1976 : संविधान का 42वां संशोधन : ‘इंडिया’ बनाम ‘इंदिरा’

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42वें संशोधन ने भारत का विवरण ‘संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य’ से बदलकर ‘संप्रभु, समाजवादी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ कर दिया।

‘इंडिया इज इंदिरा’ कहने वालों ने 42वें संविधान संशोधन से भारत के संविधान को ‘इंदिरा का संविधान’ बना दिया था। 19 मार्च, 1975 को इंदिरा गांधी को चुनावी याचिका के संदर्भ में अदालत जाना पड़ा था।

जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में कम से कम साढ़े सात लाख लोगों ने ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ जैसे नारे लगाते हुए रैली की थी। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया और इसके तुरंत बाद 25 जून को देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। इस आपातकाल का लक्ष्य सिर्फ इंदिरा गांधी की सत्ता बचाना था। आपातकाल लागू होने के एक महीने के भीतर 22 जुलाई 1975 को संविधान में 38वां संशोधन पारित किया गया, जिसमें न्यायपालिका से आपातकाल की न्यायिक समीक्षा करने का अधिकार छीन लिया गया।

इस संशोधन के दो महीने बाद ही इंदिरा गांधी के लिए प्रधानमंत्री पद बरकरार रखने के इरादे से संविधान में 39वां संशोधन पेश किया गया। चूंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया था, इसलिए 39वें संशोधन ने देश के प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त व्यक्ति के चुनाव की जांच करने का अधिकार उच्च न्यायालयों से छीन लिया।

संशोधन के अनुसार प्रधानमंत्री के चुनाव की जांच एवं परीक्षण केवल संसद द्वारा गठित समिति द्वारा ही की जा सकेगी। फिर 1976 में जब लगभग सभी विपक्षी सांसद या तो भूमिगत थे या जेलों में थे, तब 42वें संशोधन ने भारत का विवरण ‘संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य’ से बदलकर ‘संप्रभु, समाजवादी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ कर दिया। इसी प्रकार ‘राष्ट्र की एकता’ को भी ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता’ में बदल दिया गया। उस समय आपातकाल लागू था, लोकसभा का कार्यकाल पूरा हो चुका था, ऐसे में किस संवैधानिक वैधता या अधिकार से संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को शामिल किया गया था, यह आज तक अनुत्तरित है। इस संवैधानिक संशोधन के बाद से भारत के राष्ट्रपति के लिए मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करना अनिवार्य हो गया। मौलिक अधिकारों के महत्व का बहुत अधिक अवमूल्यन किया गया।

इस संशोधन ने अनुच्छेद 368 सहित 40 अनुच्छेदों में परिवर्तन किया और घोषित किया कि संसद की संविधान निर्माण शक्ति पर कोई सीमा नहीं होगी, और किसी भी मौलिक अधिकार के उल्लंघन सहित किसी भी आधार पर किसी भी अदालत में संसद द्वारा किए गए किसी भी संशोधन पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है। 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में चार नए निदेशक सिद्धांत जोड़ दिए गए।

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