देश की नदियों में प्रवाहरत लगभग 20 करोड़ हेक्टेअर मीटर जल बिना उपयोग के बहकर समुद्र में चला जाता है। इस जल राशि के समुचित उपयोग से देश की सम्पूर्ण 16.5 करोड़ हेक्टेअर कृषि योग्य भूमि की सिंचाई की जा सकती है। ऐसा करके भारत विश्व की दो तिहाई जनता की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्त्ति कर खाद्य महाशक्ति बन सकता है।
विश्व की सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि एवं सर्वाधिक विविधतापूर्ण कृषि-जलवायु क्षेत्रों वाला देश होने से भारत आज विश्व की खाद्य महाशक्ति बनने में समर्थ है। देश की 16.5 करोड़ हेक्टेअर कृषि योग्य भूमि में से आज 40 प्रतिशत अर्थात् 6.5 करोड़ हेक्टेअर ही सिंचित है। देश की नदियों में प्रवाहरत लगभग 20 करोड़ हेक्टेअर मीटर जल बिना उपयोग के बहकर समुद्र में चला जाता है। इस जल राशि के समुचित उपयोग से देश की सम्पूर्ण 16.5 करोड़ हेक्टेअर कृषि योग्य भूमि की सिंचाई की जा सकती है। ऐसा करके भारत विश्व की दो तिहाई जनता की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्त्ति कर खाद्य महाशक्ति बन सकता है।
असिंचित भूमि की तुलना में सिंचित भूमि की औसत उत्पादकता के चार गुना होने से सिंचित क्षेत्र में वृद्धि कर देश की कृषि क्षेत्र की राष्ट्रीय आय वर्तमान के 50 लाख करोड़ से बढ़ाकर 150 लाख करोड़ रुपये की जा सकती है। कृषि क्षेत्र की बढ़ी हुई आय से जो मांग वृद्धि होगी, उससे भारत 10 ट्रिलियन डॉलर अर्थात 100 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है। देश की आधी से अधिक जनसंख्या के कृषि पर निर्भर होने से देश में उपभोग, मांग व उत्पादन वृद्धि में कृषि का योगदान 50 फीसदी से अधिक है। इसलिए कृषि आय में वृद्धि का देश में उत्पादन, रोजगार व राजस्व पर व्यापक प्रभाव होगा।
खाद्य प्रसंस्करण तंत्र का अंश बने किसान
कृषि फसलों को कच्ची फसल के रूप में बेचने के स्थान पर यदि उनके प्रसंस्करण व मूल्य संवर्धन की गतिविधियों को ग्रामीण क्षेत्र में ही संकेन्द्रित किया जाए व किसानों को उन गतिविधियों में भागीदार या हितधारक बनाया जाए तो उनकी आय व प्रतिलाभों में भारी वृद्धि सम्भव है। ग्रामीण क्षेत्रों में ही कृषि उपजों के प्रसंस्करण या मूल्य संवर्धन के कार्यों के लिए वहां ग्रामीण उद्यमों, ग्राम सहकारिता, कृषक उत्पादक संघों अर्थात फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन (एफपीओ) या अन्य लघु उद्यमों की स्थापना कर किसानों को सक्रिय रूप से उनसे जोड़ा जाए तो किसानों को कई गुना अधिक आय हो सकती है।
उदाहरणार्थ गेहूं के स्थान पर गांव में ही उससे आटा, मैदा, सूजी, केक, ब्रेड, पेस्ट्री आदि मूल्य वर्धित उत्पाद तैयार कर बेचा जाए या टमाटर के स्थान पर उसका केचप, जूस, टॉमेटो प्यूरी, चटनी, सॉस, सूप अथवा कन्सन्ट्रेट बनवा कर ही बेचा जाए या उसे गांवों से बाहर भेजा जाए तो किसान को उसकी उपज का पूर्ण प्रतिलाभ मिल सकता है। इसी प्रकार आलू के स्थान पर उसकी चिप्स, फ्रेंच फ्राइज, फ्लेक्स, लच्छा, ग्रेन्यूल्स, डाइस आदि मूल्य वर्धित उत्पाद बना कर बेचे जा सकते हैं।
हल्दी का उदाहरण लें तो हल्दी के मूल्यवर्धित उत्पादों में हल्दी अचार, हल्दी चटनी, कच्ची हल्दी पंजीरी, कच्ची हल्दी हलवा, केंडिड हल्दी, टर्मेरिक आइल आदि बना कर उससे कई गुना प्रतिलाभ प्राप्त किया जा सकता है। टर्मेरिक आयल से लेकर करक्यूमिन जैसे हल्दी के कई उच्च मूल्य के उत्पाद हैं। सामान्यतया किसान को हल्दी का मूल्य 25 रुपये से 100 रुपये प्रति किलो प्राप्त होता है। जबकि हल्दी के तेल की कीमत 15,00-4000 रुपये प्रति लीटर व हल्दी से बने करक्यूमिन की कीमत 3500 से 15000 रुपये तक मिलती है। इसी प्रकार प्रत्येक कृषि उपज के प्रसंस्करण व मूल्य वर्द्धन से किसान की आय व कृषि क्षेत्र के आर्थिक योगदान को प्रचुर रूप में बढ़ाया जा सकता है।
