नैनीताल का होटल मेट्रो पॉल परिसर शत्रु संपत्ति है। इसका मालिक कभी राजा महमूदाबाद हुआ करता था। बंटवारे के समय राजा ईरान चला गया और 1957 में उसने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली।
गत दिनों प्रशासन ने नैनीताल में शत्रु संपत्ति पर कब्जा करके बैठे लोगों को वहां से हटा दिया। नैनीताल का होटल मेट्रो पॉल परिसर शत्रु संपत्ति है। इसका मालिक कभी राजा महमूदाबाद हुआ करता था। बंटवारे के समय राजा ईरान चला गया और 1957 में उसने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली। केेंद्र सरकार ने ऐसी संपत्तियों को लेकर 1968 में शत्रु संपत्ति अधिनियम बनाया। इसके बाद उपरोक्त संपत्ति को गृह मंत्रालय के ‘कस्टोडियन आफ प्रॉपर्टी डिपार्टमेंट’ से संबंद्ध कर दिया।
कार्रवाई के दौरान कुमायूं के आयुक्त दीपक रावत, आईजी डॉ. नीलेश भरणे, एसएसपी पंकज भट्ट और अन्य प्रशासनिक अधिकारी मौके पर डटे रहे। प्रशासन ने हल्द्वानी, कालाढूंगी, रामपुर आदि शहरों से आए मुसलमानों को पहले ही काबू में कर लिया था। ये लोग सोशल मीडिया में भ्रामक प्रचार भी कर रहे थे। एक अनुमान के अनुसार करीब 300 करोड़ रु. की सरकारी जमीन पर अवैध रूप से ये लोग बसे हुए थे। इस बस्ती की गंदगी नैनी झील में जाती थी। इसको लेकर कई बार पर्यावरण विशेषज्ञों ने सवाल उठाए थे।
कांग्रेस शासन काल में राजा महमूदाबाद के कथित वारिसों ने इस संपत्ति पर दावा कर दिया। इसके लिए वे लोग सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गए। इनके वकील थे कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद। दुर्भाग्य से इन कथित वारिसों की जीत भी हो गई। कांग्रेस सरकार इन्हें उक्त संपत्ति देने के लिए भी तैयार हो गई। उस समय भाजपा ने जोरदार विरोध किया और उनकी मंशा पूरी नहीं हुई। इस बीच 2014 में केंद्र में सरकार बदल गई। मोदी सरकार ने शत्रु संपत्ति सुधार विधेयक को पुन: संसद से पारित कराकर ऐसी संपत्तियों को बचाया। वर्तमान में ऐसी संपत्तियों का मालिक केंद्रीय गृह मंत्रालय है। इनकी देखरेख की जिम्मेदारी जिलाधिकारियों के पास है।
होटल मेट्रो पॉल 8.72 एकड़ जमीन पर 1880 में बना था। इस पर 134 मुस्लिम परिवारों ने कब्जा किया हुआ था। यहां लगभग 1,400 लोग रह रहे थे। जब-जब इस अवैध कब्जे को खाली करवाने की योजना बनी कांग्रेस के नेताओं ने इन लोगों को संरक्षण दिया। नतीजा यह हुआ कि इन कब्जेदारों के रिश्तेदार भी यहां आकर कुछ कारोबार करने लगे। एक रपट के अनुसार इन अवैध कब्जेदारों के कारण नैनीताल में जनसंख्या असंतुलन हो रहा था। इस कारण स्थानीय लोग भी राज्य सरकार से इन्हें हटाने के लिए कह रहे थे। इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्रालय को भी पत्र लिखे गए।
‘‘हमारी सरकार सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए कृत संकल्प है। नैनीताल की शत्रु संपत्ति को खाली करवाया गया है। हमने इसकी सूचना गृह मंत्रालय को दे दी है और यह आग्रह भी किया है कि इस स्थान को पर्यटकों के वाहनों की पार्किंग के लिए इस्तेमाल किया जाए। ’’
— पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री
जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को इस संपत्ति से कब्जा हटाने के लिए अनेक पत्र भेजे और गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने यहां आकर जमीन की नाप-जोख भी की। अतिक्रमण करने वालों को जिला प्रशासन ने दो साल पहले ही नोटिस दे दिए थे, लेकिन कब्जेदारों ने इस मामले को अदालत तक पहुंचा दिया। इसके बावजूद इन लोगों को कोई राहत नहीं मिली। अंतत: राज्य सरकार ने वहां बने मकानों को ध्वस्त कराकर उस जमीन को अपने कब्जे में ले लिया। इससे पहले की रात्रि में कब्जेदारों ने अपना सामान स्वयं निकाल लिया था। प्रशासन ने 20 जुलाई को ही नैनीताल में धारा 144 लगाकर भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती कर दी थी।
कार्रवाई के दौरान कुमायूं के आयुक्त दीपक रावत, आईजी डॉ. नीलेश भरणे, एसएसपी पंकज भट्ट और अन्य प्रशासनिक अधिकारी मौके पर डटे रहे। प्रशासन ने हल्द्वानी, कालाढूंगी, रामपुर आदि शहरों से आए मुसलमानों को पहले ही काबू में कर लिया था। ये लोग सोशल मीडिया में भ्रामक प्रचार भी कर रहे थे। एक अनुमान के अनुसार करीब 300 करोड़ रु. की सरकारी जमीन पर अवैध रूप से ये लोग बसे हुए थे। इस बस्ती की गंदगी नैनी झील में जाती थी। इसको लेकर कई बार पर्यावरण विशेषज्ञों ने सवाल उठाए थे। अब नैनीताल के लोग बेहद खुश हैं।
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