प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एक ऐसी संस्था जिसका उद्देश्य कथित रूप से पत्रकारों के हितों की रक्षा करना है। परन्तु पत्रकारों की परिभाषा क्या होगी, उसके विषय में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया जैसी संस्थाएं बहुत ही संकुचित हैं। वह किन पत्रकारों के अधिकारों के लिए खड़ी होती है, वह भी नहीं पता होता है। कई मीडिया संस्थान हैं, जिनसे बिना किसी नोटिस के सैकड़ों पत्रकारों को निकाल दिया गया और निकाल भी दिया जाता है, परन्तु प्रेस क्लब ऑफ इंडिया नहीं बोलता।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने उन राज्यों में किसी पत्रकार के शोषण पर कभी आवाज उठाई, जो गैर भाजपा शासित हैं, ऐसा भी सहज नहीं दिखता है, फिर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया जैसे संस्थान किन पत्रकारों के लिए आवाज उठाते हैं? क्या वह पत्रकारों के कुकृत्यों के विरुद्ध भी आवाज उठाता है? क्योंकि हाल ही में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने उस मीडिया पोर्टल के पक्ष में अपना बयान जारी किया है, जिसे लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी यह कहा है कि वह चीन का ही एजेंडा आगे बढ़ा रहा है और जिसकी फंडिंग अमेरिकी करोड़पति नेविल रॉय सिंघम ने की है। इसके बाद ही केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने प्रेस कांफ्रेंस करके यह कहा था कि “कांग्रेस, चीन और न्यूज़क्लिक एक गर्भनाल का हिस्सा हैं। राहुल गांधी की ‘नकली मोहब्बत की दुकान’ में चीनी सामान साफ देखा जा सकता है, चीन के प्रति उनका प्रेम देखा जा सकता है। वे भारत विरोधी एजेंडा चला रहे थे।”
न्यूज़ क्लिक पर सरकार की आलोचना के नाम पर किस प्रकार कांग्रेसी एजेंडा चलता है, यह किसी से छुपा नहीं है। यह बात पूरी तरह से सत्य है कि किसी भी लोकतंत्र के जीवित रहने की सबसे बड़ी निशानी यही होती है कि उसमें सत्ता की आलोचना का अधिकार हो। परन्तु यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि सरकार की आलोचना हो, दुराग्रह से भरकर लिखे गए लेख आलोचना नहीं होते हैं और सत्ता की आलोचना में यह कैसी आलोचना जिसमें कथित विपक्षी दलों की सरकार वाले राज्यों के मुद्दों की आलोचना नहीं हो?
यदि सरकार की आलोचना ही किसी पोर्टल का उद्देश्य होता है तो क्या बंगाल, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली जैसे राज्यों में घट रही घटनाओं को लेकर सरकार विरोधी विमर्श नहीं वह पोर्टल बनाएगा? यह भी एक प्रकार का एजेंडा चलाया जाता है कि लेखक हमेशा ही सरकार के विरोध में रहता है। सरकार के विपक्ष में होना और उस विपक्ष के पक्ष में हो जाना, जिसे जनता ने स्वयं ही मतदान द्वारा हटाया है, उसके पक्ष में आ जाने में जमीन आसमान का अंतर है?
न्यूज़क्लिक की वेबसाइट को देखने पर यह पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि इसका एजेंडा केवल और केवल भारतीय जनता पार्टी की सरकार का विरोध करना एवं हिन्दू लोक वाले भारत की निंदा करना है। आलोचना शब्द यहां पर प्रयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि आलोचना में संतुलन होता है और निंदा में कुंठाग्रस्त होकर मात्र अपने दिमाग का दुराग्रह लागू करना होता है। फिर भी न्यूज़़क्लिक के एडिटर इन चीफ प्रबीर पुरकायस्थ पर भी प्रवर्तन निदेशालय ने जो कदम उठाए थे, वह सरकार की दुराग्रह पूर्ण निंदा के कारण नहीं बल्कि वित्तीय अनियमितताओं को लेकर उठाए हैं, जिनके विषय में भारत की जांच एजेंसी के साथ न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी अपनी रिपोर्ट प्रश्न उठाए हैं। तो क्या अब सरकार की एजेंडे पूर्ण निंदा करने वाले हर क़ानून से ऊपर हैं कि उनकी जांच ही न की जाए?
यदि सरकार की उन नीतियों की बुराई की जाती है, जिससे जनता प्रसन्न है तो सरकार विरोधी रिपोर्ट का लाभ किसे होगा, यह समझना कठिन नहीं है। फिर भी ऐसे लोगों के पक्ष में आकर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया द्वारा समर्थन दिया जाना पत्रकार अमन चोपड़ा के शब्दों में कहें तो शॉकिंग हैं।
अमन चोपड़ा का उल्लेख इसलिए किया गया क्योंकि हाल ही में अमन चोपड़ा को लेकर एक मौलाना ने दंगाइयों द्वारा घेर लिए जाने की परोक्ष धमकी दी थी, तो प्रेस क्लब ऑफ इंडिया तो क्या किसी भी कथित सेक्युलर पत्रकार ने या पोर्टल ने उस मौलाना की निंदा नहीं की थी।
बहुत पीछे न जाते हुए पत्रकार रोहित सरदाना की मृत्यु पर जो एक वर्ग विशेष में प्रसन्नता की लहर दौड़ी थी, उसके विरोध में प्रेस क्लब का कोई वक्तव्य आया हो या फिर अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी को लेकर आवाज उठाई हो। बल्कि याद रखना चाहिए कि जब अर्नब गोस्वामी की उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार ने गिरफ्तार किया था और प्रेस क्लब ऑफ इण्डिया ने चुप्पी साध ली थी तो देश का पक्ष रखने वाले कुछ पत्रकारों ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के सामने प्रदर्शन किया था। और उस समय वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने यह भी कहा था कि पत्रकारिता से जुड़ी हर संस्था बेकार हो चुकी है।
देश से जुड़े मामलों की पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों पर मौन रहने वाला प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, उस पोर्टल के पक्ष में आ गया है जिसपर चीनी फंडिंग का आरोप है और यह कह रहा है कि न्यूज़ क्लिक पर लगे आरोपों की निंदा की जानी चाहिए कि वह पड़ोसी देशों के मुखपत्र के रूप में कार्य करता है, जबकि न्यूज़क्लिक, बाक़ी मीडिया आउटलेट्स की तरह, सरकारी कार्यों का आलोचनापूर्ण परीक्षण करता है, और ऐसा करना इसे देशद्रोही या किसी विदेशी देश का टूल नहीं बनाता है।
ऐसे में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया से यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि आखिर देश के विरोध में लिखना ही नहीं बल्कि न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा भी चीनी फंडिंग की बात किए जाने पर भी पोर्टल को विदेशी देश का टूल क्यों न बताया जाए? यदि प्रेस क्लब ऑफ इंडिया एक उंगली सरकार पर उठा रहा है तो शेष चार उंगलियाँ उसी की ओर उठ रही हैं और आम लोग तो पूछेंगे ही “तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है पार्टनर?”
टिप्पणियाँ