कहीं मजार, कहीं मस्जिद, कहीं ईदगाह, कहीं कब्रिस्तान के नाम पर सरकारी और निजी जमीन पर कब्जा किया जाता है। यह सब वक्फ बोर्ड के कुछ ‘कानूनों’ की आड़ में होता है।
भारत का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा होगा, जहां जमीन जिहाद न चल रहा हो। कहीं मजार, कहीं मस्जिद, कहीं ईदगाह, कहीं कब्रिस्तान के नाम पर सरकारी और निजी जमीन पर कब्जा किया जाता है। यह सब वक्फ बोर्ड के कुछ ‘कानूनों’ की आड़ में होता है। वक्फ बोर्ड मनमाने तरीके से कहीं भी किसी जमीन को अपना बता देता है। हालांकि अब ऐसे कुछ मुकदमे सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच रहे हैं और वहां वक्फ बोर्ड की मनमानी पर कुछ अंकुश लगता दिख रहा है। पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने दो ऐसे निर्णय दिए हैं, जिन्हें कानूनविद् वक्फ बोर्ड के लिए झटका मान रहे हैं। एक है, ‘वक्फ बोर्ड आफ राजस्थान बनाम जिंदल सॉ लिमिटेड अन्य।’ इस मामले का निपटारा करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि बिना प्रमाण किसी ढांचे को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ कानून 1995 की धारा 3 का सहारा लिया है।
दूसरा है, ‘सलेम मुस्लिम कब्रिस्तान संरक्षण समिति बनाम तमिलनाडु राज्य सरकार।’ इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में चिन्हित करने से पहले उक्त संपत्ति का वक्फ अधिनियम, 1954 की धारा 4 के अंतर्गत सर्वेक्षण करना अनिवार्य है। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यन की पीठ ने उक्त टिप्पणी के साथ एक भूमि को वक्फ के रूप में चिन्हित करने के लिए दायर अपील को खारिज कर दिया। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने यह भी कहा कि वक्फ अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत किए गए सर्वेक्षण की अनुपस्थिति में अधिनियम की धारा 5 के तहत अधिसूचना जारी करने मात्र से वाद भूमि के संबंध में वैध वक्फ का गठन नहीं होगा। ‘सलेम मुस्लिम कब्रिस्तान संरक्षण समिति’ मद्रास उच्च न्यायालय की खंडपीठ के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय पहुंची थी।
मद्रास उच्च न्यायालय ने उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें वाद भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित किया गया था। पुराने दस्तावेजों के अनुसार एक समय में वाद भूमि का उपयोग कब्रिस्तान के रूप में किया जाता था, लेकिन नगरपालिका ने 1867 के आसपास स्वास्थ्य कारणों से इसे बंद करने का आदेश दिया और एक वैकल्पिक स्थल को कब्रगाह के रूप में उपयोग करने के लिए आवंटित किया। इसके बाद भी ‘सलेम मुस्लिम कब्रिस्तान संरक्षण समिति’ उस जगह को अपनी बताती रही। समिति ने इस मामले को भूमि राजस्व आयुक्त, मद्रास के समक्ष भी उठाया, लेकिन उसने 1976 में समिति के दावे को खारिज कर दिया। इसके बाद 1990 में राजस्व विभाग ने भी इस जमीन को लेकर एक सरकारी आदेश जारी किया। इसमें भी ‘सलेम मुस्लिम कब्रिस्तान संरक्षण समिति’ के दावे को नहीं माना गया। इसके बाद ‘सलेम मुस्लिम कब्रिस्तान संरक्षण समिति’ ने मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। वहां लंबे समय तक यह मामला चला और अंत में ‘सलेम मुस्लिम कब्रिस्तान संरक्षण समिति’ हार गई। इसके बाद यह समिति सर्वोच्च न्यायालय पहुंची। वहां भी उसे हार मिली।
