नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। बुधवार को सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पूरे देश में एक ही संविधान लागू है। संविधान पीठ ने सवाल किया कि क्या 1957 के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा और संसद ने राज्य के संविधान को भारतीय दायरे में लाने के बारे में नहीं सोचा? इस पर याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का संविधान अलग है। इसे विधानसभा ने बनाया था।
गोपाल सुब्रमण्यम की दलील पर जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि 1954 के आदेश के पहले भाग से यह स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर ने भारतीय संविधान को अपवादों और संशोधनों के साथ अपनाया था।
वहीं याचिकाकर्ता के एक अन्य अधिवक्ता जफर शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने जब भारत के साथ समझौता किया था तो रक्षा, संचार और विदेशी मामलों के अलावा बाकी सभी शक्तियां अपने पास रखी थीं। इसमें संप्रभुता यानी कानून बनाने की शक्ति भी है। एक तरह से यह दो देशों के बीच समझौता था।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान कहा था कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह कराने का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि न्यायालय इस सवाल से जूझ रहा है कि क्या इसे निरस्त करना संवैधानिक रूप से वैध था। भारत एक संवैधानिक लोकतंत्र है, जहां इसके निवासियों की इच्छा केवल स्थापित संस्थानों के माध्यम से ही सुनिश्चित की जा सकती है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की, जब वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करना ब्रेक्जिट की तरह ही एक राजनीतिक कृत्य था, जहां ब्रिटिश नागरिकों की राय जनमत संग्रह के माध्यम से प्राप्त की गई थी, लेकिन 5 अगस्त 2019 को जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था तब ऐसा नहीं था।
टिप्पणियाँ