारों की बात और मुखर होकर कर सकते हैं।
यह अत्यंत लज्जाजनक है कि जहां आज भारत में वैश्विक स्तर पर सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास का स्वप्न चरितार्थ सा हो रहा है जब विश्व के तमाम देश मिलकर युद्ध एवं महामारी की विभीषिका के बाद उपजे अविश्वास के दौर का सामना कर सकें तो उसी समय भारत के प्रधानमंत्री का सपना आँखों में लिए हुए कांग्रेस के युवराज वही घिसा-पिटा राग विश्व के सामने अलाप रहे हैं कि भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं की हत्या हो रही है! संभवतया राहुल गांधी के लिए लोकतंत्र की परिभाषा वही है जो उनके परिवार के अनुकूल हो, जैसे कि आपातकाल के दौरान हो गयी थी! देश को अभी तक पारिवारिक लोकतंत्र की वह परिभाषा याद है और इसी परिभाषा के चलते राहुल गांधी को वह लोकतंत्र पसंद है ही नहीं, जिसमें जनता ने अपने मन का प्रतिनिधि चुनकर भेजा है और जो पूरे विश्व को बता रहा है कि “भारत” क्या है और भारत का “वसुधैव कुटुम्बकम” क्या है? क्या यह लड़ाई दो सोच के मध्य है जिसमें एक सोच है कि सारी धरती एक परिवार है और दूसरी सोच है कि एक ही परिवार की सारी धरती है?
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