एक समय माकपा ने केवल कुर्सी के लिए पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को बसाकर राज्य को कंगाल बना दिया था। अब वही माकपा खुद इतनी ‘गरीब’ हो चुकी है कि वह अपने कार्यालय बंद कर रही है और पूर्णकालिक कार्यकर्ता भी नहीं रख पा रही है।
कहते हैं कि किसी के साथ छल या द्रोह करेंगे तो उस पाप से आप भी नहीं बच सकते। कुछ ऐसा ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी माकपा के साथ हो रहा है। माकपा आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हो गई है। कह सकते हैं, माकपा ‘गरीब’ हो गई है। गरीबी ऐसी है कि वह अपने पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को मानधन तक नहीं दे पा रही है। इस कारण माकपा ने अपने पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की भर्ती बंद कर दी है। एक रपट के अनुसार माकपा ने फरवरी, 2016 में पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की भर्ती की थी। इसके बाद से उसने पूर्णकालिक कार्यकर्ता रखना ही बंद कर दिया है।
बता दें कि माकपा अपने पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को मानधन देती है। यह मानधन अलग—अलग जिलों में अलग—अलग होता है। हुगली जिले के पूणकालिक कार्यकर्ताओं को 5,500 रु, कोलकाता में 7,500 रु और 24 परगना में 6,500 रु प्रतिमाह दिए जाते हैं। अब कहा जा रहा है कि माकपा अपने ऐसे कार्यकर्ताओं को मानधन नहीं दे पा रही है। इसलिए पिछले करीब सात साल से उसने पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की भर्ती नहीं की है।
यह भी कहा जा रहा है कि पैसे के अभाव में माकपा अपने अनेक कार्यालयों को भी बंद कर चुकी है। यह हाल उस माकपा है, जिसने सत्ता सुख के लिए देश के साथ भी धोखा किया है।
बता दें कि माकपा वह पार्टी है, जिसने अपने राज में पश्चिम बंगाल को कंगाल बना दिया था। उन दिनों पश्चिम बंगाल में माकपा के कार्यकर्ता ही पुलिस और अदालत सबकी भूमिका में होते थे। माकपा के कार्यकर्ता के बिना कोई कार्य नहीं होता था। यही कारण है कि उन कार्यकर्ताओं ने वैसे—वैसे कार्य किए, जिनके कारण पश्चिम बंगाल हर मामले में पिछड़ता गया। उसकी भरपाई अभी तक नहीं हो पाई है और निकट भविष्य में हो भी नहीं हो सकती है।
माकपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने सबसे बड़ा ‘पाप’ यह किया था कि उन लोगों ने देश के भविष्य की चिंता किए बिना पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को बसाया था। इसके साथ ही माकपा ने मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए सारी हदें पार कर दी थीं। कोलकाता और राज्य के अन्य हिस्सों में सरकारी जमीन पर माकपा ने मस्जिदों का निर्माण कराया था। ऐसी जमीन पर उसने बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को भी बसाया। उन घुसपैठियों के नाम मतदाता सूची में दर्ज कराने के लिए माकपा के नेता और कार्यकर्ता विशेष शिविर लगवाते थे। बाद में माकपा के लोग ही इन घुसपैठियों को देश के अलग—अलग भागों में भेजते थे। वहां यदि ये घुसपैठिए पकड़े जाते थे, तो माकपा के नेता चिल्लाने लगते थे कि देखो, पश्चिम बंगाल के लोगों को अपने ही देश में परेशान किया जा रहा है। ऐसे विवादों से बचने के लिए पुलिस ने भी इन घुसपैठियों को पकड़ना बंद कर दिया। यही कारण है कि आज पूरे देश में बांग्लादेशी घुसपैठिए न केवल रह रहे हैं, बल्कि चुनाव में भी भाग ले रहे हैं।
जिन घुसपैठियों ने पहले माकपा का समर्थन किया, अब वे लोग ममता बनर्जी के साथ खड़े हो गए हैं। इस कारण ममता को मुसलमानों का थोक वोट मिल जाता है और वह कोई भी चुनाव आसानी से जीत जाती हैंं। इसका नुकसान भारत और भारतीयों का हो रहा है।
माकपा इन दिनों राजनीतिक रूप से भी संकट में है। पश्चिम बंगाल में लगभग 33 वर्ष तक राज करने वाली माकपा वहां से लगभग उखड़ चुकी है। त्रिपुरा में भी माकपा का लंबे समय तक राज रहा है। अब भाजपा ने उसे वहां से भी करीब—करीब विदा ही कर दिया है। अभी केवल केरल ही ऐसा राज्य है, जहां माकपा की सरकार है,लेकिन वहां भी उसकी हातल खराब होती दिख रही है। लोकसभा में भी उसका प्रतिनिधित्व घट गया है। इस समय माकपा के केवल 9 सांसद हैं।
कह सकते हैं कि माकपा राजनीतिक और आर्थिक, दोनों रूप से कंगाल हो गई है। इसके लिए कोई दूसरा नहीं, बल्कि उसकी नीतियां ही जिम्मेदार हैं।
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