नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अदालतों को अवमानना के अधिकार का उपयोग करते हुए अतिसंवेदनशील नहीं होना चाहिए और ना ही भाव विभोर होना चाहिए। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने अदालत की अवमानना के मामले में डॉक्टर का लाइसेंस निलंबित करने संबंधी कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले को दरकिनार करते हुए ये बात कही है। पीठ ने कहा कि न्यायालय ने यह कई बार स्पष्ट किया है कि अदालतों को प्राप्त अवमानना का क्षेत्राधिकार केवल मौजूदा न्यायिक प्रणाली के बहुमत को बरकरार रखने के प्रयोजन से है। कोर्ट ने कहा कि इस शक्ति का उपयोग करते हुए, अदालतों को ना तो अतिसंवेदनशील होना चाहिए और ना ही भाव विभोर होना चाहिए, बल्कि विवेकपूर्ण तरीके से कार्य करना चाहिए। पीठ ने कहा कि अवमानना कार्यवाही में दंड के तौर पर डॉक्टर का लाइसेंस निलंबित नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने किस मामले में की टिप्पणी ?
कलकत्ता हाई कोर्ट की एक खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था, जिसने एकल पीठ के कई आदेशों को बरकरार रखा था। एकल पीठ ने अनधिकृत निर्माण को हटाने में असफलता को लेकर अपीलकर्ता के खिलाफ शुरू की गई अवमानना कार्यवाही में दंड स्वरूप उसका मेडिकल लाइसेंस निलंबित कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या आदेश दिया ?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर ने पिछले हिस्से में करीब 250 मिमी के अपवाद के साथ अपेक्षित विध्वंस किया है, क्योंकि यह कानूनी रूप से निर्मित इमारत को असुरक्षित बना देगा। पीठ ने कहा कि जो अनाधिकृत निर्माण बचा है। उससे संबंधित हम निर्देश देते हैं, कि संबंधित उच्च न्यायालय के समक्ष एक शपथ पत्र प्रस्तुत किया जाए, कि मौजूदा इमारत की सुदृढ़ता की रक्षा के लिए उपचारात्मक निर्माण और उसके परिणामस्वरूप अनाधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने का काम सही समय के अंदर पूर्ण किया जाएगा।
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