‘‘चुप हो जाओ, वरना हुणार आ जाएगा।’’ उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद में गाजीपुर-बनारस राजमार्ग के समीप औड़िहार नगर स्थित है। यहीं स्कंदगुप्त ने हूणों का सामना किया था।
पूर्वांचल में भेड़िए को हुणार कहा जाता है। बर्बर हूणों और भेड़िए में एक समानता थी, दोनों बच्चों को मार देते थे। इसलिए भेड़ियों को हुणार कहा जाने लगा। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिस स्थान पर स्कंदगुप्त ने हूणों को हराया, उसका नाम हूणहार पड़ा। यही स्थान अब औड़िहार कहलाता है।
पूर्वांचल में भेड़िए को ‘हुणार’ कहा जाता है। हुणार शब्द की व्युत्पत्ति हूण शब्द से हुई है। हूण एक बर्बर जाति थी, जो कि बहुत लड़ाकू थी। हूण इतने बर्बर थे कि वे जिस देश पर आक्रमण करते थे, उस देश का समूल विनाश कर देते थे। वे उस देश के बच्चों तक को भी जीवित नहीं छोड़ते थे। उन्हें भी मार देते थे।
भेड़िये भी बच्चों को उठाकर ले जाते थे। इसलिए पूर्वांचल में भेड़ियों को हुणार कहा जाने लगा। जब बच्चे रोते थे तो माताएं उन्हें चुप कराने के लिए कहा करती थीं, ‘‘चुप हो जाओ, वरना हुणार आ जाएगा।’’ उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद में गाजीपुर-बनारस राजमार्ग के समीप औड़िहार नगर स्थित है। यहीं स्कंदगुप्त ने हूणों का सामना किया था।
जब स्कंदगुप्त हूणों से समर ले रहा था, तब उसके पिता कुमार गुप्त मृत्यु शैय्या पर थे। दु:खी मन:स्थिति में होते हुए भी स्कंदगुप्त ने हूणों से डटकर लोहा लिया था। वह युद्ध भूमि में जमीन पर सोता था। सेना राजा को अपने बीच पाकर एक नई ऊर्जा से लबरेज थी। स्कंदगुप्त की सेना ने दो लाख की हूण सेना को गाजर-मूली की तरह काटकर फेंक दिया था। स्कंदगुप्त के पास चतुरंगिणी सेना थी।
इस युद्ध में हूण हार गए थे। इसके बाद इस जगह का नाम ‘हूणहार’ रखा गया, जो कालांतर में औड़िहार हो गया। विजय के बाद स्कंदगुप्त ने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की थी। उसने औड़िहार (हूणहार) के नजदीक स्थित सैदपुर भीतरी गांव के पास एक विजय स्तम्भ बनवाया और उस पर अपनी विजय गाथा लिखवाई थी। स्कंदगुप्त ने सैदपुर भीतरी गांव को अपने आराध्य देव को अर्पण किया था।
युद्ध में पराजय के बाद हूण सेना के बचे-खुचे सैनिकों में से कुछ स्वदेश लौट गए थे, अपनी पराजय की कहानी सुनाने के लिए, मरे हुए लोगों की कहानी सुनाने के लिए उनकी विधवाओं को। कुछ भारत में ही बस गए थे।
आज भी राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्जर हूण रहते हैं। ये अपना गोत्र हूण रखते हैं। ये हूण यहां की संस्कृति में रच-बस गए हैं।
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