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होम भारत

5 अगस्त, 2019 : बदल गया कश्मीर

कश्मीरी अलगाववाद के कई बहाने गढ़े गए थे। अब वे सारे समाप्त होते जा रहे हैं

by WEB DESK
Aug 15, 2023, 03:13 pm IST
in भारत
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जम्मू-कश्मीर में केंद्र के 150 कानून लागू किए गए, जो पहले लागू नहीं थे। लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया। पहले जम्मू-कश्मीर के साथ अन्य राज्यों से इतर विशिष्ट व्यवहार किया जाता था।

अनुच्छेद-370 और 35ए

  • 17 अक्तूबर, 1949 को अंतरिम व्यवस्था के तहत अनुच्छेद-370 संविधान का हिस्सा बना।
  • 14 मई, 1954 में नेहरू कैबिनेट की सलाह पर राष्ट्रपति के आदेश से 35ए को जोड़ा गया।
  •  1964 में अनुच्छेद-370 हटाने के लिए सर्वसम्मति बनी, पर कांगे्रस ने विधेयक पारित नहीं होने दिया।
  •  5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 और 35ए को समाप्त किया गया।

अनुच्छेद-370 और 35ए की समाप्ति के साथ ही जम्मू-कश्मीर में केंद्र के 150 कानून लागू किए गए, जो पहले लागू नहीं थे। लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया। पहले जम्मू-कश्मीर के साथ अन्य राज्यों से इतर विशिष्ट व्यवहार किया जाता था।

अब यह राज्यों की सामान्य सूची में शामिल हो गया है। संसद द्वारा बनाए जाने वाले नियम या संशोधन जम्मू-कश्मीर पर भी लागू होंगे। अन्य राज्यों की तरह यहां भी विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष की बजाए 5 वर्ष का होगा। विधानसभा में राज्य संविधान सभा की शक्तियां निहित होंगी। पहले विधानसभा राज्यपाल को अपनी सिफारिश भेजती थी।

भूमि सुधार कानून, संविधान की धारा 360 के तहत वित्तीय आपातकाल भी नहीं लगाया जा सकता था। अब बाल विवाह, शिक्षा का अधिकार, केंद्रीय सूचना का अधिकार अधिनियम जैसे तमाम कानून लागू होने के साथ वाल्मीकि, वंचित और गोरखा, जो दशकों से राज्य में रह रहे हैं, उन्हें भी राज्य के अन्य निवासियों की तरह समान अधिकार मिल रहे हैं। पहले केंद्र से मिलने वाले आर्थिक पैकेज का अधिकांश हिस्सा कश्मीर घाटी को जाता था और जम्मू व लद्दाख के साथ सौतेला व्यवहार होता था। 

राज्यपाल उसे राष्ट्रपति को आदेश जारी करने के लिए अग्रेषित करते थे। अब यह कार्य विधानसभा के स्थान पर राज्य मंत्रिमण्डल कर सकेगा। अनुच्छेद-35ए ‘एक विधान, एक संविधान, एक राष्ट्रगान, एक निशान’ की भावना के भी विरुद्ध था। यह संविधान में जोड़ा गया ऐसा संशोधन था, जिसे संसद की भागीदारी के बगैर राष्ट्रपति के आदेश के जरिए लागू किया गया था। इसके कारण सात दशकों तक राज्य के लाखों नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय, स्थिति और अवसर की समानता से वंचित रहना पड़ा।

दूसरे राज्यों के लोगों को जम्मू-कश्मीर में संपत्ति खरीदने, राज्य सरकार में नौकरी करने, पंचायतों, नगर पालिकाओं व विधानसभा चुनावों में भागीदारी, सरकार द्वारा संचालित तकनीकी शिक्षा संस्थानों में प्रवेश, छात्रवृत्ति व अन्य सामाजिक लाभ उठाने का अधिकार नहीं था। अनुच्छेद-370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के संबंध में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार तो था, लेकिन अन्य विषयों से जुड़े कानून को लागू करने का अधिकार नहीं था। विशेष दर्जे के कारण न तो यहां संविधान की धारा-356 लागू हो सकती थी और न ही राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार था।

भूमि सुधार कानून, संविधान की धारा 360 के तहत वित्तीय आपातकाल भी नहीं लगाया जा सकता था। अब बाल विवाह, शिक्षा का अधिकार, केंद्रीय सूचना का अधिकार अधिनियम जैसे तमाम कानून लागू होने के साथ वाल्मीकि, वंचित और गोरखा, जो दशकों से राज्य में रह रहे हैं, उन्हें भी राज्य के अन्य निवासियों की तरह समान अधिकार मिल रहे हैं। पहले केंद्र से मिलने वाले आर्थिक पैकेज का अधिकांश हिस्सा कश्मीर घाटी को जाता था और जम्मू व लद्दाख के साथ सौतेला व्यवहार होता था।

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