देश के नामकरण को लेकर 18 सितंबर 1949 को भारत की संविधान सभा की बैठक कॉन्स्टिट्यूशन हॉल, नई दिल्ली में रात नौ बजे हुई। इसकी अध्यक्षता डॉ. राजेंद्र प्रसाद कर रहे थे। एचवी कामथ ने देश का नाम भारत करने के लिए प्रस्ताव पेश किया था। इस पर बड़ी लंबी और गर्मागरम बहस हुई थी। यह भी कहा गया कि ह्वेनसांग नामक एक चीनी यात्री भारत आया था और उसने अपनी यात्रा पुस्तिका में इस देश को भारत कहा है। कामथ ने इंडिया से पहले भारत शब्द रखने के लिए कहा था। उन्होंने कहा भी था कि मैं भारत को आगे बढ़ाऊंगा। इसके लिए उन्होंने आयरलैंड का भी उदाहरण दिया था।
उन्होंने कहा था कि मैं केवल आयरिश संविधान का उल्लेख करना चाहता हूं जिसे बारह वर्ष पहले अपनाया गया था। वहां वाक्य का निर्माण इस लेख के खंड (1) में प्रस्तावित से भिन्न है। यदि सदन में माननीय सहकर्मी 1937 में पारित आयरिश संविधान का हवाला देने का कष्ट करेंगे, तो वे देखेंगे कि आयरिश फ्री स्टेट आधुनिक दुनिया के उन कुछ देशों में से एक था, जिसने स्वतंत्रता प्राप्त करने पर अपना नाम बदल लिया था; और इसके संविधान का चौथा अनुच्छेद भूमि के नाम में परिवर्तन का उल्लेख करता है। आयरिश मुक्त राज्य के संविधान का वह अनुच्छेद इस प्रकार है:
“राज्य का नाम आयर है, या अंग्रेजी भाषा में आयरलैंड है।”
कामथ ने कहा था कि मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही सुखद अभिव्यक्ति है कि भारत, या, अंग्रेजी भाषा में, इंडिया, होगा। इसी बहस के दौरान कमलापति त्रिपाठी ने कहा था कि मुझे ख़ुशी होती अगर प्रारूप समिति ने इस संशोधन को किसी भिन्न रूप में प्रस्तुत किया होता। यदि “इंडिया, अर्थात भारत” के अलावा किसी अन्य अभिव्यक्ति का उपयोग किया गया होता, तो मैं सोचता हूं, श्रीमान, यह इस देश की प्रतिष्ठा और परंपराओं के अधिक अनुरूप होता और वास्तव में इससे इस संविधान सभा का अधिक सम्मान होता। यदि हमारे समक्ष जो प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है उसमें “वह है” शब्द आवश्यक होते तो “भारत अर्थात इंडिया” शब्द का प्रयोग करना अधिक उचित होता। मेरे मित्र श्री कामथ ने यह संशोधन पेश किया है कि ये शब्द हैं। भारत” का प्रयोग किया जाना चाहिए। इसे प्रारूप समिति ने स्वीकार कर लिया था, यदि अब भी वह इसे स्वीकार करती है, तो यह हमारी भावनाओं और हमारे देश की प्रतिष्ठा के लिए सराहनीय विचार होगा। हमें इसे स्वीकार करने में बहुत खुशी होगी। फिर भी, महोदय, जो प्रस्ताव हमारे सामने रखा गया है उससे हम प्रसन्न हैं और इसके लिए हम प्रारूप समिति को बधाई देते हैं।
इतने मतों से संशोधन अस्वीकृत कर दिया गया था
भारत, या, अंग्रेजी भाषा में, इंडिया, राज्यों का एक संघ होगा। यह संशोधन अस्वीकृत कर दिया गया। हां में 38 और नहीं में 51 लोगों ने जवाब दिया।
कई सदस्यों ने रखी थी बात
सविंधान सभा कई बहस में इसेठ गोविंद दास, कमलापति त्रिपाठी, मौलाना हसरत मोहानी, महावीर त्यागी समेत कई सदस्यों ने अपनी बात रखी थी। और भी प्रस्तावों पर चर्चा हुई थी। पूरी बहस पढ़नी हो तो लोकसभा की वेबसाइट पर मिल जाएगी।
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