लगता है राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने हिंदू धर्म को गाली देने का ठेका ले रखा है। हाल के समय में राजद के नेताओं ने हिंदू धर्म और सनातन के विरुद्ध बयान देने की प्रतिस्पर्धा लगा ली है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने देश को गुलाम बनने का कारण टीका चंदन लगाने वाले लोगों को बताया। इनके बयान का बवाल अभी चल ही रहा था कि अपने वक्तव्यों को लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाले बिहार के शिक्षा मंत्री डॉ चंद्रशेखर ने एक और विवादित बयान दे दिया। उन्होंने हज़रत मोहम्मद पैगंबर को मर्यादा पुरुषोत्तम बता दिया। पूरा विश्व जानता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम शब्द भगवान श्रीराम के लिए प्रयुक्त होता है। इसके पहले 11 जनवरी को नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय के दीक्षांत कार्यक्रम में शिक्षा मंत्री ने कहा था कि रामचरितमानस और मनु स्मृति को जला देना चाहिए। शिक्षा मंत्री और राजद के अन्य नेताओं का वक्तव्य डीएमके के स्टालिन और अन्य नेताओं के बयान से मिलता जुलता है।
केंद्र सरकार के विरुद्ध 27 दलों के गठबंधन की तीसरी बैठक 1 सितंबर को मुंबई में संपन्न हुई। इसके ठीक 1 दिन बाद 2 सितंबर को गठबंधन के एक महत्वपूर्ण घटक दल डीएमके के नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने सनातन को समाप्त करने की बात कही। उनके बयान से कई घटक दलों ने किनारा कर लिया लेकिन बिहार का राष्ट्रीय जनता दल इस पार्टी के सुर में सुर मिलाते दिखा। राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने सनातन के बारे में जो वक्तव्य दिया, वह तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन और उनके बेटे उदयनिधि के बयान से मिलता जुलता ही था। दोनों ने सनातन को भारत में व्याप्त बुराइयों का जड़ बताया। इनके अलावा राष्ट्रीय जनता दल के अन्य नेताओं ने हाल के समय में जिस प्रकार का बयान दिया है, वह डीएमके के अन्य नेताओं के बयान का प्रतिबिंब माना जा सकता है। राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा, बिहार के शिक्षा मंत्री डॉ. चंद्रशेखर समेत कई नेताओं के हाल के बयान और डीएमके के ए राजा, जैसे नेताओं के बयान एक ही हैं। लेकिन राजद के नेताओं का बयान डीएमके के नेताओं के बयान के बाद आए हैं। इन बयानों को देखकर ऐसा लगता है कि राजद अपने को उत्तर भारत का डीएमके साबित करने में लगा है।
वैचारिक पृष्ठभूमि एक ही है
डीएमके की स्थापना देश की आजादी मिलने के समय हुई थी। डीएमके का पूरा नाम द्रविड़ मुनेत्र कड़गम है। इसका शाब्दिक अर्थ – ‘द्रविड़ प्रगति संघ’ है, जिसे द्रमुक नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण जस्टिस पार्टी तथा द्रविड़ कड़गम से पेरियार से मतभेद के कारण हुआ था। हालंकि इन सभी पार्टियों का वैचारिक आधार एक ही था। सभी तथाकथित ब्राह्मणवाद या फिर सनातन हिंदू मान्यताओं के विरोध से जन्मी थीं। कुछ इतिहासकार इसे ‘अंग्रेजों के फूट डालो और शासन करो’ की रणनीति का विस्तार मानते हैं। इसके गठन की घोषणा 1949 में हुई थी। उस समय सीएम अन्नादुरई ने पेरियार से अलग होकर इस पार्टी की नींव रखी थी।
1949 में स्थापित डीएमके ने तमिलनाडु के राजनीतिक ताने-बाने को नया आकार दिया है, जिसका आधार सामाजिक न्याय और समानता के नारे पर टिका था। 1969 में अन्नादुरई की मृत्यु के बाद पार्टी की कमान करुणानिधि के हाथ में आई। करुणानिधि ने अपनी पार्टी को एक मजबूत ताकत के रूप में खड़ा किया। चुनावी सफलता से परे, पार्टी ने शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक कल्याण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को प्राथमिकता देते हुए अग्रणी नीतिगत सुधारों का नेतृत्व किया है। करुणानिधि ने सतत प्रयास से अपनी पार्टी को तमिलनाडु की जनता के स्वाभिमान से जोड़ा। पार्टी राज्य की जनता को यह विश्वास दिलाने में सफल रही कि थानथाई पेरियार और पेरारिगनर अन्ना के सपने को वे ही पूरा कर सकते हैं।
तमिल की संवेदनशील जनता इस विपुल लेखक के मंत्रमुग्ध भाषणों से मोहित होती चली गई। पार्टी के भ्रष्टाचार और परिवारवाद जैसे मुद्दे हाशिए पर चले गए। करुणानिधि ने अपनी विरासत अपने बेटे स्टालिन को सौंपी। स्टालिन अपनी विरासत के लिए अपने पुत्र उदयनिधि को तैयार कर रहे हैं। अपनी विरासत को ध्यान में रखते हुए कलाकार से नेता बने तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने 2 सितंबर को सनातन उन्मूलन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि सनातन धर्म सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है। उनके अनुसार, “कुछ चीजों का विरोध नहीं किया जा सकता, उन्हें खत्म किया जाना चाहिए। हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते। हमें इसे खत्म करना होगा. इसी तरह हमें सनातन को खत्म करना है।”
इसी की परछाई राष्ट्रीय जनता दल में भी देखने को मिलती है। जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल 5 जुलाई, 1997 को अस्तित्व में आया। राष्ट्रीय जनता दल का वैचारिक आधार भी वही है। यह पार्टी भी पिछड़ों की बात करती है और हिंदू धर्म का विरोध। लालू प्रसाद 90 के दशक में कहते थे, “भूरा बाल साफ करो।” इसमें भूरा बाल का तात्पर्य बिहार की चार तथाकथित अगड़ी जातियों (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला या कायस्थ) से था। उसी दौर में वे ब्राह्मणवाद को जड़ से समाप्त करने की भी बात करते थे। पोथी पतरा जलाने की बात कई बार लालू प्रसाद ने सार्वजनिक मंचों से की है। अभी हाल के समय में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और शिक्षा मंत्री डॉ. चंद्रशेखर ने जिस प्रकार का बयान दिया, वह भी सनातन परंपरा के ऊपर प्रहार ही था।
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