मनमानी से परेशान मनमोहन
नई दिल्ली के महरौली में वार्ड नंबर एक के मकान संख्या 13/4 में रहने वाले मनमोहन मलिक एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो वर्षों तक वक्फ बोर्ड की मनमानी से पीड़ित रहे। 1947 में देश विभाजन के समय मनमोहन अपने परिवार के साथ एक शरणार्थी के रूप में दिल्ली आए थे। 1947-48 में सरकार ने शरणार्थियों को मकान और जमीन का आवंटन किया था। उसी दौरान मनमोहन मलिक के परिवार को भी महरौली में एक मकान आवंटित हुआ था। वह मकान गुंबदनुमा है। इस कारण वक्फ बोर्ड उसे अपनी संपत्ति बताने लगा। इसके बाद मुकदमेबाजी हुई। निचली अदालत से लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय तक मामला पहुंचा। हर मुकदमे में मनमोहन मलिक की जीत हुई। इसके बाद भी वे कई वर्ष तक उस जर्जर मकान को ठीक नहीं करा पा रहे थे। जब भी वे कुछ काम शुरू करते तो मुसलमानों की एक भीड़ हाजिर हो जाती और काम रोकने के लिए बाध्य कर देती। हालांकि अब यह मामला शांत हो गया है। लेकिन इसके लिए मनमोहन मलिक को वर्षों तक परेशानी झेलनी पड़ी। उन्हें अपने ही घर के लिए मुकदमा लड़ना पड़ा और लाखों रुपए खर्च करने पड़े। देश में मनमोहन मलिक जैसे पीड़ितों की संख्या अनगिनत है। इस तरह के अनेक मामले विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में ऐसे मुकदमों का अंबार लगा है।
जिंदल सॉ लिमिटेड का मामला
दूसरा मामला तो वक्फ बोर्ड की मनमानी की पराकाष्ठा है। ‘वक्फ बोर्ड आफ राजस्थान बनाम जिंदल सॉ लिमिटेड व अन्य’ से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बिना प्रमाण किसी ढांचे को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ कानून 1995 की धारा 3 का ही सहारा लिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कोई भी संपत्ति वक्फ की संपत्ति तभी हो सकती है जब वह निम्न शर्तों को पूरा करती है-
- पहली शर्त, जिसकी संपत्ति है वह इसे वक्फ के रूप में यानी इस्लामिक इबादत के लिए सार्वजनिक तौर पर उपयोग करता हो/ करता था।
- दूसरी शर्त, वह संपत्ति वक्फ के रूप में उपयोग करने के लिए दान की गई हो।
- तीसरी शर्त, राज्य सरकार ने उस भूमि को किसी मजहबी कार्य के लिए दिया हो।
- चौथी शर्त, उस भूमि के मजहबी उपयोग के लिए भूस्वामी ने नियमावली बना कर दी हो।
सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा कि इसके अतिरिक्त कोई भी संपत्ति वक्फ की संपत्ति नहीं है। इसके साथ ही न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यन की खंडपीठ ने राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध दायर उस अपील को खारिज कर दिया, जिसके अंतर्गत ‘जिंदल सॉ लिमिटेड’ को खनन के लिए आवंटित भूखंड से एक ढांचे को हटाने की अनुमति दी गई थी।
