क्या 2024 के चुनाव से पूर्व हिंसा और अशांति के लिए आधार तैयार किया जा रहा है? यह प्रश्न पैदा होने के कई कारण हैं। इकोसिस्टम की हलचल कितनी तीव्र है और किस दिशा में हो रही है? हिंसा और अपराध की घटनाओं पर चीन्ह-चीन्ह कर बात करने का प्रयास क्यों हो रहा है? सेक्युलरिज्म के नाम पर आतंक पैदा करने की कोशिश क्यों की जा रही है?
मणिपुर की घटना पर संसद में बहस की मांग का सारा चित्र पूरे देश ने देखा है। ऐसा प्रतीत होता है कि मांग करने वालों को अपनी ही मांग मान लिए जाने में कोई रुचि नहीं थी। उनकी रुचि वितंडा खड़ा करने और उस वितंडा को निर्बाध बनाए रखने में थी। यह भी स्पष्ट है कि राजनीति चुनावी तैयारी की दिशा में बढ़ चुकी है। यह स्वाभाविक भी है। लेकिन क्या 2024 के चुनाव से पूर्व हिंसा और अशांति के लिए आधार तैयार किया जा रहा है? यह प्रश्न पैदा होने के कई कारण हैं। इकोसिस्टम की हलचल कितनी तीव्र है और किस दिशा में हो रही है? हिंसा और अपराध की घटनाओं पर चीन्ह-चीन्ह कर बात करने का प्रयास क्यों हो रहा है? सेक्युलरिज्म के नाम पर आतंक पैदा करने की कोशिश क्यों की जा रही है?
सबसे चिंताजनक है नारी सम्मान के विषय को बेहद चुनिंदा ढंग से रखने का प्रयास किया जाना। सिर्फ कांग्रेस और उसकी उपधाराओं ने ही नहीं, पूरे इकोसिस्टम ने मणिपुर की अतिनिंदनीय घटना को जिस ढंग से उठाया है, उससे तो नारी के अपमान की ही नहीं, स्वयं नारी की ही परिभाषा को लेकर प्रश्न उत्पन्न हो गया है। अगर विषय नारी के सम्मान का है, तो पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ से लेकर तमिलनाडु तक की घटनाओं पर बात क्यों न की जाए? और यदि बात सिर्फ राजनीतिक सुविधा के दृष्टिकोण से की जानी है, तो क्या इसका अर्थ यह नहीं हो जाता कि पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु की महिलाओं को या तो कमतर माना जा रहा है, अथवा उनके प्रति किए गए अपराध को अपराध नहीं माना जा रहा?
दोनों ही स्थितियों में यह एक गुरुतर अपराध है। फिर जिस तरह पूरा इकोसिस्टम मणिपुर की घटना को लेकर कूद पड़ा है, वह और भी गंभीर संकेत है। तमाम देसी और हमेशा से संदिग्ध रहने वाले पक्षों के अलावा मिशनरी माफिया, म्यांमार के रोहिंग्या गिरोह और यूरोप-अमेरिका तक मणिपुर के मामले पर हस्तक्षेप करने का घोषित-अघोषित प्रयास कर चुके हैं। सेना को तैनात किया जा चुका है, इसके बावजूद जो हो रहा है, उससे प्रतीत होता है कि षड़यंत्रकारियों का इरादा AFSPA को फिर से पूरी तरह लागू करने की स्थितियां पैदा करना है। यह चुनाव की तैयारी है, या देश से दुश्मनी?
नारी का सम्मान अथवा अपमान सापेक्षिक शब्द नहीं हो सकते। यदि नारी का अपमान सिर्फ तब अपमान माना जाएगा, जब वह राजनीतिक ढंग से या अपने स्वार्थ की दृष्टि से से उपयोगी प्रतीत होता होगा, तो यह परोक्ष संलिप्तता है। सेक्युलरिज्म से लेकर अन्य अपराधों में यह परोक्ष संलिप्तता निश्चित रूप से अपने आप में अपराध है। ऐसा अपराध, जिसका दंड सिर्फ इतिहास नहीं देगा, वर्तमान और भविष्य भी देगा।
दूसरा पहलू। एक गठबंधन बनता है। उसमें शामिल एक दल खुली रैली करके हिन्दुओं की हत्या करने, उन्हें मंदिरों में जला देने की धमकी देता है। बाकी गठबंधन ऐसे चुप रहता है, जिसे उसकी मौन सहमति से भिन्न कुछ माना ही नहीं जा सकता। अब इसे अगर कर्नाटक और राजस्थान के अनुभवों के परिप्रेक्ष्य में रख कर देखा जाए, तो यह कथित गठबंधन की कल्पित ताकत के बूते हिन्दुओं को धमकाने और उनमें आतंक पैदा करने की स्पष्ट कोशिश है। अगर कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन का इससे कोई सरोकार नहीं है, तो उन्हें स्पष्ट करना चाहिए कि उनके लिए गठबंधन की परिभाषा क्या है। अगर वे इसे सेक्युलरिज्म के नाम पर जायज मानते हैं, तो फिर सेक्युलरिज्म की परिभाषा क्या है?
वास्तव में यह चुनाव की तैयारी की कांग्रेस शैली है। अगर दो महीने पहले घटी एक घटना का वीडियो एकाएक वायरल होना संयोग मात्र है, तो यह संयोग तभी क्यों हुआ जब संसद का सत्र शुरू होने वाला था, और विपक्ष के पास कहने लायक कोई बात नहीं थी? और आखिर इस प्रश्न को कब तक टाला जा सकेगा कि संसद का सत्र शुरू होने के दिन ही पेगासस, बीबीसी की डॉक्युमेंट्री, चीन द्वारा घुसपैठ का प्रयास, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आदि मुद्दे पैदा होने का संयोग क्यों होता है? क्या सिर्फ इसलिए कि संसद सत्र में कोई काम न हो सके? क्या इतने सारे संयोगों में विदेशी संलिप्तता भी सिर्फ संयोग है?
नारी का सम्मान अथवा अपमान सापेक्षिक शब्द नहीं हो सकते। यदि नारी का अपमान सिर्फ तब अपमान माना जाएगा, जब वह राजनीतिक ढंग से या अपने स्वार्थ की दृष्टि से से उपयोगी प्रतीत होता होगा, तो यह परोक्ष संलिप्तता है। सेक्युलरिज्म से लेकर अन्य अपराधों में यह परोक्ष संलिप्तता निश्चित रूप से अपने आप में अपराध है। ऐसा अपराध, जिसका दंड सिर्फ इतिहास नहीं देगा, वर्तमान और भविष्य भी देगा।
@hiteshshankar
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