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सनातन धर्म : सत्ता के लिए सनातन पर वार

भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए विपक्ष के नेता सनातनियों को जाति, प्रांत और संप्रदाय में बांटने का प्रयास कर रहे हैं। सनातन विरोधी जो भी बयान आ रहे हैं, उन्हें इसी परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है

by अरुण कुमार सिंह
Sep 11, 2023, 12:15 pm IST
in भारत, विश्लेषण, तमिलनाडु
सनातन समाज का विराट स्वरूप (फाइल चित्र)

सनातन समाज का विराट स्वरूप (फाइल चित्र)

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ये नेता बार-बार हिंदुओं की सहनशीलता की परीक्षा भी ले रहे हैं। 1 सितंबर को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के बेटे और राज्य के युवा कल्याण एवं खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना मच्छर और डेंगू से कर दी।

इस समय देश के कुछ नेता सनातनियों यानी हिंदुओं को अपमानित कर रहे हैं। ये नेता बार-बार हिंदुओं की सहनशीलता की परीक्षा भी ले रहे हैं। 1 सितंबर को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के बेटे और राज्य के युवा कल्याण एवं खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना मच्छर और डेंगू से कर दी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सनातन को खत्म कर देना चाहिए। उदयनिधि ने यह दुस्साहस चैन्ने में माकपा से जुड़ी संस्था ‘तमिलनाडु प्रगतिशील लेखक और कलाकार संघ’ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में किया। कार्यक्रम का विषय था-सनातन उन्मूलन। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उदयनिधि ने कहा, ‘‘सम्मेलन का शीर्षक बहुत अच्छा है। आपने ‘सनातन विरोधी सम्मेलन’ के बजाय ‘सनातन उन्मूलन सम्मेलन’ का आयोजन किया। हमें कुछ चीजों को खत्म करना होगा। हम उसका विरोध नहीं कर सकते। हमें मच्छर, डेंगू बुखार, मलेरिया, कोरोना वायरस इत्यादि का विरोध नहीं, इनका उन्मूलन करना चाहिए। सनातन धर्म भी ऐसा ही है। हमें इसका विरोध नहीं करना है, बल्कि इसका उन्मूलन करना है।’’

इस घृणित बयान का जहां विरोध होना चाहिए, वहीं इसके उलट कांग्रेस के कुछ नेता उसके समर्थन में कूद पड़े। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम ने ट्वीट किया, ‘‘सनातन धर्म जातियों में विभाजन के लिए नियम के अलावा और कुछ नहीं है। इसकी वकालत करने करने वाले सभी अच्छे पुराने दिनों के लिए उत्सुक हैं! जाति भारत का अभिशाप है।’’ वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियंक खरगे ने सनातन का नाम लिए बिना कहा, ‘‘जो भी धर्म बराबरी का अधिकार नहीं देता है और आपके साथ इंसान जैसा व्यवहार नहीं करता है, वह बीमारी से कम नहीं है।’’

दर्ज हुए मुकदमे

दिल्ली के मालवीय नगर इलाके में रहने वाली एक महिला ने उदयनिधि स्टालिन के विरुद्ध दिल्ली पुलिस में आनलाइन शिकायत दर्ज कराई है। हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता और सर्वोच्च न्यायालय के वकील विनीत जिंदल ने भी उदयनिधि स्टालिन के विरुद्ध दिल्ली पुलिस से शिकायत की है। वहीं उत्तर प्रदेश के रामपुर में उदयनिधि स्टालिन और प्रियंक खरगे के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है। यहां के सिविल लाइंस क्षेत्र के एकता विहार कॉलोनी निवासी अधिवक्ता राम सिंह लोधी और आवास विकास कॉलोनी निवासी अधिवक्ता हर्ष गुप्ता ने पुलिस अधीक्षक को एक प्रार्थना पत्र दिया। इसमें आरोप है कि उदयनिधि स्टालिन और प्रियंक खरगे ने सनातन धर्म पर टिप्पणी की थी, जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। इससे समाज में दो वर्गों के बीच वैमनस्यता उत्पन्न हो गई है। उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाए।