उल्लेखनीय है कि 8 दिसंबर, 2010 को ‘जिंदल सॉ लिमिटेड’ को खनन के लिए राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के ढेडवास गांव में एक भूखंड का पट्टा दिया गया था। उस भूखंड में एक चबूतरा और जर्जर दीवार भी है। जब कंपनी ने वहां काम शुरू किया तो राजस्थान वक्फ बोर्ड ने कहा कि यह उसकी जमीन है। वक्फ बोर्ड ने यह भी कहा कि 1963 में राजस्थान के सर्वेक्षण आयुक्त (वक्फ) ने एक सर्वेक्षण किया था और इसे ‘तिरंगा की कलंदरी मस्जिद’ के ढांचे के रूप में अधिसूचित किया था। वक्फ रजिस्टर के अनुसार मस्जिद का ढांचा 108 फीट मापा गया था। एक अन्य सर्वेक्षण वक्फ अधिनियम, 1995 के अनुसार किया गया था और 15 जनवरी, 2002 को उसकी रपट प्रस्तुत की गई थी। इसमें कथित मस्जिद को 525 फीट में बताया गया है। (दो सर्वेक्षण में एक कथित मस्जिद के क्षेत्रफल को अलग-अलग बताया गया, यह वक्फ बोर्ड के दावे को कमजोर साबित करने वाला सिद्ध हुआ।) इसी आधार पर राजस्थान वक्फ बोर्ड ने उस जगह पर दावा किया।
इसके बाद ‘जिंदल सॉ लिमिटेड’ उच्च न्यायालय पहुंची। न्यायालय ने एक विशेषज्ञ समिति बनाकर कहा कि वह यह बताए कि वहां बना ढांचा मस्जिद है या नहीं। समिति ने 10 जनवरी, 2021 को अपनी रपट दी। उसने साफ लिखा कि वहां कोई मस्जिद थी ही नहीं। इसका कोई ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य भी नहीं है। इस आधार पर उच्च न्यायालय ने वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज कर दिया। इसके बाद वक्फ बोर्ड सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा, लेकिन वहां भी उसे हार मिली।
कानूनविद् सर्वोच्च न्यायालय के इन दोनों निर्णयों को देशहित में मान रहे हैं। वक्फ बोर्ड से जुड़े अनेक विवादों की सर्वोच्च न्यायालय में पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन कहते हैं, ‘‘सर्वोच्च न्यायालय के ये निर्णय जमीन जिहाद पर कुछ हद तक अंकुश लगा सकते हैं। इसके बाद उन संपत्तियों को लेकर आवाज उठ सकती है, जिन पर वक्फ बोर्ड ने जबरन कब्जा कर रखा है।’’
वहीं एक अन्य अधिवक्ता प्रभात रंजन कहते हैं, ‘‘वक्फ बोर्ड के लोग वक्फ बोर्ड की धारा 83 का भय दिखाकर लाखों एकड़ सरकारी और निजी जमीन पर कब्जा कर चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद उनकी यह मनमानी बंद हो सकती है।’’ वक्फ बोर्ड की धारा 83 के अंतर्गत कोई भी राज्य सरकार किसी विवाद पर विचार करने के लिए वक्फ प्राधिकरण का गठन करती है और उसमें 100 प्रतिशत लोग एक ही समुदाय से होते हैं। इस कारण ज्यादातर फैसले एकतरफा होते हैं। वक्फ बोर्ड इसका पूरा लाभ उठाता है और जमीन जिहाद करता रहता है। एक अन्य वकील अनुपम राज कहते हैं, ‘‘सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय भारत को इस्लामीकरण की ओर बढ़ने से रोक सकता है, बशर्ते लोग वक्फ संपत्ति से जुड़े मामलों को अदालत तक पहुंचाएं।’’
वक्फ बोर्ड की बढ़ी संपत्ति
वक्फ बोर्ड की बढ़ती संपत्ति को लेकर देश में एक बहस चल रही है। यही नहीं, वक्फ बोर्ड की संपत्ति पर आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय भी टिप्पणी कर चुका है। एपी सज्जादा नशीन बनाम भारत सरकार के मामले में 2009 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘देशभर में वक्फ की करीब 3,00,000 संपत्तियां दर्ज हैं, जो लगभग 4,00,000 एकड़ जमीन है। इस तरह वक्फ बोर्ड के पास रेलवे और रक्षा विभाग के बाद सबसे अधिक जमीन है।’’
