आखिरकार कांग्रेस मणिपुर की जनजातीय हिंसा के लंबे इतिहास और उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकारों के रवैये को नजरअंदाज कर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बोलने पर ही क्यों जोर दे रही है? यहां तक कि गृह मंत्री अमित शाह की ओर से चर्चा के लिए खुला आमंत्रण देने के बावजूद विपक्ष ने संसद को चलने नहीं दिया।
मणिपुर हिंसा को लेकर संसद में तीन दिन तक बहस हुई। गृह मंत्री अमित शाह के बिंदुवार जवाब और प्रधानमंत्री के जल्द शांति का सूरज उगने के आश्वासन के बावजूद जिस तरह से सरकार पर विपक्ष, खासतौर से कांग्रेस हमलावर है, उससे इसके पीछे किसी मंशा के छिपे होने का अंदेशा होना स्वाभाविक है। आखिरकार कांग्रेस मणिपुर की जनजातीय हिंसा के लंबे इतिहास और उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकारों के रवैये को नजरअंदाज कर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बोलने पर ही क्यों जोर दे रही है? यहां तक कि गृह मंत्री अमित शाह की ओर से चर्चा के लिए खुला आमंत्रण देने के बावजूद विपक्ष ने संसद को चलने नहीं दिया।
वैसे संसद में चर्चा के दौरान विपक्षी नेताओं के बयान, मणिपुर हिंसा के खिलाफ देश के विभिन्न भागों में चल रहे विरोध प्रदर्शनों और सोशल मीडिया पर उठाए जा रहे मुद्दों को ध्यान से देंखे तो साफ हो जाएगा कि कांग्रेस और विपक्षी दलों को मणिपुर से कहीं ज्यादा, ईसाई वोटबैंक की चिंता है, जो कांग्रेस की झोली से खिसककर भाजपा की तरफ जाना शुरू हो गया है। कांग्रेस के पास एकमात्र यही समर्पित वोटबैंक बचा है, इसका खिसकना कांग्रेस के राजनीतिक ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है। दरअसल, हिंदुत्व के बढ़ते उभार के बीच कांग्रेस और विपक्ष सीधे-सीधे मणिपुर हिंसा को ईसाइयत से जोड़कर पेश करने से डर रहा है।
इससे भाजपा का हिंदू वोटबैंक और अधिक एकजुट हो सकता है। लेकिन केरल के एनार्कुलम से कांग्रेसी सांसद हिबि इडेन ने लोकसभा में इसे साफ-साफ बोल दिया। कैथोलिक ईसाई हिबि इडेन के पिता स्वर्गीय जॉर्ज इडेन लंबे समय तक एनार्कुलम सीट से कांग्रेस के सांसद थे। हिबि इडेन ने लोकसभा में कहा कि भाजपा के नेता एनार्कुलम में हर ईसाई के घर में जाकर समर्थन मांग रहे हैं, लेकिन भाजपा शासित मणिपुर में कुकियों (ईसाइयों) की हत्या हो रही है और चर्चों को जलाया जा रहा है। विपक्ष के कुछ और सांसदों ने भी मणिपुर हिंसा को अल्पसंख्यक समुदाय से जोड़ने की कोशिश की। इसके अलावा, देश भर में खासतौर पर, केरल में मणिपुर हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के सहारे ईसाइयों को एकजुट करने की कोशिश की जा रही है।
पूरी दुनिया में ईसाई संगठन से जुड़े तमाम संगठनों की वेबसाइटों और न्यूज पोर्टल पर मणिपुर हिंसा को मोदी सरकार में ईसाइयों के उत्पीड़न के रूप में पेश किया जा रहा है। यूरोपीय संघ की संसद में मणिपुर हिंसा को लेकर पारित प्रस्ताव और उसे भारत में किस तरह से प्रचारित किया गया, उसे देखें तो मणिपुर हिंसा को खास रंग देने की कोशिश साफ नजर आती है। हालांकि पूरी दुनिया जानती है कि मणिपुर हिंसा का मत-धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। यह केवल जनजातीय हिंसा है। इससे पहले 1993 में कुकी और नगा समुदायों के बीच हुई जातीय हिंसा में 750 से अधिक लोग मारे गए थे। दोनों समूह ईसाइयत से जुड़े हैं।