यही नहीं, कांग्रेस के एक और नेता तथा कर्नाटक के गृहमंत्री जी. परमेश्वर ने 8 सितंबर को हिंदू धर्म की उत्पत्ति को लेकर आपत्तिजनक बातें कर दीं। उन्होंने तुमकुर में एक सभा में कहा, ‘‘बौद्ध और जैन जैसे पंथों का जन्म भारत में हुआ है, इस्लाम और ईसाई विदेश से यहां आए हैं, लेकिन हिंदू धर्म कहां से आया और कौन इसे लेकर आया, अभी तक यह पता नहीं चल पाया है।’’

कांग्रेस अभी तक अपने इन नेताओं के बयानों का मौन समर्थन कर रही है। इसलिए लोग मान रहे हैं कि जो भी बयान दिए जा रहे हैं, उनके पीछे कांग्रेस का हाथ है। श्री सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा, दिल्ली के अध्यक्ष भूषणलाल पाराशर कहते हैं, ‘‘उदयनिधि के बयान की जितनी निंदा की जाए, वह कम होगी। इसके बावजूद कांग्रेस के अनेक नेता उस बयान का समर्थन कर रहे हैं। यानी कांग्रेस के इशारे पर ही सनातन धर्म और उसके अनुयायियों को गालियां दी जा रही हैं।’’

ऐसा लगता है कि विपक्षी नेता इस मामले को और हवा देना चाहते हैं। इसकी एक झलक 8 सितंबर को भी मिली। इस दिन डीएमके के सांसद ए. राजा ने भी सनातन की तुलना एच.आई.वी. से कर दी। ए. राजा ने कहा, ‘‘सनातन पर उदयनिधि का रवैया नरम था। सनातन धर्म की तुलना सामाजिक कलंक मानी जाने वाली बीमारियों (एच.आई.वी. और कुष्ठ) से की जानी चाहिए।’’ ए. राजा की तरह राजद के वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह ने भी बड़ी छोटी बात की। उन्होंने कहा,‘‘तिलक लगाकर घूमने वालों ने देश को गुलाम बनाया है।’’

इन बयानों से हनुमान जन्मभूमि, अंजनी पर्वत, किष्किंधा, कोपल (कर्नाटक) के महंत विद्यादास जी बेहद दु:खी हैं। वे कहते हैं, ‘‘जो लोग सनातन के विरोध में बोल रहे हैं, वे मानवता विरोधी हैं। उन्हें सनातन की जानकारी ही नहीं है।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘जिन लोगों ने आज तक सनातन के लिए कुछ भी नहीं किया, वे कह रहे हैं कि सनातन धर्म में भेदभाव है। वास्तव में ये लोग सत्ता के लिए सनातन समाज को तोड़कर रखना चाहते हैं।’’

उदयनिधि के चित्र के साथ विरोध में उतरा संत समाज

भारतीय समाज ऐसे लोगों को उत्तर देगा

गत 6 सितंबर को नई दिल्ली में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी जी महाराज, अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती तथा विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय कार्याध्यक्ष श्री आलोक कुमार ने संयुक्त प्रेस जारी कर सनातन विरोधी बयानों की निंदा की। इसमें कहा गया है कि हम इस बात से चिंतित है कि हाल के दिनों में कांग्रेस, डीएमके और सीपीआई के नेताओं ने शाश्वत सनातन धर्म के विरोध में अभद्र भाषा में बयान दिए हैं। सनातन धर्म की तुलना मच्छर और डेंगू से की गई है। यह भी कहा गया है कि सनातन धर्म का केवल विरोध नहीं करेंगे, बल्कि इसे धरती से समाप्त कर देंगे। यह प्रलाप लगभग एक साथ शुरू हुआ। इसमें आई.एन.डी.आई. ए. के तीन बड़े राजनीतिक दलों के नेता शामिल हैं। उदय निधि स्टालिन ने तो इस बात को दोहराया है कि वह अपने बयान पर कायम है। निश्चय ही यह एक सोची-समझी साजिश है। गाली-गलौच भरे ये वक्तव्य अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के लिए समाज को बांटने और विभिन्न वर्गों में एक-दूसरे के प्रति घृणा और शत्रुता बढ़ाने के बेईमान प्रयास हैं।