हमारा कृषि निर्यात 56 अरब डॉलर से अधिक है। आज भी भारत विश्व के शीर्ष कृषि पदार्थ एवं शीर्ष खाद्य सामग्री निर्यातकों में महत्वपूर्ण रखता है
प्रचुर निर्यात सम्भावनाएं
भारत में उत्पादित कृषि उपजों की उन्नत व विविधिकृत प्रजाति के उत्पादों की विश्व में भारी मांग है। आज भी हमारा कृषि निर्यात 56 अरब डॉलर (4.5 लाख करोड़ रुपये) से अधिक है। आज भारत विश्व के शीर्ष कृषि पदार्थ खाद्य सामग्री निर्यातकों में है। भारत विश्व निर्यात के 26 प्रतिशत अंश के साथ दूसरा सबसे बड़ा चावल निर्यातक, तीसरा सबसे बड़ा कपास निर्यातक व नौवां सबसे बड़ा सोयाबीन निर्यातक है। विश्व में हमारे बासमती चावल, आम जैसे फलों, शक्कर सहित विविध मसालों, पुष्पों, उन्नत बीजों, मशरूम आदि असंख्य उत्पादों की भारी मांग होने से इसमें प्रचुर सम्भावनाएं हैं। किसानों को उच्च गुणवत्ता युक्त, प्रमाणित उत्पाद बेचने में सक्षम बनाना होगा और किसानों को ऐसे ग्रामीण उद्यमों से जोड़ना होगा।
जैविक उत्पाद
विश्व में जैविक कृषि पदार्थों की मांग द्रुत गति से बढ़ रही है और जैविक कृषि करने वाले 187 देशों में भारत सर्वाधिक जैविक कृषकों के साथ प्रमुख स्थान रखता है। भारत में विश्व के कुल जैविक उत्पादकों में से 30 प्रतिशत उत्पादक हैं। इसलिए जैविक कृषि भारत को विश्व की पहले नंबर की कृषि अर्थव्यवस्था बनाने के साथ ही विश्व की अग्रणी खाद्य शक्ति बनाएगी।
किसान भागीदारी से बड़ी क्रांति
ग्रामीण क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण गतिविधियों के विकास एवं उस खाद्य तंत्र से किसानों को जोड़ने का सर्वोत्तम उदाहरण अमूल का है। 1940 के दशक में पाल्सन लिमिटेड गुजरात के दुग्ध उत्पादकों का भारी शोषण करती थी। तब 1946 में गुजरात के खेड़ा कस्बे के 126 छोटे-छोटे अनपढ़ किसानों ने अपने कुल 247 लीटर दूध को खेड़ा से 425 किलोमीटर दूर बंबई दुग्ध योजना के लिए आपूर्त्ति करने हेतु एक सहकारी समिति बनाई थी। समय के साथ समिति के सदस्य व दुग्ध संग्रह तेजी से बढ़ा। और 1954 में उन्होंने मक्खन व पाऊडर के दूध का उत्पादन भी प्रारम्भ कर दिया।
आज वही समिति अमूल के रूप में 72,000 करोड़ रुपये का 2.5 करोड़ लीटर दूध के कारोबार वाला संघ बन गई है। शीघ्र ही 22 प्रदेशों में अमूल की भांति सांची, नन्दी, सरस आदि त्रिस्तरीय दुग्ध सहकारी संघ बन गये। इससे देश विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक बन गया। विश्व में आज औसतन प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दुग्ध उपलब्धता 350 मिलीलीटर ही है, जो भारत में आज 475 मिलीलीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। अमूल से जैसे श्वेत क्रांति आई, वैसी ही समग्र कृषि क्रांति विविध कृषि फसलों व उपजों का मूल्य संवर्द्धन ग्रामीण क्षेत्रों में प्रारम्भ करने एवं किसानों को उन मूल्य संवर्धन उपक्रमों का अंग बना कर लायी जा सकती है।
आज के विश्व खाद्य संकट के दौर में भारत अपने सिंचित क्षेत्र में वृद्धि और कृषि पदार्थों के ग्रामीण क्षेत्र में ही मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देकर व किसानों को उससे जोड़ कर एक कृषि महाशक्ति और विश्व की अग्रणी आर्थिक शक्ति बन सकता है।
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