आंकड़े बताते हैं कि पिछले लगभग डेढ़ दशक में वक्फ बोर्ड ने तेजी से दूसरों की संपत्तियों पर कब्जा करके उसे वक्फ संपत्ति घोषित किया है। यही कारण है कि दिनोंदिन वक्फ की संपत्ति बढ़ रही है। ‘वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम आफ इंडिया’ के आंकड़ों के अनुसार जुलाई, 2020 तक कुल 6,59,877 संपत्तियां वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज हैं। ये संपत्तियां लगभग 8,00,000 एकड़ जमीन पर फैली हैं। अधिवक्ता हरिशंकर जैन कहते हैं, ‘‘वक्फ कानून 1995 की धारा-5 में कहा गया है कि सर्वेक्षण कर सारी वक्फ संपत्ति की पहचान कर ली गई है। इसके बावजूद दिनोंदिन वक्फ संपत्ति बढ़ रही है। 2009 में वक्फ बोर्ड के पास 4,00,000 एकड़ संपत्ति थी और 2020 में यह बढ़कर 8,00,000 एकड़ हो गई। देश में जमीन उतनी ही है, जितनी पहले थी। फिर वक्फ बोर्ड की जमीन कैसे बढ़ रही है?’’ इसका जवाब वे खुद ही देते हैं, ‘‘देश में जहां भी कब्रिस्तानों की चारदीवारी की गई, उसके आसपास की जमीन को उसमें शामिल कर लिया गया। इसी तरह अवैध मजारों और मस्जिदों को वैध करके वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति बढ़ा ली है।’’
वर्षों पुरानी मक्कारी
1945 में ही कुछ लोगों को लगने लगा था कि अब पाकिस्तान बन कर रहेगा। इसलिए उस समय के अधिकतर मुस्लिम नवाबों और जमींदारों ने अपनी संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए एक चाल चली। इसके तहत हर जमींदार और नवाब ने अपनी संपत्ति का वक्फ बना दिया और भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए। बाद में तुष्टीकरण की राजनीति के कारण इस तरह की सारी संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास चली गई। एक अनुमान के अनुसार इस तरह 6-8 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन वक्फ बोर्ड के पास गई है। भारत विभाजन के समय पाकिस्तान को 10,32,000 वर्ग किलोमीटर भूमि दी गई थी। यानी मुसलमानों ने पाकिस्तान देश के नाम पर भी जमीन ली और वक्फ के नाम पर भी लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया। यही नहीं, बाद में सरकारी और गैर-सरकारी जमीन पर भी मजार, मस्जिद और मदरसे बनाकर वक्फ की संपत्ति बढ़ाई गई। इसे षड्यंत्र नहीं तो और क्या कहेंगे? कानूनविद् संजय कुमार मिश्र का मानना है, ‘‘सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से उन संपत्तियों की सचाई बाहर आएगी, जिन्हें एक षड्यंत्र के अंतर्गत 1947 से पहले वक्फ में बदल दिया गया था।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘1947 के बाद भी जिन संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड अपना अधिकार बताता है, उसके कागज उसे दिखाने होंगे कि वह संपत्ति उसके पास आई कहां से? यदि वक्फ बोर्ड अपनी किसी संपत्ति का वैध कागज नहीं दिखाएगा तो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार वह संपत्ति उसके मूल स्वामी को वापस दे दी जाएगी।’’
140 से अधिक याचिकाएं
वक्फ कानून-1995 के कारण वक्फ बोर्ड बहुत ताकतवर बना है। कोई मुसलमान कहीं भी अवैध मजार या मस्जिद बना लेता है और एक अर्जी वक्फ बोर्ड में लगा देता है। बाकी काम वक्फ बोर्ड करता है। यही कारण है कि पूरे भारत में अवैध मस्जिदों और मजारों का निर्माण बेरोकटोक हो रहा है। वक्फ बोर्ड की मनमानी को कई अदालतों में चुनौती देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दिग्विजयनाथ तिवारी कहते हैं, ‘‘वक्फ बोर्ड का काम केवल जमीन पर कब्जा करने का रह गया है। यह बहुत ही खतरनाक है। वक्फ बोर्ड को मिले अधिकारों में कटौती करने की जरूरत है, नहीं तो इसका दुष्परिणाम गैर-मुसलमानों को भुगतना पड़ेगा।’’ दिग्विजयनाथ बताते हैं कि वक्फ बोर्ड द्वारा जमीन कब्जाने का षड्यंत्र 2013 के बाद तो और तेज हो गया है। 2013 में सोनिया-मनमोहन सरकार ने वक्फ बोर्ड को अपार शक्तियां दे दी थीं।