वोट बैंक राजनीति में नीचे गिर कर केवल सत्ता प्राप्त करने के लिए किसी भी सीमा तक ये लोग जा सकते हैं। यह चुनौती उन सब लोगों के लिए है जो संविधान और स्वस्थ लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं। यह एक बीमार मानसिकता है जो समझती है कि बहुसंख्य धार्मिक समुदाय की अस्थाओं पर चोट करके, उसके प्रति घृणा और अविश्वास का वातावरण पैदा करने से अल्पसंख्यक समुदाय के समूह वोट इकट्ठा होकर इन दलों की झोली भर देंगे। भारत विभिन्नता में एकता और सब धार्मिक विश्वासों का आदर करने वाला देश है। हमारा निश्चित मत है कि लोकतंत्र और शुचिता में विश्वास रखने वाला भारतीय समाज ऐसे लोगों को समुचित उत्तर देगा।

हम इस बात को दोहराते हैं कि सनातन धर्म प्रत्येक जीव के अंदर विराजमान ईश्वर के दर्शन करता है। वह मनुष्य मात्र की दिव्यता और समानता में विश्वास रखता है। सर्वे भवन्तु सुखिन: की प्रार्थना करने वाला भारतीय समाज मनुष्य की गरिमा के आधार पर समाज में एकत्व और शांति का सशक्त आधार है। सनातन धर्म चिरजीवी है। 800 साल का मुगलों का आक्रमण, अकथनीय अत्याचार, 200 साल का चतुर अंग्रेजों का शासन और मिशनरियों के प्रयासों के बावजूद आज भी भारत का बहुसंख्य समाज सनातन धर्म में विश्वास रखता है। इसका विरोध करने वाले लोग इतिहास के कूड़ेदान में पाए जाते हैं। तमिलनाडु हमेशा से सनातन संस्कृति का ध्वजवाहक रहा है।

तमिलनाडु की धर्म प्राण जनता रामेश्वरम, माता मीनाक्षी, दुर्गा, लक्ष्मी, गणेश, मुरुगन, राम और कृष्ण की हमेशा से आराधक है। हजारों वर्ष पुराने मंदिर सनातन के प्रति तमिलनाडु की सनातन भक्ति के प्रतीक हैं। आलवारों,नायनमारों, संत तिरुवल्लुवर, अंडाल आदि महान संतों की अमरवाणी तमिलनाडु की धर्म प्राण जनता का ही नहीं, करोड़ों सनातनियों का चिरकाल से मार्गदर्शन करती रही है। यह हमारी सांझी विरासत है। आज आवश्यकता है कि इस सांझी विरासत को मजबूत करें। परस्पर एकता बढ़ाने वाले बिंदुओं को ढूंढे। समाज की एकात्मता को मजबूत करें। भारत की पवित्र आध्यात्मिक थाती का विश्व में प्रसार कर सबके लिए सुख और शांति का मार्ग प्रशस्त करें।

कुछ पुराने कारनामे 

वास्तव में देखा जाए तो कांग्रेस और अन्य भाजपा विरोधी दल लगातार हिंदुत्व और हिंदुओं के विरुद्ध जहर उगलते रहे हैं। कांग्रेस ने तो भगवान राम को भी काल्पनिक बताया था। 2007 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक शपथपत्र देकर कहा था, ‘‘वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस प्राचीन भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन इनमें दर्शाए गए पात्रों और घटनाओं के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए इसे ऐतिहासिक प्रमाण नहीं माना जा सकता है।’’ उस समय रामसेतु पर सर्वोच्च न्यायालय में एक मामला चल रहा था। सरकार रामसेतु को तोड़ना चाहती थी। इसलिए उसने राम के अस्तित्व को ही नकार दिया था।

कांग्रेस ने हिंदुओं को अपमानित करने के लिए ही 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमले को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़ने की असफल कोशिश की। इसके लिए उसने ‘सहारा उर्दू’ के तत्कालीन समूह संपादक अजीज बर्नी की मदद ली।

इसके बाद सुशील कुमार शिंदे और दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेसी नेताओं ने 2007-08 में ‘भगवा आतंकवाद’ ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसे शब्द गढ़ कर हिंदुओं को अपमानित किया। यह सब केवल इसलिए किया गया था कि उन दिनों इस्लामी आतंकवाद चरम पर था और सरकार वोट बैंक को खुश रखने के लिए जिहादियों के विरुद्ध कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। इसलिए उसने ‘हिंदू आतंकवाद’ का झूठ गढ़ा और लगभग दो दर्जन हिंदू संतों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को ‘आतंकवादी’ बताकर जेल में बंद कर दिया। 2014 में केंद्र में सरकार बदलने के बाद ऐसे लोग जेल से बाहर निकल पाए हैं।