दरअसल, ईसाई वोटबैंक की चिंता सिर्फ हिबि इडेन की नहीं है, बल्कि यह पूरी कांग्रेस की चिंता है और इसके ठोस कारण भी हैं। इसी साल मार्च में नागालैंड और मेघालय जैसे ईसाई बहुल राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली जीत कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी थी। इससे साफ हो गया कि ईसाई मतदाताओं के लिए भाजपा अब अछूत नहीं है। इसके पहले गोवा में भी ईसाई मतदाताओं के समर्थन के बल पर भाजपा अकेले पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही थी।
नागालैंड और मेघालय के चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत के दूरगामी असर के संकेत दिए थे। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि वह दिन दूर नहीं, जब केरल में भी भाजपा गठबंधन की सरकार बनेगी। भाजपा ने इसके लिए गंभीर प्रयास शुरू कर दिया है। पूर्व केंद्रीय रक्षा मंत्री और कांग्रेस के बड़े नेता ए.के. एंटनी के बेटे अनिल एंटनी भाजपा में आ चुके हैं और उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय सचिव जैसा अहम पद भी दिया गया है। हिबि इडेन ईसाई मतदाताओं के बीच पैठ बनाने की भाजपा की कोशिश को खुद स्वीकार कर चुके हैं। केरल में ईसाई समुदाय मूलत: कांग्रेस का वोटबैंक रहा है। केरल में ईसाई आबादी 18 प्रतिशत से अधिक है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे अधिक 15 सीटें अकेले केरल से मिली थीं। इसके बाद आठ-आठ सीटें तमिलनाडु और पंजाब से मिली थीं।
कांग्रेस और विपक्षी दलों को मणिपुर से कहीं ज्यादा, ईसाई वोटबैंक की चिंता है, जो कांग्रेस की झोली से खिसककर भाजपा की तरफ जाना शुरू हो गया है। कांग्रेस के पास एकमात्र यही समर्पित वोटबैंक बचा है, इसका खिसकना कांग्रेस के राजनीतिक ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है। दरअसल, हिंदुत्व के बढ़ते उभार के बीच कांग्रेस और विपक्ष सीधे-सीधे मणिपुर हिंसा को ईसाइयत से जोड़कर पेश करने से डर रहा है।
जाहिर है, ईसाई वोटबैंक का खिसकना विपक्षी एकता के सहारे भाजपा को चुनौती देने के कांग्रेस के सपने पर पानी फेर सकता है। पिछले लोकसभा चुनाव में केरल में भाजपा को भले ही एक भी सीट नहीं मिली थी, लेकिन वह 13 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रही थी। 18 प्रतिशत ईसाई वोटबैंक का एक हिस्सा यदि भाजपा की तरफ आया तो इस स्थिति में वह सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ (लेफ्ट ड्रेमोकेटिक फ्रंट) और कांग्रेस नेतृत्व वाले यूडीएफ (यूनाइटेड डेमोके्रटिक फ्रंट) के बाद राज्य की तीसरी राजनीतिक शक्ति बन सकती है।
खासतौर पर, विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए (इंडियन नेशनल डेपलपमेंटल इन्क्लुसिव अलायंस) में यूडीएफ और एलडीएफ के सभी दलों के शामिल होने के बाद से केरल में विपक्ष का स्थान खाली है, जिसे भाजपा आसानी से भर सकती है। वैसे भी ईसाई वोटबैंक का खिसकना सिर्फ केरल तक नहीं सीमित नहीं रहेगा। तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, झारखंड, छत्तीसगढ़ समेत पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों में यह कांग्रेस के अस्तित्व के लिए चुनौती साबित हो सकता है।
(वरिष्ठ पत्रकार नीलू रंजन से बातचीत पर आधारित)
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