सोनिया-मनमोहन सरकार ने वक्फ कानून-1995 में संशोधन कर उसे इतना घातक बना दिया कि वह किसी भी संपत्ति पर दावा करने लगा है। वक्फ कानून-1995 के अनुसार वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है, चाहे वह अवैध ही क्यों न हो। भले ही इस कानून को संसद ने बनाया हो, पर विधि विशेषज्ञ इसे गलत मानते हैं। सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. बलराम सिंह कहते हैं, ‘‘वक्फ कानून-1995 संविधान की मूल भावना के विपरीत है। ऐसा कानून संसद भी नहीं बना सकती। यदि बन जाए तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और मुझे पूरा विश्वास है कि न्यायालय उसे निरस्त कर देगा।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘अवैध तो अवैध ही रहेगा। उसे कोई वैध नहीं कर सकता है। जो विधि अवैध कार्य को वैध बनाए, वह कभी भी संवैधानिक नहीं हो सकती।’’
‘‘सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से उन संपत्तियों की सचाई बाहर आएगी, जिन्हें एक षड्यंत्र के अंतर्गत 1947 से पहले वक्फ में बदल दिया गया था।’ – कानूनविद् संजय कुमार मिश्र
यही कारण है कि वक्फ कानून-1995 के विरुद्ध आवाज उठने लगी है। इसके विरोध में अदालतों में अब तक 140 से अधिक याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक याचिका में वक्फ कानून-1995 के प्रावधानों को चुनौती देते हुए कहा गया है कि ये प्रावधान गैर-मुस्लिमों के साथ भेदभाव करते हैं। इसलिए इन प्रावधानों को खत्म कर देना चाहिए। इसमें यह भी मांग की गई है कि न्यायालय यह घोषित करे कि संसद को वक्फ और वक्फ संपत्ति के लिए वक्फ कानून-1995 बनाने का अधिकार नहीं है।
संसद सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची के अनुच्छेद 10 और 28 से बाहर जाकर किसी न्यास, न्यास संपत्ति, मजहबी संस्था के लिए कोई कानून नहीं बना सकती। न्यायालय से मांग की गई है कि वह वक्फ कानून-1995 के अंतर्गत जारी कोई भी नियम, अधिसूचना, आदेश अथवा निर्देश हिंदू अथवा अन्य गैर-इस्लामी समुदायों की संपत्तियों पर लागू नहीं होगा, यह आदेश दे। याचिका के अनुसार वक्फ कानून में वक्फ की संपत्ति को विशेष दर्जा दिया गया है, जबकि न्यास, मठ तथा अखाड़े की संपत्तियों को वैसा दर्जा प्राप्त नहीं है। याचिका में वक्फ कानून-1995 की धारा 4, 5, 8, 9(1)(2)(ए), 28, 29, 36, 40, 52, 54, 55, 89, 90, 101 और 107 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। ऐसी याचिकाओं को जल्दी निपटाने की आवश्यकता है।
आशा की जानी चाहिए कि ‘सलेम मुस्लिम कब्रिस्तान संरक्षण समिति बनाम तमिलनाडु राज्य सरकार’ और ‘वक्फ बोर्ड आफ राजस्थान बनाम जिंदल सॉ लिमिटेड व अन्य’ के मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय ने जो निर्णय दिए हैं, उनसे वक्फ बोर्ड की निरंकुशता पर लगाम लगेगी।
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