यही नहीं, कांग्रेस ने हिंदुओं को अपमानित करने के लिए ही 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमले को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़ने की असफल कोशिश की। इसके लिए उसने ‘रोजनामा राष्ट्रीय सहारा, बज्म-ए-सहारा, आलामी सहारा’ के तत्कालीन समूह संपादक अजीज बर्नी की मदद ली। कांग्रेस के इशारे पर बर्नी ने मुंबई हमले पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है- ‘26/11 आर.एस.एस. की साजिश।’ इसका लोकार्पण दिल्ली और मुंबई में किया गया। इन दोनों कार्यक्रमों में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने भाग लिया और कहा, ‘‘मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में वीरगति प्राप्त होने से दो घंटे पहले महाराष्ट्र एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे ने उन्हें फोन पर बताया था कि चूंकि वे मालेगांव विस्फोट मामले की जांच कर रहे हैं, इसलिए उन्हें हिंदुत्ववादी संगठनों से धमकी मिली है।’’

इस तरह दिग्विजय ने मुंबई हमले की आड़ में हिंदुओं को बदनाम करने का प्रयास किया। यदि आतंकवादी कसाब जिंदा नहीं पकड़ा गया होता तो शायद दिग्विजय ‘हिंदू आतंकवाद’ की धारणा को स्थापित करने में सफल हो गए होते।

कांग्रेस हिंदुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने का प्रयास कर चुकी है। संप्रग सरकार के काल में 2011 में ‘सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा निवारण विधेयक’ लाया गया था। इसमें कहा गया था कि कहीं भी दंगा होगा, तो उसके लिए बहुसंख्यक समाज यानी हिंदू जिम्मेदार होगा। इस भेदभावपूर्ण विधेयक को सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद’ ने तैयार किया था, न कि किसी सरकारी विभाग ने। भाजपा ने हिंदुओं के लिए विनाशकारी इस विधेयक का विरोध किया। इसलिए उस समय यह विधेयक संसद के पटल पर नहीं आ सका।

जो राहुल गांधी अपने को जनेऊधारी हिंदू कहते हैं, वे भी सनातन धर्म को बदनाम करने में पीछे नहीं रहे हैं। 2014 में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में राजीव गांधी की 70वीं जयंती पर आयोजित महिला कांग्रेस के अधिवेशन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, ‘‘जो लोग मंदिर जाते हैं, मंदिर में जाकर मत्था टेकते हैं और जो आपको मां-बहन कहते हैं वही लोग आपको बस में छेड़ते हैं।’’ इसके बाद भी राहुल ने अनेक बार हिंदुओं के विरोध में बयान दिए।

न्यायालय से निवेदन

गत 5 सितंबर को देश के 262 प्रमुख लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड को एक पत्र लिखकर निवेदन किया है कि न्यायालय उन लोगों के विरुद्ध संज्ञान ले, जो देश में भड़काऊ बयान दे रहे हैं। इनमें 14 पूर्व न्यायाधीश, 120 नौकरशाह, 20 पूर्व राजदूत और 180 पूर्व सैन्य अधिकारी हैं।

जो राहुल गांधी अपने को जनेऊधारी हिंदू कहते हैं, वे भी सनातन धर्म को बदनाम करने में पीछे नहीं रहे हैं। 2014 में उन्होंने कहा था, ‘‘जो लोग मंदिर जाते हैं, मंदिर में जाकर मत्था टेकते हैं और जो आपको मां-बहन कहते हैं वही लोग आपको बस में छेड़ते हैं।’’

राहुल के नक्शेकदम पर चलने वाले शशि थरूर भी हिंदुओं को गाली देने में आगे रहते हैं। अक्तूबर, 2018 में शशि थरूर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना बिच्छू से की थी। उन्होंने ‘बेंगलूरु साहित्य उत्सव’ को संबोधित करते हुए कहा था, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक शिवलिंग पर बैठे हुए बिच्छू की तरह हैं, जिसे न तो हाथ से हटाया जा सकता है और न चप्पल से मारा जा सकता है।’’ 8 जनवरी, 2019 को दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर ने राम मंदिर बनने का विरोध करते हुए कहा था, ‘‘आप कैसे कह सकते हैं मंदिर वहीं बनाएगे? दशरथ बहुत बड़े महाराजा थे। कहा जाता है कि उनके महल में 10,000 कमरे थे। पता नहीं राम किस कमरे में पैदा हुए थे?’’ इस कार्यक्रम का आयोजन पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीए.एफ.आई.) की राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया (एस.डी.पी.आई.) ने किया था।

कांग्रेस के बड़े नेता से लेकर छोटे नेता भी हिंदू देवी-देवताओं के लिए अपमानजनक बाते करते रहे हैं। गोवा में कांग्रेस के एक नेता हैं रामकृष्ण जाल्मी। उन्होंने 2020 में भगवान परशुराम को ‘आतंकवादी’ और ‘बलात्कारी’ कहा था। इसके लिए उन्हें मार्च, 2020 में गोवा पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था।

हिंदुओं को गाली देने के लिए एक और कांग्रेसी नेता कुख्यात हैं। वे हैं पूर्व कानून और विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या’ में हिंदुत्व की तुलना आतंकवादी संगठन बोको हराम से की है। सितंबर, 2021 में आई इस पुस्तक में और भी बहुत सारी आपत्तिजनक बातें हैं। अक्तूबर, 2022 में पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने मोहसिना किदवई की पुस्तक का विमोचन करते हुए कहा था, ‘‘जिहाद सिर्फ कुरान में नहीं, बल्कि गीता में भी है। श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को जिहाद का पाठ पढ़ाया था।’’

कांग्रेसी नेताओं की तरह अन्य दलों के नेता भी हिंदुओं को गाली देने में पीछे नहीं हैं। कुछ दिनों से समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बयानों से निरंतर हिंदुओं को अपमानित कर रहे हैं। वे हिंदू मंदिर और संतों के विरुद्ध जहर उगलते हैं। अभी कुछ दिन पहले ही उन्होंने कहा है, ‘‘ब्राह्मणवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं और सारी विषमता का कारण भी ब्राह्मणवाद ही है। हिंदू नाम का कोई धर्म है ही नहीं, हिंदू धर्म केवल धोखा है।’’

इसी वर्ष 11 जनवरी को बिहार के शिक्षा मंत्री और राजद नेता चंद्रशेखर ने ‘रामचरितमानस’ को नफरत फैलाने वाला ग्रंथ बताया था। ‘नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय’ के दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘रामचरितमानस दलितों-पिछड़ों को शिक्षा ग्रहण करने से रोकता है।’’ उनके इस बयान का समर्थन उस आम आदमी पार्टी के एक विधायक ने तुरंत किया, जिसके नेता अरविंद केजरीवल अपने को ‘हनुमान भक्त’ बताते हैं। उस विधायक का नाम है राजेंद्र पाल गौतम। चंद्रशेखर के बयान का समर्थन करते हुए गौतम ने कहा था, ‘‘बिहार के मंत्री ने मनुस्मृति और रामचरितमानस को लेकर अपने विचार प्रकट किए तो पूरे देश का मीडिया उनके पीछे पड़ गया। मैं पूछना चाहता हूं कि डॉ. चंद्रशेखर ने गलत क्या कहा? अपनी मर्जी से क्या कहा? उन्होंने वही कहा जो मनुस्मृति और रामचरितमानस में लिखा है।’’ ये वही गौतम हैं, जिन्हें अक्तूबर, 2022 में ‘हिंदू विरोधी शपथ’ के बाद दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार से इस्तीफा देना पड़ा था।

चाहे कांग्रेस के नेता हों, चाहे डीएमके., सपा और या फिर राजद के नेता हों, इन सबकी अच्छी खबर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने ली। उन्होंने कहा, ‘‘सनातन धर्म को लेकर नफरती बयान देने वाले ये लोग आखिर कौन-सा इतिहास पढ़े हैं और कौन-सा वायरस उनके दिमाग में घुस गया है कि अपनी संस्कृति में भी ये लोग बीमारी और वायरस ढूंढ रहे हैं? अफसोस यह है कि मैकाले और मार्क्स का वायरस विपक्षी गठबंधन के नेताओं में इस तरह से घुस गया है कि वे अपनी ही संस्कृति नहीं पढ़ पा रहे हैं।’’ 

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